
नई दिल्ली। कोरोना त्रासदी पीड़ित शहर से ग्रामीण इलाकों की ओर लौट रहे हैं लोग आखिर क्या काम कर अपनी जिंदगी चलाएंगे। ऐसा क्या है कि वे घर पर रहने वाले लोग पैसा कमा सकते हैं। क्षेत्र सहकारी में 39 साल से काम कर रहे झारखंड मिल फेडरेशन के प्रबंध निदेशक सुधीर कुमार सिंह कहते हैं कि दुग्ध उद्योग से ग्रामीण जीवन बदल सकता है। यह सेक्टर शहरों से लेकर भारत के ग्रामीण अंचल तक रोजगार संभव हो रहा है। इसे और आगे बढ़ाया जा सकता है। इसके जरिए और लोगों को काम दिया जा सकता है। पशुपालन अब गाय-भैंस का दूध निकालने तक सीमित नहीं है। आर्गेनिक उत्पादों की ओर बढ़ने से गोबर की खाद से भी कमाई हो सकती है।
सिंह का कहना है कि भारत की नौकरी में पशुपालन और उससे जुड़े क्षेत्र का लगभग 4 प्रतिशत योगदान है। गुजरात के बाद कर्नाटक इस मामले में सबसे ज्यादा उभरता हुआ राज्य है। जबकि, सबसे अधिक वयस्क जीव आपस में हैं, लेकिन सहकारी संघ के ‘सरकारीकरण’ होने की वजह से यहां पर कॉपरेटिव सक्सेज नहीं हो सकते। अभी, कोरोना वायरस की वजह से स्थिति में ग्रामीण उद्योग को मजबूत करने के लिए सभी राज्यों को दुग्ध सहकारी व्यवस्था ठीक करनी चाहिए। शहर में ज्यादातर लोग 10-15 हजार रुपये ही कमा रहे थे। इतना पैसा तो वे दो-तीन पशु से घर पर ही कमाई कमा सकते हैं।

गाँव से शहर तक कैसे पहुँचता है दुग्ध
पशुपालन और दायरे राज्य संजीव बालियान ने 19वीं रिकॉर्ड गणना का हवाला देते हुए 3 दिसंबर 2019 को एक हफ्ते में बताया था कि 104.52 मिलियन ग्रामीण परिवार निगम व्यवसाय में मंत्री बने हैं। जितने सबसे ज्यादा लोग भूमिहीन या सीमांत किसान हैं।
भोजन से ज्यादा दूध से आय-नेशनल अकाउंट स्टेटिक्स 2019 के अनुसार 2017-18 में दूध से होने वाली आय 7,01,530 करोड़ रुपए है जो खाद्यान्नों से होने वाली आय से भी अधिक है। जाहिर है व्यवसाय में किसानों की आय की व्यापक क्षमता है। क्योंकि इस क्षेत्र में काफी जिम्मेवारी के बावजूद किसी व्यक्ति के दूध की दरें अभी भी सिर्फ 394 ग्राम ही हैं। इसलिए ज्यादातर दूध घरेलू खपत में ही इस्तेमाल होता है। भारत में प्रति दिन 50 करोड़ दूध पैदा होता है। इसमें से करीब 20 करोड़ लीटर का खुद किसान इस्तेमाल करता है। जबकि 30 करोड़ का मार्केट मार्केट में आता है।
रोजगार की काफी अनुमान, इंफ्रास्ट्रक्चर की जरूरत-इंस्टीट्यूट ऑफ रूरल गुजरात में वर्गीज कुरियन सेंटर ऑफ एक्सीलेंस के सलाहकार संदीप दास कहते हैं कि कोरोना वायरस काल के संकोच करने वाले माहौल में भी सेक्टर बेफिक्र होकर काम कर रहा है। इतनी बड़ी आबादी वाले देश में रोजगार पाने और देने का और बड़ा माध्यम बन सकता है। सरकार इसके लिए मदद भी कर रही है। कई प्रदेशों में इसकी संभावना बहुत अधिक है लेकिन इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं है। बल्क मिल्क कूलर (बीएमसी) जिसमें दूध को ठंडा किया जाता है, इसे बढ़ा देता है। यह यूपी जैसे बड़े राज्यों में काफी कम है।
दायरे के लिए कहां से मिलेगा फायदा-केंद्र सरकार की दायरे उद्यमिता विकास योजना (डीईडीएस) के अलावा राज्य सरकारें भी अपने-अपने स्तर पर इसके विकास के कार्यक्रम चला रही हैं। इनमें से 25 से लेकर 90 फीसदी तक की सब्सिडी है। झारखंड मिल फेडरेशन के एमडी सुधीर कुमार सिंह के मुताबिक बिहार में इसके लिए 50 में 57 प्रतिशत और झारखंड में 90 प्रतिशत तक सब्सिडी दी जाती है। जिसे भी पशुपालन के लिए सरकारी मदद की जरूरत है वो अपने जिला पशुपालन अधिकारी या विकास अधिकारी से संपर्क कर सकता है।

