
मामले की पृष्ठभूमि
यह विवाद तब शुरू हुआ जब राज्य सरकार ने प्राइमरी स्कूलों के सहायक शिक्षक पदों पर BEd डिग्रीधारी अभ्यर्थियों की नियुक्ति की, जो नियमों के खिलाफ थी। DLEd डिग्रीधारियों ने इसे चुनौती दी। हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने इस भर्ती को अवैध ठहराया और अयोग्य शिक्षकों की नियुक्तियां निरस्त कर DLEd डिग्रीधारियों को नियुक्ति देने का आदेश दिया।
कोर्ट की सख्त टिप्पणी
सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने सरकार की देरी पर नाराजगी जताई। कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट निर्देशों के बावजूद सरकार समय सीमा का पालन नहीं कर रही। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद समय बढ़ाने का अधिकार हाईकोर्ट के पास नहीं है। अब बहानेबाजी नहीं चलेगी, या तो सुप्रीम कोर्ट का स्टे आर्डर लाएं या फिर आदेश का पालन करें।
2855 BEd डिग्रीधारी शिक्षकों की नियुक्ति निरस्त
हाईकोर्ट के आदेश के बाद राज्य सरकार ने 2855 अयोग्य शिक्षकों की सूची तैयार की है, जिनकी नियुक्तियां रद्द की जाएंगी। सरकार ने हाईकोर्ट में यह जानकारी दी है। हालांकि, DLEd डिग्रीधारियों की तरफ से तर्क दिया गया कि 984 पदों को लेकर कोई स्पष्टता नहीं है। याचिकाकर्ताओं ने मांग की कि इन पदों की स्थिति स्पष्ट की जाए और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत योग्य DLEd अभ्यर्थियों को तत्काल नियुक्ति पत्र जारी किए जाएं।
सरकार पर बढ़ा दबाव
हाईकोर्ट ने कहा कि यह मामला लंबे समय से लंबित है, और अब इसे जल्द सुलझाना होगा। पिछली सुनवाई में सरकार को 21 दिनों के भीतर सूची तैयार करने का निर्देश दिया गया था, जिसे समय पर पूरा नहीं किया गया। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि नई नियुक्तियों में देरी का बहाना अब स्वीकार्य नहीं होगा।
आगे की प्रक्रिया
अब सरकार के पास 15 दिन का समय है। यदि तय सीमा में प्रक्रिया पूरी नहीं होती, तो यह मामला अवमानना की ओर बढ़ सकता है। हाईकोर्ट के इस सख्त रुख ने शासन पर दबाव बढ़ा दिया है। वहीं, DLEd अभ्यर्थियों को अब न्याय की उम्मीद है।
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