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बुरी आदतों में एक साथ 11 लोगों की संदिग्ध आत्महत्या पर बनी डॉक्यूमेंट्री झकझोर देती है – News18 हिंदी

हाउस ऑफ सीक्रेट्स: द बुरारी डेथ्स रिव्यू: मधुबनी, बिहार से आएं और दिल्ली में झुग्गी के बच्चों को मुफ्त शिक्षा देने के समाजोपयोगी कार्य में लगे युवक संजीव झा ने 2013 में अपनी यात्रा शुरू की। वो आम आदमी पार्टी के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़े। 2015 में चुनाव फिर हुए और वो एक बार फिर जीत गए। अन्ना हज़ारे के ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन’ में संजीव महती की भूमिका निभाई। जमीन से जुड़े इस वर्ककर्त्ता को अरविंद केजरीवाल ने बीजेपी के गढ़ में सेंध लगाने के लिए तैयार किया. पूरी शिक्षा और राजनीति एक तरफ और अपने विधानसभा क्षेत्र में एक ही परिवार के 11 लोगों द्वारा एक साथ की गंभीर संदिग्ध आत्महत्या का दूसरी तरफ सामना करना। संजीव झा के विधानसभा क्षेत्र में संत नगर के दो मंजिला मकान में 1 जून 2018 को चुण्डावत उरी भाटिया परिवार के 11 लोगों की लाशें मिलीं। 10 तो छत पर फंदा कर लटके मिले थे और सबसे सीनियर, उनकी माताजी के दूसरे कमरे में गाला घोंट कर हत्या कर दी गई थी। दिल्ली ही नहीं पूरा देश इस घटना से कांप गया था। ट्रू राइट डॉक्यूमेंट्री ‘हाउस ऑफ़ सीक्रेट्स : द बैडराइट डेथ्स’ ने इस अपराध के पीछे मनोवैज्ञानिक को समझने की कोशिश की है।

फिल्म निर्माता लीना यादव और उनकी फिल्म ‘राजमा राइस’ में उनके बेहतरीन अनुभव चोपड़ा ने मिल कर इस खूंखार और दिल दहलाने वाले ट्रू क्राइम डॉक्यूमेंट्री का निर्देशन किया है। ये चेताना ठीक होगा कि पकड़ा दिल वाले इसे न ही देखें। हालांकि जुगुप्सा पैदा करने वाला कोई दृश्य नहीं है और न ही लाशों को लटकते हुए दिखाया गया है। इस डॉक्यूमेंट्री का संगीत, फ़िल्मांकन और एक-एक व्यक्ति का साक्षात्कार इतना ह्रदय विदारक है कि आप बरबस ही कांप हैं। भारत में इस तरह की डॉक्यूमेंट्री का रिस्क नहीं है, जबकि फ्लेक्स पर इस तरह की कई एलियन डॉक्युमेंट्री मौजूद हैं और उन्हें लोग बहुत पसंद करते हैं। हाउस ऑफ सीक्रेट्स’ इस तरह का पहला भारतीय डॉक्यूमेंट्री है जो एक जाघन्य अपराध के पीछे के मनोवैज्ञानिक को खंगालती है। परिवार के एक शख्स की बिगड़ी हुई मानसिक स्थिति से विभ्रम की परिस्थितियां कैसे सामने आती हैं और पूरा परिवार एक अननी डर की वजह से, जो उन्हें कहता है वो करता है। दुःख ये है कि वो इस बार अपनी नौकरी पकड़ रहे हैं।

80 साल की नारायणी देवी, उनकी बड़ी बेटी प्रतिभा भाटिया (57 साल) और उनकी बेटी प्रीति (33 साल), बड़ा बेटा भवनेश (50 साल), उनकी पत्नी सविता (48 साल) और उनकी बेटियां नीतू (25 साल), मोनू ( 23 साल) और बेटा ध्रुव (15 साल)। नारायणी देवी का छोटा बेटा ललित (45 साल), उनकी पत्नी टीना (42 साल) और उनका सिंगलौता बेटा शिवम् (15 साल) सब एक साथ रहते थे। इस घटना का मुख्य कर धर्ता ललित था। वैसे तो ललित संगी और सुशील व्यक्ति था लेकिन एक रोड एक्सीडेंट में सिर पर चोट लगने से और बाद में एक और सिनिस्टर एक्सीडेंट की वजह से उसकी आवाज चली गई थी और उसके व्यक्तित्व में भयानक परिवर्तन आ गया था।

