
UNITED NEWS OF ASIA. हितेश पांडे, जांजगीर-चांपा । BDM शासकीय अस्पताल, चांपा में 22 माह के मासूम आयुष देवांगन की सर्पदंश के बाद इलाज के अभाव में हुई मौत ने पूरे जिले को झकझोर दिया है। इस दर्दनाक घटना के बाद सरकार ने सख्त रुख अपनाते हुए दो स्टाफ नर्सों — मीनू पटेल और सविता महिपाल को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया है। स्वास्थ्य सेवाएं बिलासपुर के संभागीय संयुक्त संचालक ने यह कार्रवाई की है।
इलाज की बजाय निजी अस्पताल भेजने की मौखिक सलाह बनी काल
प्राप्त जानकारी के अनुसार, सर्पदंश के बाद जब मासूम को उसके परिजन लेकर BDM अस्पताल पहुंचे, तो वहां उपस्थित स्टाफ नर्सों ने समय पर प्राथमिक इलाज देने की बजाय मौखिक रूप से उसे निजी अस्पताल ले जाने की सलाह दी। इसके चलते समय की भारी बर्बादी हुई और मासूम की स्थिति और बिगड़ गई। जब उसे जांजगीर जिला अस्पताल लाया गया, तब तक काफी देर हो चुकी थी। वहां से रेफर किए जाने के दौरान रास्ते में ही आयुष ने दम तोड़ दिया।
जनता में आक्रोश, स्वास्थ्य व्यवस्था पर उठे सवाल
घटना के बाद चांपा शहर में जनता का आक्रोश फूट पड़ा है। स्थानीय लोगों ने स्वास्थ्य विभाग पर गंभीर लापरवाही के आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि अगर सरकारी अस्पताल में तत्काल इलाज मिलता, तो मासूम की जान बचाई जा सकती थी।
जनता का गुस्सा अस्पताल प्रबंधन तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि प्रशासनिक ढांचे और अधिकारियों के तबादलों को भी दोषी ठहराया गया।
“डॉ. दीपक जायसवाल के जाने के बाद बिगड़ी व्यवस्था” — स्थानीय लोग
स्थानीय नागरिकों ने कहा कि जब तक डॉ. दीपक जायसवाल सिविल सर्जन के पद पर थे, तब तक अस्पताल में इलाज समय पर होता था और जिम्मेदार स्टाफ भी तैनात रहते थे। लेकिन उनके स्थानांतरण के बाद स्थिति बेकाबू हो गई है। अब स्टाफ अपनी मांगों को लेकर आंदोलन कर रहे हैं और आमजनता उनके इस रवैये का खामियाज़ा भुगत रही है।
जनता ने यह भी आरोप लगाया कि पूर्व कलेक्टर सोनमणि बोरा, तत्कालीन कलेक्टर ऋचा प्रकाश चौधरी, पूर्व एसडीएम नंदनी साहू और डॉ. दीपक जायसवाल जैसे अधिकारी, जिन्होंने आम नागरिकों के हित में कार्य किया, उन्हें स्थानांतरण का शिकार बनाया गया। इसका सीधा असर अब स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता और जवाबदेही पर पड़ा है।
क्या कहते हैं स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी?
स्वास्थ्य विभाग के सूत्रों ने बताया कि मामले की जांच की जा रही है और ज़रूरत पड़ने पर अन्य जिम्मेदारों पर भी कार्रवाई की जाएगी। विभाग की प्राथमिकता यह सुनिश्चित करना है कि ऐसी लापरवाह घटनाएं दोबारा न हो।
यह मामला प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था की हकीकत को उजागर करता है, जहां एक ओर आमजन को भरोसेमंद सरकारी सेवाओं की जरूरत है, वहीं लापरवाही और जवाबदेही की कमी मासूम जिंदगियों को निगल रही है।
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