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छत्तीसगढ़ हिंसा की खबर बीरनपुर बेमेतरा जिले में हुई हिंसा की कहानी है

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बीरनपुर हिंसा की कहानी: छत्तीसगढ़ के बेमेतरा जिले के बिरनपुर गांव में शनिवार को भड़की सांप्रदायिक हिंसा में दो घरों के चिराग बुझ गए। अब गांव और आस-पास के इलाके में वीरानी है। सेनेटरी बंद हैं और घरों में कैद हैं। बिरनपुर के लोगों का कहना है कि गांव में कभी ऐसी घटना नहीं हुई थी। दोनों ही समुदायों के लोग मिलजुल कर रहते थे। एक दूसरे के दुखदर्द में शरीक होते थे। ऐसे में पहला सवाल उठता है कि अचानक ऐसा क्या हो गया कि गांव के लोग एक दूसरे के खून के पते गए। गांव के लोग इसी वजह से भी उद्धरण हैं। इस रिपोर्ट में संलग्न अन्य कारणों की…

हिंदू-मुस्लिम साथ-साथ रहते थे
समाचार एजेंसी पीटीआइ भाषा की रिपोर्ट के अनुसार, बिरनपुर (बीरनपुर गांव) के लोगों का कहना है कि गांव में पहले मामूली झड़पों को छोड़कर गांव में इस तरह की सांप्रदायिक हिंसा कभी नहीं हुई थी। गाँव में लगभग 1200 मतदाता हैं। इनमें लगभग 300 मुसलमान हैं। मुस्लिम कई सालों से गांव में रह रहे हैं लेकिन इस तरह की सांप्रदायिक हिंसा कभी नहीं हुई। हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के लोग एक दूसरे के त्योहारों में शिरीक होते थे। पड़ोसियों में उपहारों का रहस्योद्घाटन होता था। गांव के लोगों के बीच संबंध हमेशा से सौहार्दपूर्ण था।

इन घटनाओं से बिगड़ा माहौल
गांव के लोगों का कहना है कि गांव में इस साल जनवरी से ही माहौल खराब होने लगा था। गांव के ही मुस्लिम युवकों ने साहू परिवार के दो युवकों से शादियां कर ली। इस वजह से गांव में तनाव बढ़ने लगा था। गांव में हर समुदाय के लोग आस-पड़ोस की बेटियों को अपनी बहन बेटियां ही मानते थे लेकिन इस साल जनवरी के महीने में हुई इन घटनाओं में सामाजिक सौहार्द को छिन्न विशिष्टता कर दिया। इन घटनाओं से लोग दहशत में थे। ऐसी घटनाएं कहीं ना देखें सर्व हिंदू समाज ने इसे लेकर मीटिंग आयोजित की थी।

बच्चों के बीच की लड़ाई के बाद स्ट्रेचर
विजेट का कहना है कि लोगों ने भविष्य में इस तरह के विवाहों को रोकने के उपाय पर चर्चा करने के लिए एक सम्मेलन भी आयोजित किया था। पुलिस को सबसे पहले ऐसी ही घटनाओं पर कदम उठाना चाहिए था। लोगों ने बताया कि आठ अप्रैल को दो समुदायों के बीच एक छोटी सी लड़ाई हो गई। बच्चों के बीच हुई इस छोटी सी लड़ाई ने लोगों में दबे हुए ज़ोंबी को ईंधन दिया जिसके परिणामस्वरूप हिंसा भड़क गई। पहले से लोग एक दूसरे के खून के पन्ने हो गए। किसी ने यह उम्मीद नहीं की थी कि बच्चों के बीच हुई सांप्रदायिक हिंसा में हिंसा भड़क उठेगी।

देर रात ही सवालों के जवाब देंगे…
अब इस हिंसा की चर्चा पूरे देश में हो रही है। हिंसा में कुल तीन लोग मारे गए। अब भूपेश बघेल सरकार ने अपनों को खोए लोगों के घावों पर निशान लगाने की पहल की है। पीड़ित परिवार के सदस्यों को सरकारी नौकरी देने की घोषणा की गई है। वहीं लोग दोषियों को फांसी देने की मांग कर रहे हैं। आज तो पुलिस भी मुस्तैद है। इलाके में धारा-144 लागू है। छत्तीसगढ़ सशस्त्र बल (CAF) और पुलिस कर्मियों का पहरा है। सवाल यह है कि क्या इन शुरुआती कदमों से जख्म भरेंगे और गांव में सदियों से चली आ रही पुरानी सहस्राब्दी वापस लौट आएगी..?

 


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