उसके पिता की मृत्यु 2007 में हुई और कुछ समय बाद ललित ने पूरे परिवार से कहा कि उसके पिता की आत्मा उसके अंदर आ गई है। घर को थोड़ा अजीब लगता है लेकिन काफी कुछ अपने पिता की तरह व्यव्हार करता था। उसकी कुछ बातें सामने आने लगीं। उसी के कहने पर घर के दावे की दुकान खोली और फिर प्लॉट और शटर की। घर का भाग्य निकला। ललित रोज एक डायरी में अपने पिता के वचन लिखता था और सभी घर के जानकारों को उसका पालन करना होता था। धीरे-धीरे सभी सदस्य डायरी क्रिएट करें। हर रोज की बातों के बारे में मार्ग पर कैसे जाएं जैसे धार्मिक विचार, किस दिन कौन सी पूजा होगी, किसको कौन क्या बोलेगा, सभी के व्यहार का विश्लेषण ऐसी सारी चीजें लिखी गई थीं। हालांकि आत्महत्या की रात को सब कुछ सामान्य था, आस-पड़ोस के लोग उनसे मिले, दुकान पर डील हुई यानी जीवन सामान्य रूप में था। फिर रात को पूरे परिवार ने एक साथ रस्सी, दुपट्टे, साड़ियों की मदद से छत से लटक कर फांसी लगा ली। नारायणी देवी चूंकि बूढी थी इसलिए वो लटक नहीं सकती थीं तो उनका गला अलग से आ गया था। कुछ सदस्यों के हाथ पैर बंधे हुए थे और सबकी आंखों पर पट्टी बंधी थी।

लीना यादव ने इस डॉक्यूमेंट्री के लिए काफी मेहनत की है। टेलीविज़न रिपोर्ट्स, अखबार की कटिंग, क्राइम रिपोर्टर्स से बातचीत और खास तौर पर मामलों से संबंधित सभी पुलिस अधिकारियों से बातचीत इस डॉक्यूमेंट्री का हिस्सा हैं। संत नगर के भाटिया परिवार के पड़ोसियों से बातचीत के दर्शकों को आप लाइक कर सकते हैं। चूंकि परिवार करीब 20 साल से इस इलाके में रहता था और उनकी दो श्रेणियां थीं, जहां रोजाना व्यापार होता था। इसके अलावा परिवार के सभी सदस्यों के आस-पास अच्छी जान पहचान थी। ललित के कुछ मित्रों से भी बातचीत की, जिन्होंने अंत में सभी के अंतिम संस्कार की जिम्मेदारी निभाई थी। अलग-अलग दोस्त, ललित की अलग-अलग छवि तस्वीरें हैं। सबसे खूंखार जमाकर्ता पुलिस वाले हैं जो सबसे पहले घटना स्थल पर पहुंचे और वे सभी शव घर की छत पर लगी जाली से लटके देखे और परिवार का पालतू कुत्ते पूरे समय जलते रहे। प्रत्यक्षदर्शियों के बयानों में एक ही बात थी जो दिमाग पर हाथ की तरह बजती है – अपनी जिंदगी में हमने ऐसा मंजार नहीं देखा और अब हम कभी इसे नहीं चाहेंगे।

इस डॉक्यूमेंट्री की कुछ ऐसी बातें हैं जो इसे बाकी किसी क्राइम डॉक्यूमेंट्री से बेहतर बनाती हैं। पुलिस वालों के इंटरव्यू में पुलिस वाले हंसते हुए जवाब देते हैं। क्राइम केसेस सुलझाना उनके लिए रोज का काम है। ऐसा खतरा मंजर देखने के बावजूद उन्हें सब दुख, हीन आसरे अगले मामले पर काम करने के लिए छोड़ देना है। पुलिस स्टेशन के एस स्नैपशॉट को देखकर आप हैरान हो सकते हैं। पुलिस कांस्टेबल सुबह सुबह जब मौका-ए-वारदात पर छोड़ दिया जाता है तो वो रात भर काम करके तनावग्रस्त हो जाता है और थोड़ी देर लेटना चाहता है लेकिन उसकी किस्मत उसे उसी के मोहल्ले ले जाती है। एक जगह लीना ने एक शॉट लगाया है, जिसमें पुलिसवाला फोन पर बात कर रहा है और वो फोन करने वाले को बताता है कि बाद में बात करते हैं फिर भी वह एक डॉक्यूमेंट्री की शूटिंग में लगा हुआ है। पुलिस का मानवीय चेहरा सिर्फ दया और करुणा का नहीं बल्कि छोटे सी का गौरव भी हासिल करता है। हालांकि साइबर कारणों के पास भेज दिया गया था, लेकिन इससे थाने वालों का रुतबा कम नहीं हो जाता। डॉक्यूमेंट्री में लीना और नामांकित ने जासूसी या घटना का नाट्य रूपांतरण जैसा गलती नहीं की है। पुलिस ने मामले को बंद कर दिया है और अब कोई भी नई जांच नहीं हो सकती है लेकिन इस सामूहिक आत्महत्या के पीछे मानसिक बीमारी को साइकोलॉजिस्ट की मदद से समझाने की कोशिश की जा रही है।

