एंटरटेनमेंट

डॉक्टर जी मूवी रिव्यू उम्रष्मान खुराना की ये दवाई तो दमदार है, पर असर करती है स्‍लो-स्‍लोय…

नई दिल्ली: डॉक्टर जी मूवी रिव्यू हिंदी में: आयुष्मान खुराना (आयुष्मान खुराना) और रकुलप्रीत सिंह (रकुलप्रीत सिंह) स्टारर फिल्म ‘डॉक्टर जी’ (डॉक्टर जी) आज सिनेमाघरों में र‍िलीज हो चुकी है। पिछले कुछ समय से हिंदी सिनेमा पर सामग्री की कमी, सीर्फ रीमेक बनाकर कई तौहमतें लग रही हैं। लेकिन जब सामग्री की हो तो आयुष्मान खुराना से उमड़ें हमेशा ही बहुत ज्‍यादा होती हैं। इस फिल्म के ट्रेलर के बाद से ही आयुष्मान की इस फिल्म से दर्शकों को खासी उमड़ें थे। ट्रेलर में शेफाली शाह की एंट्री भी फैंस के बीच गजब का क्रेज सींक थी। आयुष्मानमान खुराना की डॉक्टर जी एक बार फिर एक ऐसे दृश्य को दर्शकों के सामने लाए हैं, जो इससे पहले पर्दे पर कभी नहीं पहचाना गया है। चलिए आपको स्टेटमेंट देते हैं कि सिनेमा की क्लास में नंबर से पास होते हैं ये डॉक्टर जी।

कहानी- इस फिल्म की कहानी है भोपाल में रहने वाले उदय गुप्त (आयुष्मान खुराना) के जो एमबीबीएस कर चुके हैं और अब पीजी में एडमीशन लेना चाहते हैं। पीजी में वह हैदराबादी (हड्डियों से संबंध) लेना चाहते हैं, पर अपनी कम रैंक के चलते उन्हें मतदाताओं में सीट ही नहीं मिलती, जग‍ह्‍मिलती है गायन विज्ञान में यानी प्रसूती व स्‍त्री रोग विभाग। उदय किसी भी हालत में ग्रामीणपेडी में प्रवेश लेना चाहते हैं क्योंकि वह ‘मर्दों’ के लिए सूट करने वाला है, जबकि शिक्षा विज्ञान में एडमिशन उन्ही शर्मिंदगी का अनुभव पहले से है। इसी विभाग में उनके सीन हैं फातिमा (रकुलप्रीत सिंह), जिस तरह से उन्हें प्यार भी होता है। बस यही है राइज का स्ट्रगल और इस स्ट्रगल में उसके एचओडी तरीके हैं। नंदिनी (शेफाली शाह) जो उसे ‘मेल-टच’ खत्‍म करने की सलाह देती हैं, इस ‍विभाग में अभियान चला रही है।

पहली फिल्म के कांसेप्‍ट की बात करें तो मैं आकांक्षा चाहता हूं जो किसी निरदेशक की कुरसी पर बैठें अनुभूती कश्‍यप की जिन्‍ये इस बोल्‍ड मेडिकल कॉमेडी ड्रामा को पर्दे पर लाने की कोशिश कर रहे हैं। कहा ये फिल्म भले ही मेडिकल कॉलेज के इर्द-गिरद गुथी गई हैं, जिस में हर मर्द वाले पत्ते में ही एडमीशन चाहते हैं, औरतों वाले गायन विज्ञान में नहीं। लेकिन ये कहानी मह‍िलाओं के प्रति पुरुषों की सोच और कई काम और प्रोफेशन्स को ‘मर्द-औरत’ में शेयरने की कोशिश को ब्यां करती है। एक सीन में फिल्म के हीरो से पूछा जाता है कि उसे ‘गायनेक’ लेने के लिए कहा गया है। तो वो कहता है, ‘मैंने अपने मोहल्ले में लड़कों को क्रिकेट खेलते देखा है और लड़कियों को बैडमिंटन। अब मैं बदमिंटन कैसे खेल सकता हूं यार…’ बस ऐसे ही समाज में बहुत कुछ ‘औरतों के लिए’ और ‘मर्दों के लिए’ बांट रखा है।

डॉक्टर जी, फिल्म समीक्षा, आयुष्मान खुराना, रकुल प्रीत, डॉक्टर जी फिल्म समीक्षा, डॉक्टर जी समीक्षा, शेफाली शाह डॉक्टर जी, डॉक्टर जी फिल्म समीक्षा हिंदी में, आयुष्मान खुराना, डॉक्टर जी

