
UNITED NEWS OF ASIA. अमृतेश्वर सिंह, रायपुर । छत्तीसगढ़ सरकार ने मलेरिया जैसी जानलेवा बीमारी के उन्मूलन की दिशा में फिर एक निर्णायक प्रहार किया है। स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल के नेतृत्व में चल रहे ‘मलेरिया मुक्त छत्तीसगढ़ अभियान’ का 12वां चरण अब जनआंदोलन का रूप ले चुका है। सरकार द्वारा अपनाई गई रणनीति, वैज्ञानिक पद्धति और जनसहभागिता आधारित मॉडल ने स्वास्थ्य सुधार की दिशा में राज्य को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया है।
10 जिलों में चला गहन अभियान, 1.25% पॉजिटिव दर के साथ तत्काल उपचार
25 जून से शुरू हुए अभियान के तहत 10 जिलों में 19,402 घरों का सर्वे किया गया और 98,594 लोगों की रक्त जांच की गई। इनमें से 1,265 लोग मलेरिया पॉजिटिव पाए गए, जिन्हें मौके पर ही सुरक्षित ढंग से दवा की पहली खुराक दी गई। इसके साथ ही, प्रत्येक संक्रमित को उपचार कार्ड वितरित किया गया, ताकि फॉलोअप और निगरानी सुनिश्चित की जा सके।
बस्तर संभाग में 71% गिरावट, API में ऐतिहासिक सुधार
इस अभियान का सबसे सकारात्मक असर बस्तर संभाग में देखा गया, जहां 2015 की तुलना में मलेरिया के मामलों में 71% की गिरावट दर्ज की गई है। राज्य का वार्षिक परजीवी सूचकांक (API) भी 27.40 से घटकर 7.11 हो गया है, जो मलेरिया नियंत्रण की दिशा में बड़ी उपलब्धि है।
स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल ने कहा, “मलेरिया से जंग अब केवल इलाज की नहीं, यह रणनीति और जनसहभागिता की लड़ाई है। हमारा लक्ष्य 2027 तक ‘शून्य मलेरिया’ और 2030 तक ‘पूर्ण मलेरिया मुक्त छत्तीसगढ़’ है, जिसे हम यथार्थ में बदल रहे हैं।”
डॉ. प्रियंका शुक्ला : लक्षणरहित मलेरिया पर भी विशेष ध्यान
स्वास्थ्य विभाग की आयुक्त सह संचालक डॉ. प्रियंका शुक्ला ने बताया कि अभियान के तहत लक्षणरहित मलेरिया मामलों की पहचान और समय पर इलाज प्राथमिकता है, जिससे भविष्य में संक्रमण की कोई गुंजाइश न बचे। उन्होंने कहा कि प्रभावित क्षेत्रों में सतत निगरानी और उपचार सुनिश्चित किया जा रहा है।
मितानिनों, पंचायतों और समाज की भागीदारी से बना जनआंदोलन
इस अभियान को सफल बनाने में मितानिनें, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, ग्राम पंचायतें, स्वयंसेवी संगठन और स्थानीय जनप्रतिनिधियों की सक्रिय भागीदारी रही है। जनता को मच्छरदानी के नियमित उपयोग, जलभराव रोकथाम और स्वच्छता जैसे व्यवहारिक उपायों के प्रति जागरूक किया जा रहा है।
एक जनस्वास्थ्य मॉडल बना छत्तीसगढ़
छत्तीसगढ़ का यह प्रयास अब केवल राज्य तक सीमित नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर अनुकरणीय मॉडल बनता जा रहा है। आने वाले वर्षों में यह अभियान अन्य राज्यों के लिए भी प्रेरणा बनेगा।
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