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धीरेंद्र शास्त्री रो | महाराष्ट्र बागेश्वर लेकर धीरे-धीरे शास्त्री को मचा घमसान, कांग्रेस अध्यक्ष नाना पाटोले ने सीएम और डिप्टी सीएम को लिखी चिट्ठी

फ़ाइल तस्वीर

नई दिल्ली/मुंबई। महाराष्ट्र (महाराष्ट्र) में एक बार फिर बागेश्वर धाम वाले धीरे-धीरे ग्रेजुएट शास्त्री (धीरेंद्र शास्त्री) के कार्यक्रम को लेकर घमासान जुड़ा हुआ है। जी हां, अब महाराष्ट्र के कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष नाना पाटोले (नाना पटोले) ने राज्य के नंबर एकनाथ शिंदे (एकनाथ शिंदे) और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को पत्र लिख बागेश्वर महाराज ग्रेडेंद्र शास्त्री के किसी भी कार्यक्रम के लिए महाराष्ट्र में लाइसेंस ना देने की बात कही है।

जानकारी हो सकती है कि महाराष्ट्र में इससे पहले नागपुर में धीरे-धीरे होने वाली शास्त्री की एक घटना हो गई है। वहीं इस बाबत कांग्रेस नेता नाना पटोले ने अपने पत्र में लिखा है कि, महाराष्ट्र के बहुत ही प्रगतिशील राज्य है और अंध विश्वास फैलाने वालों के लिए इस राज्य में कोई जगह नहीं है।

इसके साथ ही पत्र में उनका यह भी तर्क था कि कथावाचक धीरे-धीरे शास्त्री ने जगतगुरु संत तुकाराम महाराज का अपमान कर वरकरी समाज का घनघोर अपमान किया है। ऐसे में राज्य में संत तुकाराम का अपमान करने वाले के कार्यक्रम को लाइसेंस देने का मतलब सीधा-सीधा अंधविश्वास को बढ़ावा देना होगा। इसके लिए बागेश्वर कथावाचक धीरे-धीरे शास्त्री के किसी भी कार्यक्रम को राज्य में करने की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए।

आगामी 18-19 मार्च को मुंबई में धीरे-धीरे शास्त्रीय शास्त्र का कार्यक्रम

जानकारी दें कि, राज्य की राजधानी मुंबई से सटे मीरा रोड इलाके में बागेश्वर धीरे-धीरे चंद्र शास्त्री का आगामी 18 मार्च और 19 मार्च को कार्यक्रम तय किया गया है, ऐसे में नाना पाटोले ने शिंदे सरकार को पत्र लिखकर उनसे मांग रखी है की क्रमिक चंद्र शास्त्री के कार्यक्रम को यहां अनुमति ना मिले।

महाराष्ट्र में धीमी गति से चलने वाले शास्त्रों से क्यों कमजोर हैं ?

दरअसल हाल ही में कथावाचन के दौरान धीरे-धीरे शास्त्री ने महाराष्ट्र के जाने माने संत तुकाराम के बारे में एक बड़ी टिप्पणी की थी जो सोशल मीडिया पर भी वायरल हुई थी। बता दें कि, धीरे-धीरे चंद्र शास्त्री ने कहा था कि संत तुकाराम की पत्नी रोज मारती थीं।

बस फिर क्या था, धीरे-धीरे महाराष्ट्र के इस जमाने में महाराष्ट्र में जबरदस्ती आरोपित। उसी समय धीरे-धीरे शास्त्री के इस बयान से वरकरी समाज के लोग आहत हुए। हालांकि, जाति बढ़ने पर धीरे-धीरे शास्त्रीय शास्त्री ने हाथ जोड़कर वरकरी समाज से मांफी बांधी थी और अपने शब्द भी पीछे ले गए थे।

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