भारत में दूध उत्पादन से सबसे ज्यादा सीमांत किसान और भूमिहीन लोग जुड़े हुए हैं (प्रतीकात्मक फोटो)
सेंटर सरकार नाबार्ड के जरिए पशुपालन के लिए मदद देती है। दायरे उद्यमिता विकास योजना के तहत एक पशु पर 17,750 रुपये की सब्सिडी मिलती है। जबकि सामुदायिक प्रसारण और जन जाति के लिए यह राशि 23,300 रुपये प्रति पशु हो जाती है। मिल्केट उत्पाद बनाने की मशीन के लिए भी पैसा मिलता है।
पशुपालन और दायरे सेक्टर को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार राष्ट्रीय गोकुल मिशन, राष्ट्रीय दायरे विकास कार्यक्रम भी चला रहा है। इसकी मदद से दूध का ब्रैंड ब्रैंड ब्रैंड इंडेक्स जा सकता है।
दुनिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश-साल 2018-19 में भारत 187.7 मिलियन टन दूध का निर्माण कर रहा है। लगभग 20 अंशों के साथ हम दुग्ध उत्पादन में नंबर वन हैं। इसके पीछे बड़े अध्ययन हुए हैं। वर्ष 1950-51 में अपना देश स्नैपशॉट 17 मिलियन टन ही दूध पैदा करता था। लेकिन एक शख्स की कोशिश ने पूरी तस्वीर बदल दी। वो थे डॉ. वर्गीज कुरियन।
उन्हें भारत में श्वेत क्रांति के जनक के रूप में जाना जाता है। दूध की कमी से जूझने वाले भारत को कुरियन ने दुनिया का सबसे ज्यादा दूध उत्पादन करने वाला देश बनाने में अहम रोल अदा किया। केरला के रहने वाले कुरियन की लीडरशिप में नेशनल स्कोप बिलबोर्ड (एनडीडीबी) ने 1970 में ‘ऑपरेशन फ्लड’ की शुरुआत की, जिससे भारत दुनिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश बन गया।
आमाशय की क्या स्थिति है?
-20वीं पशुधन गणना के अनुसार इस घृत देश में कुल पशु आबादी 535.78 मिलियन है जो 2012 की तुलना में 4.6 प्रतिशत अधिक है।
-मादा निर्देशांक (गायों की कुल संख्या) 145.12 मिलियन प्रॉक्सी हुई है जो पिछली गणना (2012) की तुलना में 18.0 प्रतिशत अधिक है।
-देश में भैंसों की कुल संख्या 109.85 मिलियन है जो पिछली गणना की तुलना में लगभग 1.0 प्रतिशत अधिक है।
-भारत के कुल दूध उत्पादन में क्रास बीड कर्मचारियों का योगदान 28 प्रतिशत है। ज्यादा दूध देने की वजह से क्रास बीड रेट बढ़ रहे हैं।
-राष्ट्रीय गोकुल मिशन के माध्यम से देशी नस्लों के संरक्षण को बढ़ावा देने के प्रयासों के बावजूद देशी प्रतिनिधियों की आबादी में 6 प्रतिशत की गिरावट देखी गई है। यूपी एमपी, राजस्थान और महाराष्ट्र में ऐसा सबसे अधिक हुआ है।

भारत में मांडा डेस्कटॉप (गायों की कुल संखया) 145.12 मिलियन प्रॉक्सी है
गाय का दूध और बोतलबंद पानी का रेट बराबर
दूध उत्पादन में हम काफी दलाली कर रहे हैं लेकिन कुछ राज्यों को छोड़ दें तो किसान इसकी सही कीमत के लिए ला रहे हैं। यूपी में गाय का दूध और खाड़ी बंद पानी की लगभग एक ही कीमत है। किसान शक्ति संघ के अध्यक्ष पुष्पेंद्र चौधरी कहते हैं कि पशुपालक दूध तो पैदा कर सकते हैं लेकिन उनकी सही कीमत पकड़ना सरकार का काम है। सही कीमत न मिलने की वजह से लोग पशुपालन से घबराते हैं। इसलिए दूध के लिए भी न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की व्यवस्था लागू करें। इसके लिए आंदोलन भी विफल हो गया है।
दूध का दाम कैसे तय होता है
दूध का सही रेट न मिलने की समस्या आम है। दरअसल, दूध में मौजूद वसा और एसएनएफ (सॉलिड-नॉट-फैट) के आधार पर इसका डैम तय होता है। कमजोर दूध के जो बांध तय करती है वो 6.5 प्रतिशत का शिकार और 9.5 प्रतिशत एसएनएफ का होता है। इसके बाद जिस मात्रा में वसा कम होता है उसी तरह घट कीमत रखी जाती है।
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प्रथम प्रकाशित : 08 मई, 2020, 05:51 IST













