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संविधान बनाम ग्रामसभा: बस्तर में फिर गूंजा पत्थलगड़ी का स्वर

UNITED NEWS OF ASIA. जगदलपुर। छत्तीसगढ़ के बस्तर में एक बार फिर पत्थलगड़ी की दस्तक सुनाई दे रही है। पहले यह सिलसिला सरगुजा में दिखा था, लेकिन अब बस्तर के बास्तानार, दरभा और तोकापाल जैसे इलाकों में आदिवासी समुदाय अपनी सीमाओं पर ग्रामसभा के अधिकारों से जुड़े शिलालेख गाड़ रहे हैं। इन पत्थरों पर साफ लिखा गया है कि ग्रामसभा सर्वोच्च है और उसकी अनुमति के बिना कोई भी सरकारी या निजी योजना लागू नहीं की जा सकती।

ग्रामीणों का दावा है कि वे संविधान की पांचवीं अनुसूची के तहत लागू पेसा कानून के दायरे में आते हैं, जो उन्हें विशेष अधिकार देता है। उनका कहना है कि यह पहल कोई विद्रोह नहीं, बल्कि उनके संवैधानिक अधिकारों की पुनःस्थापना है। पत्थरों पर दर्ज इबारतें अब उनके स्वशासन की प्रतीक बन गई हैं।

CM साय ने कहा- संविधान से बड़ा कुछ नहीं

मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने इस मुद्दे पर कहा कि, “संविधान से बड़ा कुछ भी नहीं है। हमें मामले की जानकारी है और संवैधानिक दायरे में रहकर संवाद किया जाएगा।” उन्होंने भरोसा दिलाया कि कोई भी फैसला बातचीत के माध्यम से ही निकाला जाएगा।

कांग्रेस का समर्थन, भाजपा पर निशाना

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज ने पेसा कानून का हवाला देते हुए कहा, “यह आदिवासियों का संवैधानिक अधिकार है। कांग्रेस ने इस कानून को लागू किया, लेकिन भाजपा सरकार ने इसे नज़रअंदाज किया। अब आदिवासी अपने हक की लड़ाई लड़ रहे हैं।”

भाजपा अध्यक्ष का आश्वासन

भाजपा प्रदेश अध्यक्ष किरण सिंह देव ने कहा कि जनता को सरकार पर भरोसा है। “मुख्यमंत्री स्वयं बस्तर पहुंचे हैं। सरकार जनता की बात सुनेगी और समाधान निकालेगी।”

क्या टकराव की ओर बढ़ेगा आंदोलन?

अब बड़ा सवाल यह है कि बस्तर में उठ रही यह नई आवाज़ सशक्त लोकतांत्रिक संवाद की ओर बढ़ेगी या सरकारी तंत्र के साथ टकराव की स्थिति बनेगी? फिलहाल, गांवों की सीमाओं पर लगे ये पत्थर एक स्पष्ट चेतावनी हैं कि आदिवासी समाज अब अपने अधिकारों को लेकर पहले से अधिक सजग और मुखर है।

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