
UNITED NEWS OF ASIA. अमृतेश्वर सिंह, रायपुर | बेंगलुरु स्थित विधानसौध में आयोजित राष्ट्रमंडल संसदीय संघ (CPA) भारत क्षेत्र के 11वें राष्ट्रीय सम्मेलन में पूर्व मुख्यमंत्री एवं छत्तीसगढ़ विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह ने हिस्सा लिया। सम्मेलन का विषय था – “विधायी संस्थाओं में संवाद और चर्चा: जन विश्वास का आधार, जन आकांक्षाओं की पूर्ति का माध्यम”।
डॉ. सिंह ने अपने संबोधन में कहा कि विधायी संस्थाएं केवल कानून बनाने वाली मशीनें नहीं हैं, बल्कि लोकतंत्र की आत्मा हैं, जहां जनता की आकांक्षाओं को अभिव्यक्ति मिलती है। उन्होंने जोर दिया कि संवाद और विमर्श ही लोकतंत्र को जीवंत और जनोन्मुख बनाए रखते हैं।
उन्होंने कहा, “लोकतंत्र का मूलाधार संवाद और विमर्श है। संसद और विधानसभाएँ तभी फलती-फूलती हैं, जब उनमें खुले मन से सार्थक और रचनात्मक चर्चा होती है। यही प्रक्रिया जनता के विश्वास को मजबूत करती है।”
डॉ. सिंह ने युवाल नोआ हरारी की पुस्तक सेपिएन्स का उदाहरण देते हुए कहा कि मानव सभ्यता में संवाद को सबसे अहम साधन माना गया है, जिसने इंसान को आधुनिक युग की ओर अग्रसर किया। उन्होंने पारदर्शिता और जवाबदेही को संवाद का सबसे बड़ा प्रतीक बताया।
उन्होंने नीति-निर्माण में संवाद की महत्ता बताते हुए कहा कि विधेयकों पर गहन चर्चा से उनके सभी पहलुओं का मूल्यांकन संभव होता है, जिससे कानून अधिक मजबूत और संतुलित बनता है। डॉ. सिंह ने साइबर सुरक्षा, ऊर्जा संकट, पर्यावरण और स्वास्थ्य जैसे तकनीकी विषयों पर गहन विमर्श की आवश्यकता पर भी जोर दिया।
डॉ. सिंह ने विधानसभा अध्यक्ष की भूमिका पर भी प्रकाश डालते हुए कहा कि अध्यक्ष लोकतंत्र के प्रहरी होते हैं। निष्पक्षता, अनुशासन बनाए रखना और सभी दलों को समान अवसर देना ही सदन में सार्थक संवाद सुनिश्चित करता है। उन्होंने समितियों को सक्रिय करने और तकनीकी विषयों पर चर्चा को प्रोत्साहित करने का महत्व भी बताया।
अंत में डॉ. सिंह ने कहा कि जनता अपने प्रतिनिधियों को इसी विश्वास के साथ चुनती है कि वे उनकी आकांक्षाओं को सदन में रखें। संवाद ही मतदाता और नीति-निर्माता के बीच सेतु है और लोकतंत्र की विश्वसनीयता को सुदृढ़ करता है।
इस सम्मेलन की अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने की। सम्मेलन में भारत के विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के विधानमंडलों के सभापति, अध्यक्ष, पीठासीन अधिकारी और सचिवगण शामिल हुए।
बेंगलुरु में CPA सम्मेलन: डॉ. रमन ने कहा – संवाद लोकतंत्र की आत्मा, जन विश्वास की नींव
रायपुर, 12 सितम्बर 2025: बेंगलुरु स्थित विधानसौध में आयोजित राष्ट्रमंडल संसदीय संघ (CPA) भारत क्षेत्र के 11वें राष्ट्रीय सम्मेलन में पूर्व मुख्यमंत्री एवं छत्तीसगढ़ विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह ने हिस्सा लिया। सम्मेलन का विषय था – “विधायी संस्थाओं में संवाद और चर्चा: जन विश्वास का आधार, जन आकांक्षाओं की पूर्ति का माध्यम”।
डॉ. सिंह ने अपने संबोधन में कहा कि विधायी संस्थाएं केवल कानून बनाने वाली मशीनें नहीं हैं, बल्कि लोकतंत्र की आत्मा हैं, जहां जनता की आकांक्षाओं को अभिव्यक्ति मिलती है। उन्होंने जोर दिया कि संवाद और विमर्श ही लोकतंत्र को जीवंत और जनोन्मुख बनाए रखते हैं।
उन्होंने कहा, “लोकतंत्र का मूलाधार संवाद और विमर्श है। संसद और विधानसभाएँ तभी फलती-फूलती हैं, जब उनमें खुले मन से सार्थक और रचनात्मक चर्चा होती है। यही प्रक्रिया जनता के विश्वास को मजबूत करती है।”
डॉ. सिंह ने युवाल नोआ हरारी की पुस्तक सेपिएन्स का उदाहरण देते हुए कहा कि मानव सभ्यता में संवाद को सबसे अहम साधन माना गया है, जिसने इंसान को आधुनिक युग की ओर अग्रसर किया। उन्होंने पारदर्शिता और जवाबदेही को संवाद का सबसे बड़ा प्रतीक बताया।
उन्होंने नीति-निर्माण में संवाद की महत्ता बताते हुए कहा कि विधेयकों पर गहन चर्चा से उनके सभी पहलुओं का मूल्यांकन संभव होता है, जिससे कानून अधिक मजबूत और संतुलित बनता है। डॉ. सिंह ने साइबर सुरक्षा, ऊर्जा संकट, पर्यावरण और स्वास्थ्य जैसे तकनीकी विषयों पर गहन विमर्श की आवश्यकता पर भी जोर दिया।
डॉ. सिंह ने विधानसभा अध्यक्ष की भूमिका पर भी प्रकाश डालते हुए कहा कि अध्यक्ष लोकतंत्र के प्रहरी होते हैं। निष्पक्षता, अनुशासन बनाए रखना और सभी दलों को समान अवसर देना ही सदन में सार्थक संवाद सुनिश्चित करता है। उन्होंने समितियों को सक्रिय करने और तकनीकी विषयों पर चर्चा को प्रोत्साहित करने का महत्व भी बताया।
अंत में डॉ. सिंह ने कहा कि जनता अपने प्रतिनिधियों को इसी विश्वास के साथ चुनती है कि वे उनकी आकांक्षाओं को सदन में रखें। संवाद ही मतदाता और नीति-निर्माता के बीच सेतु है और लोकतंत्र की विश्वसनीयता को सुदृढ़ करता है।
इस सम्मेलन की अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने की। सम्मेलन में भारत के विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के विधानमंडलों के सभापति, अध्यक्ष, पीठासीन अधिकारी और सचिवगण शामिल हुए।
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