भारत भाग्य विधाता

भारत भाग्य विधाता : अटल कहते थे- कुंआरा हूं, ब्रह्मचारी नहीं:शराब की लत और मीटिंग्स में सोने की खबरें छपीं; अपने-पराए दोनों मुरीद थे

1 अक्टूबर 2001 की बात है। प्रधानमंत्री कार्यालय से नरेंद्र मोदी को फोन पहुंचा। कहा गया कि PM अटल बिहारी ने आपको मिलने बुलाया है। उस वक्त मोदी दिल्ली में BJP के पुराने ऑफिस के पीछे बने छोटे से कमरे में रहते थे।

लेखक उल्लेख एनपी अपनी किताब ‘वाजपेयीः एक राजनेता के अज्ञात पहलू’ में लिखते हैं, ‘वाजपेयी ने मोदी से कहा आपको CM बनाकर गुजरात भेज रहे हैं। अगले साल 2002 में होने वाले चुनाव की तैयारी कीजिए।

मोदी ने मना कर दिया। बोले- मैं गुजरात की राजनीति से दूर 3 साल से दिल्ली में हूं। दोनों के बीच काफी देर तक चर्चा हुई और आखिरकार मोदी तैयार हो गए। वाजपेयी का ये फैसला बहुत दूरगामी साबित हुआ।’

2001 में पहली बार मुख्यमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने PM वाजपेयी से मुलाकात कर आशीर्वाद लिया।

“भारत भाग्य विधाता” सीरीज के दसवें एपिसोड में अटल बिहारी वाजपेयी के पीएम बनने की कहानी और उनकी जिंदगी से जुड़े ऐसे ही सुने-अनसुने रोचक किस्से…

आडवाणी ने वाजपेयी को PM उम्मीदवार बनाया, सब हैरान थे
12 नवंबर 1995, मुंबई में BJP का महाधिवेशन चल रहा था। BJP के महासचिव गोविंदाचार्य ने अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी से कहा- आपने ये क्या किया? कुछ देर की चुप्पी के बाद आडवाणी ने भारी मन से जवाब दिया, इसे करना ही होगा। दरअसल, गोविंदाचार्य 1996 लोकसभा चुनाव के लिए वाजपेयी को BJP के PM पद का उम्मीदवार बनाए जाने से हैरान थे।

उस दौर के हालात समझने वाले गोविंदाचार्य की हैरानी समझ सकते हैं। राम रथयात्रा निकालकर लालकृष्ण आडवाणी BJP का बड़ा चेहरा बन चुके थे। 1995 तक सब मानकर चल रहे थे कि आडवाणी की लीडरशिप में चुनाव लड़ा जाएगा और वही प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे। तभी आडवाणी का नाम हवाला कांड में आ गया।

मार्च 1996 में 11वीं लोकसभा के लिए चुनाव होने थे। आडवाणी जानते थे कि हवाला कांड में नाम आने के बाद जनता का समर्थन जुटाना मुश्किल होगा।

वरिष्ठ पत्रकार किंगशुक नाग अपनी किताब ‘जननायक अटलजी’ में लिखते हैं, ‘12 नवंबर 1995 को BJP के अधिवेशन में आडवाणी ने ऐलान किया कि अगले साल 1996 में होने वाले आम चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे। ऑडिटोरियम में थोड़ी देर के लिए सन्नाटा छा गया। इसके बाद सबने जोर-शोर से इसका स्वागत किया। किसी जोशीले नेता ने नारा लगाया- अगली बारी अटल बिहारी।

अटल ने आडवाणी से कहा- ‘क्या घोषणा कर दी आपने? कम से कम मुझसे तो बात करते।’ तब आडवाणी बोले- अगर आपसे पूछा होता तो क्या आप मानते!

13 दिन के PM: अटल बोले- ऐसी सत्ता चिमटे से भी छूना पसंद नहीं

1996 में चुनाव प्रचार शुरू हुए। नरसिम्हा राव सरकार के घोटालों के बदले BJP ने ‘परिवर्तन’ का नारा दिया। अटल लखनऊ सीट से चुनाव लड़ रहे थे, लेकिन उनकी डिमांड पूरे देश में थी। देश में प्रचार करने के कारण वे लखनऊ में प्रचार नहीं कर पा रहे थे।

BJP रणनीतिकारों ने एक मूर्तिकार को बुलाया और अटल की प्रतिमा बनवाई गई। इस प्रतिमा को पूरे लखनऊ में घुमाया गया और अटल को जिताने की अपील की गई। अटल के सामने कांग्रेस से अभिनेता राज बब्बर लड़ रहे थे। बिना अपने क्षेत्र में प्रचार किए अटल ने 1 लाख 18 हजार वोटों से जीत दर्ज की थी।

