

एएनआई
कोर्ट के उच्च खंडपीठ ने पाया कि लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित अभियुक्त भारत समूह के दायित्व में भागीदारी लेने के दौरान भारतीय सेना के एक अधिकारी के रूप में कर्तव्य के विकल्प नहीं थे, जैसा कि एनआईए ने आरोप लगाया था।
बंबई उच्च न्यायालय ने 2008 के मालेगांव विस्फोट मामले में लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित की आरोपमुक्त याचिका को सोमवार को खारिज कर दिया। उन्होंने विशेष रूप से राष्ट्रीय जांच मामले (एनआईए) की अदालत द्वारा विस्फोट मामले में उनके खिलाफ आरोप तय करने के खिलाफ अपील के रूप में दायर किया था। कोर्ट के उच्च खंडपीठ ने पाया कि लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित अभियुक्त भारत समूह के दायित्व में भागीदारी लेने के दौरान भारतीय सेना के एक अधिकारी के रूप में कर्तव्य के विकल्प नहीं थे, जैसा कि एनआईए ने आरोप लगाया था।
पुरोहित की अपील मुख्य रूप से उनके इस तर्क पर आधारित थी कि विस्फोट मामले में उनके खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए भारतीय सेना से सीआरपीएफ की धारा 197 (2) के तहत अनुमति की कमी थी, क्योंकि आरोप तय करना उनके खिलाफ वैध नहीं था, याचिका में तर्क दिया गया था। लेकिन एनआईए ने अपने जवाब में मौजदूत सहयोगी को उनके तर्क का सामना करना पड़ा। एनआईए ने अपने जवाब में कहा, “वामपंथी कर्नल प्रसाद पुरोहित के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए मंजूरी की आवश्यकता नहीं थी क्योंकि वह आंशिक रूप से अपने कर्तव्य का अधिकार नहीं कर रहे थे।”
अदालत ने एनआईए के तर्कों को स्वीकार किया और पुरोहित की अपीलों को खारिज कर दिया। बॉम्बे हाईकोर्ट के जस्टिस एएस गडकरी और जस्टिस लाइट डी नाइक की बेंच ने आज आदेश पारित किया। 1 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाई कोर्ट से कहा कि 2008 के मालेगांव विस्फोट मामले में दशक लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित की याचिका पर उनके मुकदमे की पूर्व स्वीकृति के संबंध में जल्द ही फैसला किया जाएगा। पुरोहित ने कहा था कि इस मामले में सरकार द्वारा उनके खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति देना कानूनी गलत है।
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