उम्रष्मान खुराना इस फिल्म में भी अपने किरदार में बहुत जंचे हैं।साथ ही सालों से रोमांस के नाम पर ‘एक लड़का और एक लड़की कभी दोस्‍त नहीं हो सकती…’ सोच को परोसने वाले सिनेमा में पहली बार द‍िखाया गया है कि ‘जैसे दो लड़के दोस्‍त हो सकते हैं, लड़कियां दोस्‍त हो सकती हैं वैसे ही एक लड़का और लड़की भी घबराई हुई हो सकती हैं। ‘प्यार का पंचनामा’ सहित कई फिल्मों में ये ‘सत्य’ स्‍थापित करने की कोशिश की गई है कि एक लड़की की, लड़के से दोस्‍ती ‘उसके दूर बैठे बॉयफ्रेंड से पूरी न दिखने वाली जरूरत पूरी करने के लिए है।’ पर ये फिल्म आपके सालों पुराने इस कॉन्सेप्ट को तोड़ने की कोशिश करती है। पर इस बेहद जरूरी और अहम कॉन्सेप्ट वाली इस फिल्म में खामी है कि अपनी ये दोनों चीजें करने में ये काफी धीमी हो जाती है। खासकर ये दूसरा वाला मामला।

फिल्म के पहले ही सीन से आपको अंदाजा लग जाता है कि ये हीरो एक ऐसा मर्द है, जिसके लिए औरत की बात मुश्किल है। लेकिन ये बात इतनी बार दोहराई गई है कि आपको राइज ज्यादा सही लग रहा है। इस फिल्म में कई सीन ऐसे हैं, जब आपको लगता है कि शायद और कुछ कहा जाएगा, तो कुछ सीन खत्‍म हो जाते हैं। सालों से एक सोच के साथ पता चलता है कि एक बेडमिंटन खेलकर चमत्कारी‍क रूप से सब कुछ आपके लिए समझ में नहीं आता है। उम्रष्मान खुराना इससे पहले भी बेहद बोल्ड विषय और कहानियों को पर्दे पर उतारते रहे हैं। चाहे समलैंगिकता हो या फिर दुर्बलता पर बनी फिल्म, आयुष्मान की सभी फिल्मों में कॉमेडी और इंटरटेनमेंट का फेक्टर काफी ऊंचा रहता है। शायद यही वजह है कि उनके द्वारा पिल्लई जाने वाले बोल्ड विषय की सख्त ऑडियंस को कडवी नहीं लगती। लेकिन डॉक्टर जी में आपको पेट पकड़कर हंसने वाले पल कम ही मिलेंगे। ये एक मेडिकल-कॉमेडी-ड्रामा है पर इसमें मेडिकल और ड्रामा काफी ज्‍यादा हो गया है और कॉमेडी गुमशुदा है। फिल्म का पहला हाफ फिर भी हलका है पर सेकंड हाफ में कहानी पूरी तरह से पलट जाती है। दूसरी छमाही में थोड़ी भारी भी हो जाती है।

डॉक्टर जी, फिल्म समीक्षा, आयुष्मान खुराना, रकुल प्रीत, डॉक्टर जी फिल्म समीक्षा, डॉक्टर जी समीक्षा, शेफाली शाह डॉक्टर जी, डॉक्टर जी फिल्म समीक्षा हिंदी में, आयुष्मान खुराना, डॉक्टर जी

शेफाली शाह इस फिल्म में गायनकोलॉजी में भाग के प्रमुख बने हुए हैं।

बॉल की बात करें तो हमेशा की तरह उम्रष्मान खुराना आपके किरदार में पूरी तरह फिट और जबर्दस्‍त रहे हैं। अक‍सर हमारी फिल्‍मों का हीरो गलत से गलत काम करके भी अपनी बेकस्‍टोररी में इमोशंस का भरपूर ड्रामा रखता है, ताकि वो गलत हो भी कभी गलत न लगे। पर स्‍क्रीन पर अपने क‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍म‍ियों के साथ‍ उसे ‘हीरो’ बनाता हूं और दर्शकों से जोड़ने की कला इस अभ‍िनेता के पास अद्भुद है। शेफाली शाह, एचओडी के किरदार में जबरदस्‍त रही हैं। उनके डायलॉग्स, उनका अंदाज शानदार है। शेफाली जब-जब स्‍क्रीन पर आई हैं, तब स्‍क्रीन पर उनके अलावा आप किसी को महसूस नहीं कर पाएंगे। वहीं उम्रष्मान की मां के किरदार में शीबा चड्ढा का किरदार मजेदार हो रहा है। बल्की पूरी फिल्म में किसी की प्रजेंस से आपको हंसी आएगी तो वो हैं शीबा। रकुल अपने प्रीति सीन्‍स में अच्‍छी लगी हैं।

डॉक्‍टर जी एक शानदार कॉन्‍सेप्‍ट धीमी कहानी है, जिन कलाकारों ने अदायगी करने में कमी नहीं छोड़ी है। बस इस कहानी को उस पैने तरीके से नहीं कहा गया, जितनी धार होनी चाहिए थी। इस फिल्म को एक बार तो पर्दे पर आपको जरूर देखना चाहिए। मेरी तरफ से इस फिल्म को 3 स्‍टारर।

विस्तृत रेटिंग

कहानी :
स्क्रिनप्ल :
डायरेक्शन :
संगीत :

टैग: आयुष्मान खुराना, रकुल प्रीत सिंह

Show More

Saurabh Namdev

| PR Creative & Writer | Ex. Technical Consultant Govt of CG | Influencer | Web developer
Back to top button

You cannot copy content of this page