सरगुजा समाचार: छत्तीसगढ़ (छ.ग.) में पुराने समय में नौकर, मजदूर और लोहार से सेवा लेने के बाद उन्हें काठा या खांडी के नाप से धान जाने की परंपरा थी। पुराने समय में एक दिन के काम के लिए एक मजदूर को खांडी धान दिया जाता था। एक खांडी का मतलब 15 किलो चावल होता है।
बदले समय के साथ धीरे-धीरे छत्तीसगढ़ में नौकर और लाएंगे को काम के बदले काठा या खांडी देने की परंपरा समाप्त हो गई, लेकिन एक वर्ग ऐसा भी है, जिसे आज भी काम के बदले खांडी दिया जाता है।
एक खांडी में मिलते हैं 15 किलो धान
सरगुजा जिले के कुसु गांव में लोहार जूठन राम और उनका परिवार रहता है। इनका आय का मुख्य स्रोत लोहारी है। काम करते समय वे आयरन से आते हैं और धार देते हैं। जूठन राम स्टेटमेंट्स हैं कि वो आज भी पारंपरिक तरीके से आयरन के इंस्ट्रूमेंट्स बनाते हैं। आज भी गांव के लोग उन्हें काम के बदले खांडी देते हैं। जूठन राम ने बताया कि उन्हें टांगी, हसिया और उपकरणों के बदले साल में एक बार एक घर से एक खांडी धान दिया जाता है। बता दें कि एक खांडी में उन्हें 15 किलो धान मिलता है।
पति-पत्नी साथ में करते हैं काम
सरगुजा के जूठन राम अपनी पत्नी के साथ सुबह से लोहारी के काम में जुट जाते हैं। टांगी, कोल, बाउसला, हसियां, गैंटी, हल के आयरन सहित तमाम अन्य आयरन को नया आकार देकर अपनी जीविका के लिए मेहनत करते हैं। जूठन राम उद्धरण हैं कि सबसे पहले रेखीय से ब्रोच हैं। आकार में गर्म करते हैं और फिर उसे पीटकर आकार देते हैं। सीसीटीवी में लगातार हवा फुंकने के लिए उनकी पत्नी साइकिल के पहले का इस्तेमाल करती है। जूठन की पत्नी रथिन भी लोहारी का काम करती हैं।
50 से 100 रुपये में पहचाने गए तैयार उपकरण हैं
जूठन ने बताया कि वे इन उपकरणों को लोहे की ऊंचाई पर 50 से 100 रुपये प्रति उपकरण की पहचान में पहचानते हैं और अपनी जीविका चलाते हैं। जूठन की सिर्फ लोहारी से उनके परिवार के लिए पर्याप्त आय का पर्दाफाश नहीं होता है। इसलिए वे खेती और भाषा भी उगाते हैं। वहीं खांडी में धान मिलता है, तो वह भी उनके परिवार के भरण पोषण के लिए सहायक सिद्ध होता है।
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