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Chhattisgarh : बीजापुर में एक ही परिवार को दोहरा नक्सल घावः क्रॉस फायरिंग में पहले भांजी की मौत; 20 अप्रैल को IED ब्लास्ट में उड़े मामा के चीथड़े

UNITED NEWS OF ASIA. बीजापुर। छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में एक ही परिवार को नक्सलवाद का गहरा घाव मिला है। पिछले 4 महीने में इस घर से 2 अर्थियां उठी हैं। 1 जनवरी को नक्सलियों और जवानों के बीच हुई क्रॉस फायरिंग में एक मासूम बच्ची की मौत हो गई। वहीं 20 अप्रैल को इसी बच्ची का मामा नक्सलियों की लगाई IED की चपेट में आ गया। जिससे उसके शरीर के चीथड़े उड़ गए।

मामला दंतेवाड़ा और बीजापुर जिले की सीमा पर बसे गांव मुतवेंडी का है। प्रेशर IED की चपेट में आने से गांव के 18 साल के युवक गड़िया पुनेम की मौत हो गई थी। घटना 20 अप्रैल की बताई जा रही है। जब पुनेम साथी ग्रामीणों के साथ तेंदू पत्ता बांधने सिहाड़ी पेड़ की छाल से रस्सी निकालने गांव के नजदीक पहाड़ी में गया था।

  • प्रेशर IED की चपेट में आया, रात भर तड़पता रहा

जंगल में पुनेम का पैर प्रेशर IED पर आ गया। ये IED नक्सलियों ने जवानों को नुकसान पहुंचाने के लिए लगा रखी थी। IED की चपेट में आते ही उसके शरीर के चीथड़े उड़ गए। गांव वालों का कहना है कि धमाके की आवाज सुनते ही बाकी ग्रामीण सहम गए और गांव की तरफ दौड़े।

 

अगले दिन तक जब पुनेम घर नहीं लौटा तो उसकी तलाश में ग्रामीण फिर से जंगल गए। जहां वह गंभीर रूप से घायल होकर तड़प रहा था।

  • समय पर एंबुलेंस नहीं मिलने से तोड़ा दम

ग्रामीण उसे घर लेकर आए। पहाड़ पर चढ़कर नेटवर्क सर्च किया और एंबुलेंस के लिए फोन लगाया। लेकिन, मदद नहीं मिली और पुनेम ने दम तोड़ दिया। 2 दिन पहले ही उसका अंतिम संस्कार किया गया है। 1 जनवरी को क्रॉस फायरिंग में पुनेम की 6 महीने की भांजी की गोली लगने से मौत हुई थी।

  • ग्रामीण बोले- चारों तरफ डर का माहौल

ग्रामीणों का कहना है कि हमें पता चला कि सरकार नक्सलियों से शांति वार्ता करना चाहती है, लेकिन ये शांति वार्ता होगी तो कब होगी? बस्तर का हर आदिवासी डरा हुआ है। जंगल जाओ तो डर, खेत जाओ तो डर, पहाड़ पर जाओ तो डर। हमें डर दोनों तरफ से हैं। बस्तर में जो युद्ध चल रहा है उसमें आदिवासियों के सामने इधर कुआं-उधर खाई जैसे हालात हैं।

  • गोली कहीं से भी चले, बस्तर में आदिवासी मर रहा

बस्तर में दोनों तरफ से गोलियां चल रही हैं, लेकिन इसका खामियाजा बस्तर के आदिवासियों को उठाना पड़ रहा है। वे पुलिस की मदद करें, तो नक्सली मार देंगे। बंदूक के बल पर अगर माओवादी गांव वालों से कुछ काम करवा दें, तो पुलिस का खतरा। बस्तर में काली और खाकी वर्दी पहनने वालों में ज्यादातर आदिवासी ही हैं।

मुठभेड़ में गोली किसी को भी लगे, लेकिन ज्यादातर आदिवासी ही मर रहे हैं। हालांकि, सरकार अब शांति वार्ता की पहल कर रही है। वर्तमान में हालात ऐसे हैं, कि अंदरूनी गांवों के लोग काफी डरे हुए हैं। गांव के लोग चाहते हैं कि अब यह खूनी खेल रुकना चाहिए।

  • 22 साल में 1774 लोगों को मार चुके हैं नक्सली

छत्तीसगढ़ में साल 2001 से 2023 तक नक्सली लगभग 1774 आम लोगों की हत्या कर चुके हैं। इनमें सबसे ज्यादा सिर्फ बीजापुर जिले में ही 783 लोग मारे गए हैं। IED ब्लास्ट, पुलिस मुखबिरी के शक में हत्या के आंकड़े सबसे ज्यादा हैं। सलवा जुडूम के दौर में नक्सलियों ने बस्तर में सबसे ज्यादा खूनी खेल खेला। हालांकि, 23 सालों में पहली बार फोर्स नक्सलियों पर भारी पड़ रही है।

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