
अंबिकापुर समाचार: छत्तीसगढ़ का सरगुजा संभाग मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, झारखंड और ओडिसा जैसे राज्यों के सरहद से लगता है। इसकी वजह से दूसरे प्रदेश के लोग छोटे-बड़े व्यापार की संपत्ति में सरगुजा संभाग के विभिन्न भिन्न रूप में आते हैं। इनमें सबसे अधिक तादाद में लोग हैं। संभाग मुख्यालय अंबिकापुर का रुख करते हैं.इतना ही नहीं पिछले एक दशक से ज्यादा समय में तेजी की पड़ोसी में पड़ोसी के झटके के लोगों की भी आमदफ्त भी यहां हुई है तेज. इससे सरगुजा में असमंजस-किस्म के कनेक्शन की संख्या मिलती है। ऐसे में पुलिस ना ही बाहर से आए लोगों की मुसाफिरी दर्ज करने में जल भराई है और ना ही किराए के मकान में रह रहे लोगों की पहचान के लिए कोई ठोस कदम उठाना है। इससे अपराधियों के हौसले वादा करते हैं।
बिना पहचान के आटो वाले
पिछले एक दशक में सरगुजा संभाग मुख्यालय अंबिकापुर में रिक्शे की संख्या में कमी के साथ आटो और इलेक्ट्रिक रिक्शे की संख्या अब भी है। इससे कुछ साल पहले शहर में संचालित ऑटो और एटो चालकों की पहचान का विशेष अंकन किया गया था। इसके तहत इसके तहत चालकों के नाम, पता और मोबाइल नंबर लिखना अनिवार्य कर दिया गया था। इसलिए ही चालकों को नेम प्लेट में शामिल होना अनिवार्य नहीं था। उस समय के पुलिस अधिकारियों द्वारा इस नियम को कायम नहीं रखा गया था। आज आलम ये है कि आज शहर में संचालित सैकड़ों आटो चालकों में गिने फिर आटो चालक ही इन सूचनाओं का पालन कर रहे हैं। इससे आटो में बैठने वाले मुशाफिरों को ये पता ही नहीं चलता कि वो किसके साथ आटो की सवारी कर रहे हैं और यात्रा के दौरान उनके साथ कैसा बर्ताव होने वाला है।
कार पर काली फिल्म और स्टाइलिश नंबर प्लेट
अंबिकापुर शहर में हमेशा देखा गया है कि ट्रैफिक पुलिस वाले दो पहिया वाहन और कार्गो ट्रकों के चालकों को रोक-रोक कर समय-समय पर उनके दस्तावेज़ की जांच कर पोस्टर चलते रहते हैं। लेकिन लग्जरी कार में भविष्यवाणी को ताक में रहने वाले कार चालकों को रुकवाने की जामत ट्रैफिक पुलिस या जिला पुलिस टीम कभी नहीं उठाती है। इस वजह से शहर में काफी संख्या में ऐसी लग्जरी कार दौड़ती नजर आ सकती है, जिसमें काली फिल्म लगी है। कुछ वर्षों में काली फिल्म काफी महत्वपूर्ण हो गई है।दरअसल सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश- अलर्ट और अलर्ट अलर्ट के अनुसार काली फिल्म पर महत्वपूर्ण कार्रवाई की जा सकती है। पर ना जाने पुलिस और ट्रैफिक पुलिस को इसके लिए किस दिन और मुहूर्त का इंतजार है।
वहीं आरटीओ विभाग के अनुसार बताने के अनुरूप नंबर सीधे और सरल शब्दों में लिखा जाता है। शब्दों में। ऐसे मामलो में पुलिस या आरटीओ विभाग कार्रवाई करने के बजाय दूसरे कामों में लगा रहता है।
पुलिस दर्ज नहीं करवाती है मुसाफिरी
कई राज्यों की सीमा से लगे सरगुजा संभाग और मुख्यालय अंबिकापुर में काम की तलाश में हर साल सैकड़ों लोग आते हैं। ये लोग शहर के किनारों के वार्डों में बने किराए के मकान में रहते हैं। शहर के दोनों थाना इलाकों के इन वार्डों में किराए के मकान का दायरा ढका हुआ कारोबार है। इन किराए के मकान में आने वाले लोगों की पहचान के लिए ना ही मकान मालिक उनकी सहमति की गारंटी है और ना ही उनकी पहचान वाले कोई दस्तावेज आपके पास रखता है। रह रहे हैं। वे असामाजिक और आपराधिक कार्यों को आसानी से अंजाम देते रहते हैं। हालांकि पुलिस को ऐसे घर की समय-समय पर हिदायत देकर मुसाफिरी दर्ज कराने का निर्देश दिया जाना चाहिए। अन्य में काम में व्यस्त पुलिस को इतने जरूरी काम के लिए सटीक समय नहीं है.इससे अपराध होने के बाद पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी रहती है.
पुलिस का क्या कहना है
इस संबंध में एबीपी न्यूज ने सरगुजा एसपी सुनील शर्मा से चर्चा की.इस पर उन्होंने कहा कि इन विषयों को लेकर अभियान चलेगा.पुलिस अधिकारियों को जल्द ही कार्रवाई की जाएगी.
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