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China NATO Secret: नाटो में चीन, दुनिया की नींद उड़ी, भारत से उठाइए

प्रभासाक्षी

जर्मनी नाटो का ही सदस्य है लेकिन जर्मनी के लिए कुछ खतरनाक पायलटों ने चीन को नाटो की खुफिया जानकारी दी है। जर्मनी के खतरनाक पायलट इन दिनों चीन की कनेक्टिविटी के पायलट भी तैयारी कर रहे हैं। इसी शिक्षा के दौरान जर्मनी के दूषित पायलटों ने नाटो की खुफिया जानकारी चीन को भेजी।

दुनिया के सबसे बड़े सैन्य संगठन माने जाने वाले नाटो में चीन घुस गया है। आप पहले ही साफ कर दें कि चीन ने नाटो ज्वाइन नहीं किया है बल्कि कुछ टाइपिंग की है। इस खुलासे के बाद नाटो के 31 देशों के पैर नीचे से खिसक गए हैं। इस पूरे मामले में भारत से भी शिकायत की जा रही है। जर्मन मीडिया स्पीगेल और सार्वजनिक प्रसार जेडडीएफ के माने तो जर्मन वायु सेना के विविध पायलटों में से कुछ निजी प्रशिक्षण अनुबंधों पर चीन गए हैं। ये पायलट नाटो से जुड़ी गुप्त जानकारियां चीन के साथ सहयोग कर रहे हैं।

नाटो चीन को घसीटने के लिए नाटो प्लस बन रहा था, उसी नाटो में चीन ने कैसे घुसपैठ कर ली वो आपको बता देते हैं। दरअसल, एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि जर्मनी के कुछ पूर्व पायलटों ने चीन को नाटो की खुफिया जानकारी बेची है। जर्मनी नाटो का ही सदस्य है लेकिन जर्मनी के लिए कुछ खतरनाक पायलटों ने चीन को नाटो की खुफिया जानकारी दी है। जर्मनी के खतरनाक पायलट इन दिनों चीन की कनेक्टिविटी के पायलट भी तैयारी कर रहे हैं। इसी शिक्षा के दौरान जर्मनी के दूषित पायलटों ने नाटो की खुफिया जानकारी चीन को भेजी।

इन सब में अजीब बात है कि नाटो रूस के साथ ही चीन दबोचने के लिए नाटो प्लस पर ध्यान दे रहा था। नाटो प्लस में ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, जापान, इज़राइल और दक्षिण कोरिया शामिल हैं। नाटो प्लस के ज्यादातर सदस्य देश चीन के इर्द-गिर्द ही हैं। चीन ने घसीटने के लिए एशिया में पहला ऑफिस खोला था, इससे पहले ये खबर सामने आई थी। इस पूरे मामले में अब नाटो भारत की तरफ भी देख रहा है। चीन को रोकने के लिए नाटो प्लस के सदस्य बनने की मांग कर रहे हैं। नाटो देश जानते हैं कि एशिया में अगर कोई चीन रोक सकता है तो वो सिर्फ और सिर्फ भारत ही है।

चीन और रूस नाटो अमेरिका के बाद सबसे बड़े दुश्मन के तौर पर देखते हैं। यही वजह है कि चीन ने भी हाल ही में नाटो से जुड़ी खुफिया जानकारियों को इकट्ठा किया है। चीन के साथ आधिकारिक तौर पर चीन के साथ कई सैन्य प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए गए हैं। इस दौरान तकनीकी और सामरिक शिक्षण को साझा करना तो जैसे सामान्य है लेकिन यूरोप को लेकर चीन के महत्व से तो हर कोई परिचित है। यही कारण है कि जर्मनी सहित कई यूरोपीय और नाटो देशों ने चीन से दूरी बना ली है।

 


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