1996 के चुनावों में BJP को 161 सीटें मिलीं। हालांकि ये बहुमत से काफी कम थीं। इसके बावजूद अटल ने गठबंधन की सरकार बनाई। हालांकि, वो बहुमत नहीं जुटा पाए और 13 दिन बाद उनकी सरकार गिर गई।

इसी दौरान वाजपेयी ने सदन में एक ऐतिहासिक भाषण दिया था- ‘पार्टी तोड़कर सत्ता के लिए नया गठबंधन करके अगर सत्ता हाथ में आती है, तो मैं ऐसी सत्ता को चिमटे से भी छूना नहीं पसंद करूंगा।’

13 महीने के PM: एक वोट से सरकार गिरी तो बहुत मायूस थे अटल
1996 के बाद जनता दल के एचडी देवगौड़ा और आईके गुजराल की सरकारें आईं, लेकिन आपसी कलह के कारण ज्यादा दिनों तक नहीं चल सकीं। नतीजतन मार्च 1998 में फिर चुनाव हुए। इस बार BJP को 182 सीटें मिलीं। बहुमत न होने के बावजूद अटल ने फिर गठबंधन की सरकार बनाई।

ये सरकार पहले दिन से ही संघर्ष कर रही थी। 13 महीने सरकार चलाने के बाद 17 अप्रैल 1999 को संसद में विश्वास मत जांचा गया। अटल सरकार के समर्थन में 269 और विपक्ष में 270 वोट पड़े थे। AIADMK की अध्यक्ष जयललिता की जिद की वजह ये सरकार एक वोट से गिर गई।

उस वक्त अटल के सलाहकार रहे सुधींद्र कुलकर्णी ने इंडिया टुडे पत्रिका में लिखा, ‘मुझे याद है अटल जी उस दिन कितने मायूस थे। सरकार गिरने के बाद वो बेहद सुस्त कदमों से संसद भवन के अपने कमरा नंबर दस में आए। उनके कमरे में पहले से वरिष्ठ साथी मौजूद थे। अटल को देखकर ही रो पड़े। कहने लगे हम एक वोट से हार गए। ये कहते हुए उनके आंसू बह रहे थे। भीगी आंखों से अटल ने अपने साथियों को हिम्मत दी।’

तीसरी बार 1999 में अटल बिहारी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली और 5 साल का कार्यकाल पूरा किया।

राजकुमारी कौल उनके साथ रहती थीं, लेकिन रिश्ते का कोई नाम नहीं था
अटल बिहारी वाजपेयी ने कभी शादी नहीं की। हालांकि, राजकुमारी कौल नाम की एक महिला से उनका रिश्ता जोड़ा जाता है। किंगशुक नाग अपनी किताब ‘अटल बिहारी वाजपेयी: द मैन फॉर ऑल सीजन्स’ में लिखते हैं, ‘1940 के मध्य की बात है। जब अटल ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज में पढ़ाई कर रहे थे। उस दौरान उनकी मुलाकात एक लड़की राजकुमारी हक्सर से हुई। दोनों एक-दूसरे को प्यार करने लगे।

‘राजकुमारी कौल के पिता गोविंद नारायण हक्सर सिंधिया घराने के शिक्षा विभाग के कर्मचारी थे। उन्होंने अपनी बेटी राजकुमारी जिसे वे प्यार से बीबी कहते थे, उसकी शादी 1947 में दिल्ली के कॉलेज में पढ़ाने वाले एक युवा लेक्चरर बृजमोहन कौल से कर दी।’

अटल ने प्रेमिका की शादी के बाद पूरा फोकस राजनीति पर किया। किंगशुक नाग लिखते हैं, ‘अटल सांसद बनने के बाद दिल्ली में रहने लगे थे। राजकुमारी के पति तब दिल्ली यूनिवर्सिटी में दर्शनशास्त्र पढ़ाते थे। वहां एक बार फिर अटल और राजकुमारी की मुलाकात हुई। राजकुमारी के पति बृजमोहन बेहद खुले विचारों के व्यक्ति थे। उन्होंने कभी अटल-राजकुमारी की दोस्ती का बुरा नहीं माना। वाजपेयी उन्हें मिसेज कौल कहकर पुकारते थे।’

राजकुमारी कौल ने एक इंटरव्यू में कहा था कि ये रिश्ता इतना प्रगाढ़ था कि बहुत कम लोग ही इसे समझ पाए। उनमें से एक मेरे पति हैं, जिन्हें इस रिश्ते की समझ है। मेरे पति को कभी मुझे सफाई नहीं देनी पड़ी। कुछ समय बाद जब वाजपेयी को बड़ा बंगला मिला तो राजकुमारी कौल पति और अपनी दो बेटियां सहित उसमें शिफ्ट हो गईं।’

