
UNITED NEWS OF ASIA. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में बुधवार को हुई ‘सुपर कैबिनेट’ मीटिंग में केंद्र सरकार ने एक ऐतिहासिक फैसला लेते हुए आगामी जनगणना में जाति आधारित गणना को शामिल करने की मंज़ूरी दे दी है। यह स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार होगा जब केंद्र सरकार आधिकारिक तौर पर जातिगत आंकड़ों को जनगणना में दर्ज करेगी।
केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने प्रेस ब्रीफिंग में बताया कि इस फैसले को कैबिनेट कमेटी ऑन पॉलिटिकल अफेयर्स (CCPA) की बैठक में मंजूरी दी गई है। उन्होंने कहा कि यह निर्णय सामाजिक ताने-बाने को समझने के लिए आवश्यक है और इसका उद्देश्य समावेशी नीति निर्माण को सशक्त करना है।
बिहार से मिली प्रेरणा, अब राष्ट्रीय स्तर पर पहल
बता दें कि बिहार में नीतीश कुमार सरकार ने हाल ही में राज्य स्तर पर जातीय सर्वे कराया था, जिसे विपक्षी दलों ने राष्ट्रीय स्तर पर लागू करने की मांग की थी। इस मांग को लेकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी लगातार केंद्र पर दबाव बना रहे थे। अब केंद्र के इस फैसले को बिहार चुनाव से पहले मास्टरस्ट्रोक के रूप में देखा जा रहा है।
अलग सर्वे नहीं, जनगणना के साथ होगी जाति गिनती
अश्विनी वैष्णव ने स्पष्ट किया कि यह गिनती किसी अलग सर्वे के रूप में नहीं, बल्कि आगामी जनगणना प्रक्रिया का हिस्सा होगी। उन्होंने कहा, “कुछ राज्य सरकारों ने अपनी-अपनी राजनीतिक प्राथमिकताओं के आधार पर जातीय सर्वे कराए हैं, लेकिन अब ज़रूरत एक राष्ट्रीय दृष्टिकोण की है।”
कांग्रेस पर निशाना
केंद्रीय मंत्री ने कांग्रेस को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि 1947 के बाद से कांग्रेस सरकारों ने कभी जाति जनगणना को गंभीरता से नहीं लिया। उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस ने केवल ‘जाति सर्वे’ करवाए, वो भी राजनीतिक फायदे के लिए।
कैबिनेट के दो और बड़े फैसले
शिलॉन्ग-सिलचर हाईस्पीड कॉरिडोर:
कैबिनेट ने 166 किमी लंबे, छह लेन वाले हाईस्पीड कॉरिडोर को मंजूरी दी है जो मेघालय के शिलॉन्ग को असम के सिलचर से जोड़ेगा। इस प्रोजेक्ट पर 22,864 करोड़ रुपये खर्च होंगे। यह नॉर्थईस्ट में कनेक्टिविटी और व्यापारिक विकास को नई ऊंचाइयों तक ले जाएगा।गन्ना किसानों के लिए बड़ी राहत:
सरकार ने 2025-26 के लिए गन्ने की फेयर एंड रिम्युनरेटिव प्राइस (FRP) को बढ़ाकर ₹355 प्रति क्विंटल कर दिया है। यह न्यूनतम समर्थन मूल्य है, इससे कम दाम पर गन्ना नहीं खरीदा जा सकेगा।
जाति जनगणना का यह निर्णय न केवल सामाजिक न्याय की दिशा में बड़ा कदम है, बल्कि यह चुनावी राजनीति और नीति-निर्माण के परिदृश्य में भी व्यापक प्रभाव डाल सकता है। आने वाले दिनों में इसका सामाजिक और राजनीतिक असर दूरगामी होने की संभावना है।
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