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यूरिनरी संपर्क संक्रमण (यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन) एक आम समस्या है। आमतौर पर यह महिलाओं को प्रभावित करता है, लेकिन कई बार पुरुषों में भी यूटीआई (UTI) की समस्या देखने को मिलती है। अक्सर महिलाएं डॉक्टर के पास शिकायत लेकर आती हैं, कि बच्चा पेशाब करते हुए रोना शुरू कर देता है और बच्चे के पेशाब के रास्ते में सूजन, जलन और लाली नजर आ रही है। ये सभी लक्षण यूटीआई के हो सकते हैं। जी हां! यूरिनरी ट्रैक इन्फेक्शन, या यूटीआई बच्चों को भी प्रभावित कर सकता है। आइए जानते हैं इसके बारे में सब कुछ।
आमतौर पर बच्चों के यूरिन में किसी तरह का जर्म और बैक्टीरिया नहीं होता है। परंतु आंतों में लाखों बैक्टीरिया मौजूद होते हैं। जब आटो से बैक्टीरिया यूरिनरी ट्रैक में प्रवेश करते हैं, तो ऐसे में यूरिनरी संपर्क संक्रमण की संभावना बढ़ जाती है।
हेल्थ शॉट्स ने इस विषय पर रुबी हॉल क्लिनिक, दाएं के एमबीबीएस, एमएस, जनरल सर्जरी, एमसीएच पीडियाट्रिक सर्जन डॉक्टर गीता केकरे से बातचीत की। वे बच्चों में होने वाले यूटीआई को लेकर कुछ महत्वपूर्ण बातें बताई गई हैं। तो जानिए, बच्चों में यूटीआई होने के कारण, लक्षण और बचाव के उपाय।
पहले जानें यूरिनरी ट्रैक इन्फेक्शन क्या है?
जब बैक्टीरिया यूरिनरी ट्रैक में प्रवेश करते हैं, तो वे तेजी से बढ़ना शुरू कर देते हैं। ऐसे में बैक्टीरिया की सक्रियता होने के कारण यूरिनरी ट्रैक की लाइनिंग में सूजन आ जाती है और त्वचा लाल, चिड़चिड़ी और हानिकारक हो जाती है। ऐसी स्थिति में शरीर में और भी कई तरह के लक्षण सामने आते हैं।

बच्चों में यूटीआई की स्थिति में नजर आने के ये लक्षण आते हैं
पेशाब करते समय जलन या दर्द – यूटीआई की स्थिति में बताता है कि एक बड़ा बच्चा पेशाब करते समय अपने पेट के निचले हिस्सों में दर्द का अनुभव करता है। उनके साथ ही उनके पेशाब के रास्ते में जलन महसूस होती है। लेकिन जो बच्चा नहीं खेलता वह ऐसी स्थिति में रोता है।
इसलिए माता-पिता को ध्यान देना चाहिए कि कहीं उनका बच्चा भी तो पेशाब करने के बाद रोना शुरू नहीं करता। इसके साथ ही कई अन्य लक्षण भी नजर आ सकते हैं जैसे –
पेट दर्द
बुखार
यूरिन में आना
पेशाब में खून आना
बार-बार बयान देना
पेशाब को कुछ देर के लिए भी नियंत्रित न कर पाना
शिशु और छोटे बच्चे में नजर आ सकते हैं ये लक्षण
बुखार
सुस्ती
क्रंदन
चंचलता में कमी आना
माँ का दुग्धपान

बच्चों में यूटीआई का मुख्य कारण क्या है?
अक्सर बच्चे मिश्रित और जानकारी के अभाव में पूर्वाश्रम करने के बाद टॉयलेट पेपर का उपयोग पीछे से आगे की ओर करते हैं। ऐसे में इंफेक्शन होने का खतरा बढ़ जाता है। खासकर यह लड़कियों को प्रभावित करता है, क्योंकि उनके इंटिमेट पार्ट एक दूसरे से काफी करीब होते हैं।
जबकि छोटे बच्चे काम में लगे रहते हैं, जिसके कारण पैर और मल लंबे समय तक काम करते रहते हैं। ऐसे में लंबे समय तक पेशाब और मल के संपर्क में रहने से बैक्टीरिया यूरेथ्रा से मूत्राशय में प्रवेश कर जाता है, ऐसे में संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है।
अब जानिए बच्चों में यूटीआई का इलाज कैसे किया जाता है
यूरिनरी संपर्क संक्रमण को ठीक करने के लिए डॉक्टर सबसे पहले एंटीबायोटिक लेने की सलाह देते हैं। बच्चों का सबसे पहला यूरीन टेस्ट होता है। जिसमें उन्हें किस प्रकार का एंटीबायोटिक देना निर्धारित किया जाता है। इसके साथ ही बच्चों को ज्यादा से ज्यादा फील्डिंग करने की कोशिश करें। यह उनके मूत्राशय से हानिकारक बैक्टीरिया को निकालने में मदद करता है। हालांकि, लोवर यूरिनरी अटैचमेंट इनफेक्शन को गारमेंट के तहत घर पर ठीक किया जा सकता है। लेकिन बच्चों में अपर यूरिनरी अटैचमेंट इनफेक्शन को डॉक्टर के मॉनिटर और एंटीबायोटिक ईथरनेट की आवश्यकता होती है।
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छोटे बच्चों को यूटीआई से बचाने के लिए इन बातों का जरूर ध्यान रखें
पेरिनियल हाइजीन
बच्चे के शौच करने के बाद उनके बटॉक्स को आगे से पीछे की ओर पोछे न कि पीछे से आगे की ओर। खासकर लड़कियों में ये सावधानियां बहुत जरूरी हैं।
बच्चों को फील्ड में रखें
छोटे बच्चे खुद से पानी नहीं पीते इसलिए उन्हें समय-समय पर पानी देते रहें और पूरी तरह से क्षेत्र में रखने की कोशिश करें। यह ब्लैडर और यूरिन में बैक्टीरिया को होने से रोकता है।
टॉइलट सीखना जरूरी है
बच्चों को बचपन से ही शिक्षा देना जरूरी है। वे यह महत्वपूर्ण बताते हैं कि लंबे समय तक यूरिन और स्टॉपल को रोका नहीं जाना चाहिए, इससे यूट्रीटी का खतरा बढ़ रहा है। साथ ही साथ उन्हें शौच के बाद साफ करने के लिए हेल्दी तरीके से समझाना भी बहुत जरूरी है।
सही भोजन की आदत बनाना
बच्चों को बचपन से ही सही पूर्वाग्रह की आदत लगना बहुत जरूरी है। अन्यथा यह भी यूटीआई का एक कारण बन सकता है। गलत संबंध से कॉन्स्टिपेशन होता है, जिसके कारण यूटीआई का खतरा बढ़ जाता है।
बार-बार चेकिंग करता रहता है। जरूरत पड़ने पर वर्कशीट को तुरंत बदल दें।
बच्चों में 5 से 7 साल की उम्र तक समय-समय पर यूरिन की जांच करवाती रहें। इससे यह पता लगाना आसान हो जाता है कि कोई बच्चा किसी प्रकार की परेशानी से जंजा नहीं रहा है।
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