पत्रकार सागरिका घोष लिखती है, ‘वाजपेयी के काफी नजदीक रहे बलबीर पुंज ने उन्हें बताया था कि जब वो पहली बार वाजपेयी के घर गए तो उन्हें कौल दंपती को वहां रहते देख थोड़ा अजीब-सा लगा।’

वाजपेयी ने ताउम्र शादी नहीं की, लेकिन मिसेज कौल उनकी निजी जिंदगी का एक अहम हिस्सा बनीं रहीं। 2014 में राजकुमारी कौल का निधन हुआ, तो उसके बाद जारी प्रेस रिलीज में कहा गया कि मिसेज कौल पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी के परिवार की सदस्य थीं। उनके अंतिम संस्कार में पक्ष और विपक्ष के तमाम दिग्गज नेता शामिल हुए थे।

इस तस्वीर में अटल बिहारी वाजपेयी की गोद ली बेटी नमिता भट्टाचार्य और नातिन निहारिका दिख रहे हैं। नमिता राजकुमारी कौल की बेटी थीं, जिन्हें अटलजी ने एडॉप्ट किया था।

अटल कहते थे- मैं कुंवारा हूं, ब्रह्मचारी नहीं

वरिष्ठ पत्रकार पूर्णिमा एस त्रिपाठी ‘द हिंदू फ्रंटलाइन’ में एक किस्सा लिखती हैं। अटल बिहारी लखनऊ में बुद्धिजीवियों, कारोबारियों, ब्यूरोक्रेट और नेताओं की एक बैठक को संबोधित करने वाले थे।

होस्ट ने मंच से उनकी भूमिका में कहा, ‘भाइयों और बहनो, अब आपके सामने आ रहे हैं कवि, वक्ता, सबके प्रिय नेता, चिर ब्रह्मचारी अटल बिहारी वाजपेयी जी।’

अटल स्टेज पर आए, माइक उठाए और मंद-मंद मुस्कान के साथ कहा, ‘देवियो और सज्जनो। इससे पहले कि मैं कुछ और कहूं, मैं बता दूं कि मैं कुंवारा जरूर हूं, पर ब्रह्मचारी नहीं।’

भीड़ कुल पलों के लिए शांत रहे, लेकिन जैसे लोगों को उनकी बात समझ आई पूरा हॉल ठहाकों से गूंज गया।

टाइम मैगजीन ने छापा- शराब की लत, मीटिंग्स में सो जाते हैं
1970 के बाद से वाजपेयी एक के बाद एक कई स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे थे। सन 2000 में जब उन्होंने घुटने का ऑपरेशन करवाया तो मीडिया में उसकी खूब चर्चा हुई। उनकी खराब सेहत को लेकर टाइम मैगजीन ने जून 2002 में बेहद आपत्तिजनक लेख लिखा था।

इसे पढ़कर वाजपेयी बहुत दुखी हुए थे। माना जाता है कि ये सूचनाएं टाइम मैगजीन के संवाददाता एलेक्स पेरी को BJP के ही किसी वरिष्ठ नेता ने दी थी।

टाइम मैगजीन ने लिखा, ‘वाजपेयी ने युवावस्था में जमकर शराब पी है। वे अब 74 साल की उम्र में भी रात में एक या दो पैग का आनंद लेते हैं। भारत के नेता अपने घुटनों के लिए दर्द निवारक दवाएं लेते हैं। उनके मूत्राशय, यकृत और उनकी एक किडनी में समस्या है। तले हुए भोजन और वसायुक्त मिठाइयों का स्वाद उनके कोलेस्ट्रॉल को बिगाड़ रहा है। वह डॉक्टर के आदेश पर हर दोपहर 3 घंटे की झपकी लेते हैं। कई बार वह बैठकों में झपकी लेते हैं।’

टाइम मैगजीन ने वाजपेयी की आलोचना करते हुए लिखा था कि क्या ऐसे व्यक्ति के हाथ में परमाणु हथियारों का कंट्रोल होना सही है।

वाजपेयी ने PM बनते ही परमाणु परीक्षण पर फोकस किया
पीवी नरसिम्हा राव को परमाणु परीक्षण करने की जल्दी थी। दुर्भाग्य से उनकी सरकार चली गई। उन्होंने आने वाले PM अटल बिहारी वाजपेयी से कहा- सामग्री तैयार है आगे बढ़ो।’ 16 मई को 1996 को पहली बार प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के चार दिन बाद वाजपेयी ने अफसरों से कहा कि वो एपीजे अब्दुल कलाम से मिलना चाहते हैं।

