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काले तिल का धुआं: मानसून में सांपों को दूर रखने की पारंपरिक और प्राकृतिक पहाड़ी विधि

UNITED NEWS OF ASIA. उत्तराखंड । मानसून का मौसम जहां हरियाली और ठंडक लाता है, वहीं यह कुछ खतरों को भी साथ लाता है, खासकर पहाड़ी और ग्रामीण क्षेत्रों में। इस मौसम में सांपों के इंसानी बस्तियों की ओर आने की घटनाएं बढ़ जाती हैं। जलभराव और ठंडी जमीन से बचने के लिए सांप अक्सर घरों, गौशालाओं और आंगनों में शरण लेने की कोशिश करते हैं। ऐसे में पहाड़ों में रहने वाले लोग आज भी पारंपरिक और पर्यावरण-अनुकूल उपायों का सहारा लेते हैं, जिनमें से एक है काले तिल के धुएं का प्रयोग।

सदियों पुरानी मान्यता, आज भी कारगर
स्थानीय निवासियों के अनुभव के अनुसार, काले तिल को जलाने से उत्पन्न धुआं सांपों को घरों और रिहायशी क्षेत्रों से दूर रखने में अत्यंत प्रभावी होता है। बागेश्वर की एक ग्रामीण महिला संतोषी देवी बताती हैं कि काले तिल में प्राकृतिक तेल होता है, जिसकी जलने पर निकलने वाली तेज़ गंध सांपों की संवेदनशील सूंघने की क्षमता को प्रभावित करती है। यह गंध उनके लिए असहनीय होती है और वे उस स्थान से दूर चले जाते हैं।

प्रयोग की विधि
गांवों में लोग मिट्टी के बर्तनों या छोटी हांड़ियों में आग जलाते हैं और उसमें काले तिल डालते हैं। कुछ जगहों पर इसे गाय के गोबर के उपलों के साथ मिलाकर जलाया जाता है, जिससे एक गाढ़ा और तीखा धुआं उत्पन्न होता है। यह धुआं न केवल सांपों को भगाता है, बल्कि मच्छरों, बिच्छुओं और अन्य कीटों को भी दूर रखने में सहायक होता है।

प्राकृतिक, सस्ता और रासायनिक उत्पादों से सुरक्षित विकल्प
जहां बाजार में मिलने वाले सांप भगाने वाले रसायन महंगे और कभी-कभी हानिकारक हो सकते हैं, वहीं यह पारंपरिक विधि सस्ती, पर्यावरण-संवेदी और स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित है। यही कारण है कि कई पहाड़ी गांवों में आज भी शाम को तिल का धुआं जलाने की परंपरा जीवित है, ताकि रात में कोई विषैला जीव घर में न प्रवेश कर सके।

गंध की संवेदनशीलता पर आधारित वैज्ञानिक आधार
सांपों में गंध सूंघने की शक्ति अत्यधिक तीव्र होती है। वे अपनी जीभ और जैकबसन अंग (Jacobson’s Organ) के माध्यम से आसपास की गंध पहचानते हैं। तिल के धुएं की तेज़ और तीखी गंध उनके लिए भ्रम और असुविधा पैदा करती है, जिससे वे उस क्षेत्र को छोड़ देते हैं।

 


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