गुत्थी जो अब कभी नहीं सुलझेगी वो ये है कि 42 साल की पतली जिसकी दिमागी स्थिति, एक्सीडेंट और हत्या की कोशिश की वजह से ठीक नहीं थी, उसने कैसे घर के हर सदस्य को ये झांसा दिया कि उसके अंदर रहने की आत्मा है। ललित की मां को कैसा लगता होगा जब उनका बेटा उन्हें अपनी डायरी के जरिए निर्देश देता होगा? कैसे उनके बेटे और उनके बेटे को कुछ समझ में आएगा। ऐसा क्या मोह पाश होगा कि सभी सदस्य एक साथ मरने के लिए राजी भी हो गए। मौत के इस अनुष्ठान में पूरे परिवार ने क्यों की आहुति? इस मामले को मीडिया ने एक सर्कस में जोड़ दिया था। मार्किटर रिपोर्टर, कैमरामैन को चारों ओर सेघोटाले के साथ बैठे थे। एक भी मार्कर या मीडिया जानकारी के हाथ नहीं है इसलिए रिपोर्ट के आधार पर रिपोर्ट दिखाई दे रही थी। उस गली में रहने वाले किसी व्यक्ति की बातचीत को वास्तविक रहस्य कह कर टीवी पर दिखाया जा रहा था। इस सर्कस में पुलिस और क्राइम अक्षर ने चुप्पी साध रखी थी।

एआर रहमान की संगीत अकादमी, केएम म्यूजिक कंजर्वेट्री से प्रशिक्षित बच्चों के बैंड कुतुब-ए-कृपा ने इस डॉक्यूमेंट्री का म्यूजिक तैयार किया है। रहमान का सर पर हाथ हो तो टैलेंट निखर कर सामने आता है। म्यूजिक ने इस डॉक्यूमेंट्री को बदहाल होने से बचा रखा है। सैकड़ों घंटों की फुटेज एडिट करने के लिए भी 4 जोड़ी हाथ लगे हैं – जेम्स हेगुड़, ज़ैकरी काश्केट, एम मेलियानी और टमाटर राव। डॉक्यूमेंट्री के सह-निर्देशन का अनुभव चोपड़ा के पास न जियेंगे न आएंगे करीब दिल्झरा जैसे करीब एक दर्ज फिल्मों में बड़े निर्देशन के साथ सहायक निर्देशन के तौर पर काम किया है। मूलतः जालंधर के अनुभव ने सिनेस्तान की स्क्रिप्ट राइटिंग कम्पटीशन में चौथा स्थान हासिल किया था। लीना यादव पुराना नाम हैं। उनके द्वारा निर्देशित कुछ फिल्में हैं – ‘शब्द’, ‘तीन पत्ती’, ‘पार्च्ड’, और ‘राजमा राइस’। अपने करियर के शुरू में उन्होंने ‘से ना समथिंग टू अनुपम अंकल’ नाम का टेलीविजन शो भी निर्देशित किया था। लीना के सभी शेड्यूल इस डॉक्यूमेंट्री के प्रोड्यूसर भी हैं। एससी बज थियेटर निश्चित रूप से मशहूर हस्ती राम बजाज बजाज के बेटे हैं और लता मंगेशकर के आने वाले (महल) गीत के संगीत निर्देशक खेमचंद प्रकाश के नाती हैं।

11 लोगों की मौत। 11 लोगों की आत्महत्या। 11 लोगों की लिखी गई डाइट का योग। ये डायज भी 11 साल से लिखे जा रहे थे। मनोविश्लेषक की बात करना तो भारत के अधिकांश परिवार इसी प्रकार के हैं। अन्धविश्वास, किसी एक व्यक्ति को छोड़कर पूरी तरह से तर्क भूत-प्रेत-आत्मा जैसी बातें करना, पूजा-पाठ के नाम पर ऐसी धार्मिक क्रियाएं करना, जो शर्त को नुकसान पहुंचा सकता है। इस दस्तावेज़ को देखिये. शायद आपके आस-पास होने वाले ऐसे किसी हादसे को रोक सकेंगे।

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Saurabh Namdev

| PR Creative & Writer | Ex. Technical Consultant Govt of CG | Influencer | Web developer
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