
उच्च न्यायालय ने 30 जनवरी को दिल्ली पुलिस से जानना चाहा था कि क्या शरजील की जमानत अर्जी ‘निर्णय’ के लिए दायर याचिका दायर की जा सकती है, क्योंकि इस राहत की मांग को खारिज करने संबंधी अदालत के आदेश में उसका आधार नहीं बताया गया गया है।
नई दिल्ली। दिल्ली हाई कोर्ट 2020 में शहर में हुए दंगे के एक मामले में जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) के छात्रों को जमानत अर्जी की जमानत अर्जी पर सोमवार को सुनवाई होगी। शरजील पर राजद्रोह का आरोप है। यह शिकायत सिद्धार्थ मृदुल और मिश्रित-तलवारंट सिंह की याचिका के सामने सुनने के लिए सूचीबद्ध है। इसमें अदालत के 24 जनवरी 2022 के आदेश को चुनौती दी गई है, जिसके तहत इमामा की जमानत अर्जी को खारिज कर दिया गया था। उच्च न्यायालय ने 30 जनवरी को दिल्ली पुलिस से जानना चाहा था कि क्या शरजील की जमानत अर्जी ‘निर्णय’ के लिए दायर याचिका दायर की जा सकती है, क्योंकि इस राहत की मांग को खारिज करने संबंधी अदालत के आदेश में उसका आधार नहीं बताया गया गया है।
याचिका में कहा गया था कि सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा-124ए (राजद्रोह) पर रोक लगा रखी है, ऐसे में शरजील के खिलाफ आरोप लगाकर अन्य शक्तियों को दिमाग में रखते हुए अदालत के जमानत अर्जी ने याचिका दायर की किए जाने के आदेश का परीक्षण करना होगा। न्यायिक अदालत ने पिछले शरजील पर आईपीसी की धारा 124 ए (राजद्रोह), 153 ए (वैमनस्य फैलाना), 153 बी (राष्ट्रीय एकता के लिए खतरनाक वैध कार्य), 505 (सामाजिक शांति भंग करने वाले आरोप) और काम का उल्लंघन रोकथाम अधिनियम ( यूएपीए) की धारा 13 (अवैध स्थिति के लिए दंड) के तहत आरोप तय किए गए थे।
अभियोजन पक्ष के अनुसार, शरजील ने 13 दिसंबर 2019 को जामिया मिल्लिया इस्लामिया और 16 दिसंबर 2019 को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में कथित रूप से ऐसा भाषण दिया था, जिसमें उन्होंने असम और अन्य हिस्सों को देश से अलग करने की धमकी दी थी। उच्च न्यायालय में अपनी याचिका में शरजील ने कहा है कि अदालत यह ‘समझ में गड़बड़ी’ कर रही है कि उच्च न्यायालय के निर्देश के आलोक में उसकी पूर्व जमानत अर्जी को खारिज किए जाने का आधार यानी राजद्रोह का आरोप तो टिका ही नहीं है, इसलिए उसे राहत दिवस।
अस्वीकरण:प्रभासाक्षी ने इस खबर को निराशा नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआइ-भाषा की भाषा से प्रकाशित की गई है।



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