कबीरधामछत्तीसगढ़

कवर्धा में धर्मसभा: जगद्गुरु शंकराचार्य ने बताया धर्म का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक स्वरूप

किसी भी वस्तु की सत्ता और उपयोगिता जिस पर निर्भर होती है उसी का नाम धर्म है - स्वामी श्रीनिश्चलानंद सरस्वती

UNITED NEWS OF ASIA. कवर्धा। हिंदू राष्ट्र संगोष्ठी के दौरान श्रीमद्जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी श्रीनिश्चलानंद सरस्वती जी महाभाग ने धर्म की परिभाषा बताते हुए कहा कि मत्स्य पुराण अग्नि पुराण आदि के अनुसार जो धारक और उद्धारक होता है उसी का नाम धर्म है “धारणात धर्म:” किसी भी वस्तु की सत्ता और उपयोगिता जिस पर निर्भर होती है उसी का नाम धर्म है । पृथ्वी के जितने भी कार्य हैं पार्थिव वृक्ष आदि, उनको धारण करने वाली पृथ्वी का नाम धर्म है।सिद्ध कोटि का धर्म। पृथ्वी को धारण करने वाला सन्निकट निर्विशेष जल का नाम धर्म है।

जल को धारण करने वाला जल के उदय विलय निलय स्थान सन्निकट निर्विशेष अग्नि का नाम धर्म है। अग्नि को धारण करने वाला पवन या वायु का नाम धर्म है। वायु को धारण करने वाले आकाश का नाम धर्म है। आकाश को धारण करने वाला बिजावस्थापन्न अव्यक्त का नाम धर्म है। अव्यक्त जिसकी शक्ति परमात्मा का नाम धर्म है।कठोपनिषद और बौद्धगम में आत्मा का नाम धर्म है। यह सब सिद्ध कोटि का धर्म है इसी प्रकार साध्य कोटि का धर्म है यज्ञ, दान, तप, व्रत ,वर्णधर्म, आश्रम धर्म आदि। उन्होंने आगे कहा कि लौकिक और पारलौकिक उत्कर्ष और मोक्ष उपलब्धि के मार्ग का नाम धर्म है।

उल्लेखनीय है कि ऋग्वेदीय पूर्वामनाय गोवर्धनमठ पुरीपीठाधीश्वर अनंतश्री विभूषित श्रीमद् जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी श्री निश्चलानंद सरस्वती जी महाभाग का हिंदू राष्ट्र अभियान के अंतर्गत 12 फरवरी से 15 फरवरी तक कवर्धा में प्रवास है। इस अवसर पर स्थानीय सरदार पटेल मैदान में आयोजित विशाल धर्मसभा में पूज्यपाद के निज सचिव स्वामी श्री निर्विकल्पानंद सरस्वती जी महाराज ने विरुदावली प्रस्तुत किया। उनके पूर्व आदित्यवाहिनी के प्रदेश उपाध्यक्ष अवधेश नंदन श्रीवास्तव ने संस्था की ओर से स्वागत प्रतिनिवेदन प्रस्तुत किया।

श्रीमद्जगतगुरु शंकराचार्य महाभाग ने एक प्रश्न के उत्तर में कहा जिस व्यक्ति के पास विद्या, बल, वैभव और सेवा का प्रकल्प है तो वह व्यक्ति सब प्रकार से सुदृढ़ है। विवाह में वर्ण संकरता के विषय पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि गोत्र और प्रवर को ध्यान में रखते हुए ही विवाह किया जाता है सगोत्र विवाह निषिद्ध है।

जगद्गुरु शंकराचार्य महाभाग ने आगे कहा कि जिसकी हम निंदा करते हैं तो स्वयं निंद्य हो जाते हैं प्रशंसा करते हैं तो स्वयं प्रशंसित हो जाते हैं। इसलिए हमें श्रीमद् भागवत से प्रेरणा लेनी चाहिए कभी निषेध मुख से तो कभी विधि मुख से शिक्षा लेनी चाहिए यदि कोई बुरा काम करता है तो मुझे यह काम नहीं करना है और यदि कोई अच्छा काम करता है तो मुझे ऐसा काम करना है इस प्रकार शिक्षा लेनी चाहिए ।यदि हम सब को समझने चलेंगे तो यह संभव नहीं है। भगवान दत्तात्रेय की शैली को अपनाना चाहिए।

गोवंश की रक्षा के संबंध में उन्होंने कहा कि विकास के नाम पर पृथ्वी के धारक सभी तत्वों को द्रुत गति से विकृत और विलुप्त किया जा रहा है। मोदी जी पहले मनमोहन सिंह जी को गौ हत्या बंद करने के संबंध में कहते थे लेकिन अब तो वे स्वयं प्रधानमंत्री हैं और कहते हैं गौ रक्षक गुंडे। महायंत्र के इस युग में गोवंश की रक्षा कठिन है ।
धर्म सभा का संचालन श्री ऋषिकेश ब्रह्मचारी ने किया। बड़ी संख्या में कबीरपंथी समाज ने जगतगुरु शंकराचार्य का स्वागत किया उन्हें गाजे बाजे के साथ कीर्तन करते हुए सम्मान पूर्वक मंच तक लाया।

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Saurabh Namdev

| PR Creative & Writer | Ex. Technical Consultant Govt of CG | Influencer | Web developer
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