
UNITED NEWS OF ASIA. गरियाबंद | बरसात की तेज़ धार बहा ले गई थी 12 साल पहले जमुना नेताम को, जो 9वीं कक्षा की छात्रा थी। वह बाकड़ी पैरी नाले को ट्यूब के सहारे पार कर स्कूल जा रही थी। उस हादसे ने पूरे जानडीह कौर बोडापाला गांव को हिला दिया। बच्चों ने स्कूल जाना बंद करने का मन बना लिया, लेकिन जमुना का भाई हेमसिंह नेताम तब सिर्फ एक किशोर था, जिसने साहस का वो फैसला लिया, जो आज भी 20 से अधिक बच्चों की पढ़ाई की डोर थामे हुए है।
रोज़ बच्चों की जान की ज़िम्मेदारी उठाता है हेमसिंह
हेमसिंह हर स्कूल दिवस पर बाकायदा राहत और बचाव का सामान लेकर बाकड़ी पैरी नाले के पास पहुंचता है। जैसे ही छात्र-छात्राएं नाले तक आते हैं, वह उन्हें एक-एक कर सुरक्षित पार कराता है। फिर शाम को उन्हें वापस भी लाता है। यह सिलसिला लगातार 12 वर्षों से बिना रुके जारी है — चाहे बारिश हो, तेज बहाव हो, या जंगल का डर।
गांव में नहीं है पुल, स्कूल पहुंचने की जंग रोज़ जारी
नाला पार करने के बाद भी बच्चों को 2 किलोमीटर का जंगली रास्ता पैदल तय करना पड़ता है, तब जाकर वे धवलपुर मिडिल और हाई स्कूल पहुंचते हैं। तेज बहाव के दिनों में बच्चे स्कूल नहीं जा पाते, लेकिन जब भी हालात सामान्य होते हैं, हेमसिंह फिर तैयार खड़ा होता है।
“अगर हेमसिंह नहीं होता, तो आज हमारे बच्चे अनपढ़ रह जाते। वह हमारे गांव का सच्चा हीरो है,”
बाल किशन सोरी, उपसरपंच
मंजूरी के बाद भी नहीं बना पुल, अधिकारी कह रहे जल्द शुरू होगा काम
6 करोड़ रुपये की लागत से बाकड़ी पैरी नाले पर उच्च स्तरीय पुल निर्माण की मंजूरी वर्ष 2023 में कांग्रेस सरकार के दौरान दी गई थी। तीन नालों में से बाकड़ी को छोड़ बाकी दो पर काम शुरू हो चुका है। जिला पंचायत सदस्य संजय नेताम ने जानकारी दी कि पुल निर्माण के लिए लगातार पत्राचार कर रहे हैं और जल्द काम शुरू कराने का भरोसा दिलाया।
लोक निर्माण विभाग के एसडीओ एसके पंडोले ने कहा कि साइट पर बोरवेल खुदाई तकनीकी कारणों से रुकी थी। अब टेंडर प्रक्रिया पूरी होते ही डीपीआर बनेगी और मानसून के बाद कार्य आरंभ कर दिया जाएगा।
फैक्ट बॉक्स:
गांव: जानडीह कौर बोडापाला
नाला: बाकड़ी पैरी नाला
स्कूल दूरी: 4 किमी (2 किमी जंगल रास्ता)
प्रभावित आबादी: 1,000+
छात्र-छात्राएं: 20+
पुल निर्माण की लागत: ₹6 करोड़
मंजूरी वर्ष: 2023
कार्य स्थिति: DPR व तकनीकी स्वीकृति प्रक्रियाधीन
अब सवाल यह है
12 साल तक एक युवक ने जिस जिम्मेदारी को व्यक्तिगत मिशन बना लिया, क्या अब शासन-प्रशासन भी उसे गंभीरता से लेगा? क्या बारिश खत्म होते ही वह पुल हकीकत बनेगा, जो अब तक एक प्रतीक बन चुका है – उपेक्षा का, संघर्ष का, और एक भाई की अडिग उम्मीद का?
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