पीठ ने कहा कि 25 लाख पेंशनभोगियों में से चार लाख ओआरओपी योजना के योग्य नहीं पाए गए क्योंकि उन्हें दी गई पेंशन मिल रही थी और केंद्र ने 30 अप्रैल 2023 तक बकये का भुगतान करने का प्रस्ताव दिया था। कोर्ट ने इस समय सीमा को घटाकर अगले साल 28 फरवरी कर दिया।
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि केंद्र सरकार वन रैंक वन पेंशन (ओआरओपी) के तहत पूर्व सैन्य कर्मियों को बकाये का भुगतान करने पर उनके 2022 के आदेश का पालन करने के लिए बाध्य है और वह केंद्र से 2019-2022 के लिए उन्हें अगले साल 28 फरवरी से 28,000 करोड़ रुपये की छापेमारी करने को कहा। प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, भ्रष्टाचार पी एस नरसिम्हा और भ्रष्टाचार जे बी पारदीवाला की याचिका ने सुनवाई शुरू होने पर ओआरओपी के बकये के भुगतान पर सेंटर द्वारा सीलबंद खुलासे में दिए गए जवाब को स्वीकार करने से इनकार कर दिया। पीठ ने रक्षा मंत्रालय को पूर्व सैन्य कर्मियों को भुगतान करने के लिए समय दिया।
उसने कहा, ”केंद्र सरकार ओआरओपी योजना के संदर्भ में इस अदालत के फैसले का पालन करने के लिए बाध्य है। ”पीठ ने कहा कि 25 लाख पेंशनभोगियों में से चार लाख ओआरओपी योजना के योग्य नहीं पाए गए क्योंकि उन्हें पेंशन मिल गई है रही थी और केंद्र ने 30 अप्रैल 2023 तक बकये का भुगतान करने का प्रस्ताव दिया था। कोर्ट ने इस समय सीमा को घटाकर अगले साल 28 फरवरी कर दिया। उसने ओआरओपी योजना के तहत पेंशनभोगियों के विभिन्न लक्ष्यों को बकाये के भुगतान के लिए समय दिया। पीठ ने निर्देश दिया कि छह लाख पेंशनभोगी परिवार और वीरता पदक विजेता को 30 अप्रैल 2023 तक ओआरओपी के बकाया का भुगतान किया जाए। उसने कहा कि अगले साल और उससे अधिक आयु के करीब चार-पंच लाख सैन्य कर्मियों को इस साल 30 जून तक एक या उससे अधिक किस्तों में ओआरओपी के बकाये का भुगतान किया जाएगा।
पीठा ने कहा कि शेष 10-11 लाख पेंशनभोगियों को ओआरओपी के बकाए का भुगतान अगले साल 28 फरवरी तक तीन समान किस्तों में किया जाएगा। इसके साथ ही याचिका ने यह स्पष्ट किया कि बकाय का भुगतान ”पूर्व सैन्य कर्मियों की पेंशन को समान करने की प्रक्रिया पर प्रभाव नहीं डालेगा जो 2024 में किया जाएगा।” सुनवाई शुरू होने पर उच्च न्यायालय ने ओआरओपी के बकाय के भुगतान सीलबंद लिफाफे में दिए गए जवाब को स्वीकार करने से इंकार कर दिया। पीठ ने कहा, ”अमेरिका सुप्रीम कोर्ट में सीलबंद खुलासे में जवाब दिए जाने के चलन पर रोक लगाने की जरूरत है…यह मूल रूप से फेयर न्याय दिए जाने की कार्यप्रणाली के विपरीत है।”
प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा, ”मैं व्यक्तिगत रूप से सीलबंद लिफाफे में जवाब दिए जाने के खिलाफ हूं। अदालत में कई बार…यह उलझन में आ रहा है। इसमें विश्वास क्या हो सकता है।” सुप्रीम कोर्ट ओआरओपी बकाये के भुगतान को लेकर ‘इंडियन एक्स-सर्विसमैन मूवमेंट’ (आईएसएम) की याचिका पर सुनवाई कर रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने ओआरओपी के बकाये का चार किश्तों में भुगतान करने का ”एकतरफा” फैसला करने के लिए 13 मार्च को सरकार की खिंचाई की थी।
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