
UNITED NEWS OF ASIA. जगदलपुर । अक्सर यह शिकायत मिलती है कि बरसात या कठिन परिस्थिति में कई शिक्षक स्कूल तक नहीं पहुँचते। लेकिन बस्तर संभाग के बीजापुर जिले के तुड़का गांव की शिक्षा दूत गौतमी हेमला ने इस धारणा को तोड़ते हुए एक मिसाल पेश की है।
गौतमी प्रतिदिन अपने जीवन को जोखिम में डालकर तोड़ा पारा कोरचूली प्राथमिक शाला तक पहुँचती हैं। उनके गाँव से स्कूल का रास्ता दुर्गम है, नाले पर पक्का पुल नहीं होने के कारण बरसात में केवल लकड़ी का अस्थायी पुल ही सहारा बनता है। इसी खतरनाक रास्ते को पार करते हुए वे रोजाना 8 किलोमीटर पैदल चलकर बच्चों तक शिक्षा पहुँचाती हैं।
सुबह 8.30 बजे घर से निकलकर लगभग 10 बजे स्कूल पहुँचने वाली गौतमी बताती हैं कि आज उनके स्कूल में 82 बच्चे पढ़ रहे हैं और बच्चों में पढ़ाई को लेकर उत्साह निरंतर बढ़ रहा है।
लेकिन संघर्ष सिर्फ रास्ते का ही नहीं है। गौतमी को हर महीने 12,500 रुपये वेतन तय है, परंतु हाथ में केवल 10,000 रुपये ही मिलते हैं, जबकि उनसे पूरी राशि की सैलरी शीट पर हस्ताक्षर कराए जाते हैं। उनकी मांग है कि शिक्षा दूतों को सहायक शिक्षक का दर्जा दिया जाए और वेतन में पारदर्शिता लाई जाए।
बस्तर जैसे नक्सल प्रभावित इलाके में शिक्षा दूतों पर हमलों की घटनाएं आम हैं। गौतमी भी इस खतरे से अनभिज्ञ नहीं हैं। उनका कहना है – “डर हमेशा बना रहता है, लेकिन बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेदारी उस डर से कहीं बड़ी है।”
हर दिन सुबह 8 किलोमीटर का पैदल सफर तय कर बच्चों तक ज्ञान की रोशनी पहुँचाना और फिर शाम को उतना ही पैदल चलकर घर लौटना, गौतमी को बस्तर की उन असली शिक्षा सेनानियों की कतार में खड़ा करता है, जिन पर आने वाली पीढ़ी गर्व करेगी।
यह रिपोर्ट शिक्षा दूत गौतमी जैसी समर्पित शिक्षिकाओं की जिजीविषा और संघर्ष को उजागर करती है, जो विपरीत परिस्थितियों में भी शिक्षा का दीप जलाए रखे हुए हैं।
क्या आप चाहेंगे कि मैं इस खबर में गौतमी जैसी शिक्षा
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