उल्लेख एनपी अपनी किताब में लिखते हैं, ‘स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप के डायरेक्टर श्यामल दत्ता ने पता लगाया कि कलाम दक्षिण भारत के किसी सुदूर गांव में हैं। तुरंत एक विशेष विमान का इंतजाम किया गया। उसमें बैठाकर कलाम को दिल्ली लाया गया।

विमान में कलाम थोड़े तनाव में थे, लेकिन PM वाजपेयी से सीक्रेट मीटिंग के बाद लौटे तो उनके चेहरे पर खुशी थी। अटल ने कलाम से परमाणु परीक्षण पर आगे बढ़ने की बात कही थी। कुछ आगे होता उससे पहले ही सरकार गिर गई। कलाम ने PMO के एक अफसर को बताया था कि अगर वाजपेयी 13 से बढ़कर कुछ सप्ताह और PM रह जाते तो हम तभी टेस्ट कर लेते।

19 मार्च 1998 को अटल दोबारा सत्ता में आए। एक बार फिर एपीजे अब्दुल कलाम और भारतीय परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष राजागोपाल चिदंबरम को बुलाया गया। वाजपेयी ने कहा कि आपको अपना अधूरा काम पूरा करना है।

27 अप्रैल को चिदंबरम की बेटी की शादी थी। परमाणु परीक्षण के लिए उन्होंने डेट आगे बढ़ा दी। राष्ट्रपति नारायणन 26 अप्रैल से 10 मई तक दक्षिण अमेरिकी देशों की यात्रा पर जाने वाले थे। उनसे ऑफ द रिकॉर्ड निवेदन किया गया कि वे अपनी इस यात्रा को कुछ दिनों के लिए पोस्टपोन कर दें।

वाजपेयी सरकार में वित्त मंत्री रहे यशवंत सिन्हा ने अपनी बायोग्राफी ‘रेलेंटलेस’ में लिखा है कि वाजपेयी ने मुझे मिलने बुलाया, लेकिन ऑफिस की बजाय अपने बेडरूम में ले गए। उन्होंने मुझे बताया कि हम परमाणु परीक्षण करने जा रहे हैं। संभव है कि हमारे इस टेस्ट के बाद दुनियाभर के कई आर्थिक प्रतिबंध हम पर लगाए जाएं। आप आर्थिक मोर्चे पर अपनी तैयारी पूरी रखिए।’

वाजपेयी ने परमाणु परीक्षण की बात केवल चार मंत्रियों लालकृष्ण आडवाणी, जॉर्ज फर्नांडिस, यशवंत सिन्हा और जसवंत सिंह को बताई थी। जब परीक्षण हुआ तो ये चारों एक ही रूम में बैठे थे। आखिरकार 11 मई दोपहर 3 बजकर 45 मिनट पर सफल परमाणु परीक्षण किए गए।

जब PM अटल ने CM मोदी से कहा- राजधर्म का पालन करो
27 फरवरी 2002 को गुजरात में गोधरा कांड हुआ और वहां दंगे भड़क उठे। इसे देश-विदेश की मीडिया ने भी कवरेज दी। उस वक्त गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी थे और उनकी आलोचना हो रही थी।

2002 में गुजरात दंगों के बाद प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी अहमदाबाद दौरे पर गए। वहां मौजूद मीडिया के सामने वाजपेयी ने कहा कि मैंने CM मोदी को राजधर्म निभाने के लिए कहा है। पास बैठे नरेंद्र मोदी ने कहा- साहब हम वही कर रहे हैं।

गुजरात दंगों के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस करते PM अटल बिहारी और CM नरेंद्र मोदी। वाजपेयी की राजनीति से संन्यास की घोषणा के बाद आडवाणी का कद भी घटने लगा और नरेंद्र मोदी ने उनकी जगह ले ली।

उल्लेख एनपी अपनी किताब में लिखते हैं, ‘अप्रैल 2002 में पणजी में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक थी। कुछ देर बाद मोदी मंच पर आए और कहा कि वे दंगों के मुद्दे पर सीएम पद छोड़ना चाहते हैं। ये सुनते ही चारों तरफ से लोग उठ खड़े हुए और कहा कि मोदी को ऐसा करने की जरूरत नहीं है।

वाजपेयी मोदी को हटाने का मन बना चुके थे, उन्होंने हालात भांपकर कहा कि इस पर बाद में फैसला लेंगे। बैठक में किसी ने जोर से कहा कि इस पर अभी फैसला होना चाहिए। जब वाजपेयी ने देखा कि एक युवा सीएम को सभी का समर्थन मिल रहा है तो वे चुप हो गए।’

 


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