
UNITED NEWS OF ASIA. (छत्तीसगढ़) पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है, लेकिन जब इस स्तंभ को कुचलने की घटनाएं होती हैं, तो यह लोकतंत्र की जड़ों को हिला देती हैं। छत्तीसगढ़ के बीजापुर में पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हत्या ने बस्तर की अराजकता, भ्रष्टाचार, और पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर कई सवाल खड़े कर दिए हैं। सड़क निर्माण घोटाले का पर्दाफाश करने वाले इस निर्भीक पत्रकार को जिस तरह मौत के घाट उतारा गया, वह सिर्फ एक हत्या नहीं, बल्कि न्याय और सच्चाई की लड़ाई को चुप करने की कोशिश है।
घटनाक्रम और सवाल
मुकेश चंद्राकर का शव तीन दिन तक लापता रहने के बाद एक ठेकेदार के बाड़े में बने सेप्टिक टैंक से बरामद हुआ। कहा जा रहा है कि उनकी हत्या का कारण वह घोटाला था, जिसे उन्होंने उजागर किया था। यह घोटाला गंगालूर-नेलसनार सड़क निर्माण परियोजना से जुड़ा था, जिसकी अनुमानित लागत 56 करोड़ थी, लेकिन ठेकेदार ने इसे 112 करोड़ का दिखाकर सरकारी धन की लूट मचाई। इस सड़क की गुणवत्ता इतनी खराब थी कि पहली बारिश में ही यह कई हिस्सों में बह गई।
मुकेश ने इस भ्रष्टाचार को उजागर कर दिया। प्रशासनिक कार्रवाई के बजाय उनकी हत्या ने यह दिखा दिया कि बस्तर में नक्सलियों के अलावा नेताओं, अधिकारियों, और ठेकेदारों की साठगांठ भी लोकतंत्र को खोखला कर रही है।
बस्तर में पत्रकारिता की चुनौती
बस्तर जैसे क्षेत्र में पत्रकारिता करना हमेशा जोखिम भरा रहा है। यहां पत्रकारों को नक्सलियों और प्रशासन दोनों का सामना करना पड़ता है। मुकेश चंद्राकर ने अपने यूट्यूब चैनल “बस्तर जंक्शन“ के माध्यम से स्थानीय समस्याओं, भ्रष्टाचार, और जनता की आवाज़ को राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचाने का प्रयास किया। उनकी मौत यह सवाल खड़ा करती है कि क्या बस्तर में सच बोलने वाले पत्रकारों के लिए कोई जगह बची है?
छत्तीसगढ़ पत्रकार सुरक्षा कानून: सिर्फ कागजों तक सीमित
छत्तीसगढ़ सरकार ने पत्रकारों को सुरक्षा देने के लिए पत्रकार सुरक्षा कानून बनाने की घोषणा की थी। इसके तहत पत्रकारों को धमकी, प्रताड़ना, और हिंसा से बचाने के लिए एक विशेष समिति और शिकायत पोर्टल बनाने की बात कही गई थी। लेकिन मुकेश की हत्या दिखाती है कि यह कानून सिर्फ कागजों में है। सवाल यह है कि क्या यह कानून वाकई पत्रकारों के लिए कारगर है, या यह सिर्फ राजनीतिक दिखावा है?
बस्तर: नक्सली आतंक या भ्रष्टाचार की चपेट?
नक्सल प्रभावित इलाकों में सरकारी योजनाओं के नाम पर बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार होता रहा है। नेता, अधिकारी, और ठेकेदार नक्सलियों की आड़ में अपने काले कारनामे छिपा लेते हैं। सड़क निर्माण से लेकर शिक्षा और स्वास्थ्य योजनाओं तक, हर जगह भ्रष्टाचार का बोलबाला है। मुकेश की हत्या यह दिखाती है कि बस्तर को केवल नक्सली नहीं, बल्कि यह संगठित तंत्र भी खोखला कर रहा है।
सियासत और न्याय का सवाल
मुकेश की हत्या ने राजनीतिक विवाद को जन्म दे दिया है। आरोपी ठेकेदार पकड़े जा चुके हैं, लेकिन यह मामला अब पुलिस जांच और न्यायिक प्रक्रिया पर निर्भर है। झीरम घाटी जैसे मामलों में हमने देखा है कि कैसे जांच और राजनीति के जाल में न्याय की प्रक्रिया उलझ जाती है। सवाल यह है कि क्या मुकेश के मामले में तेज़ और सटीक न्याय मिलेगा, या यह मामला भी लंबे समय तक अधर में रहेगा?
सवाल जो हमें जवाब मांगने पर मजबूर करते हैं।
मुकेश चंद्राकर की मौत बस्तर में पत्रकारिता की चुनौती, प्रशासनिक लापरवाही, और भ्रष्टाचार की गहराई को उजागर करती है। यह हत्या उन लोगों के लिए चेतावनी है, जो सच बोलने का साहस रखते हैं।
1. क्या सड़क घोटाले के मुख्य दोषी सजा पाएंगे?
2. क्या छत्तीसगढ़ पत्रकार सुरक्षा कानून को लागू करने में सरकार गंभीरता दिखाएगी?
3. क्या बस्तर में नक्सलियों के साथ-साथ भ्रष्ट नेताओं और अधिकारियों की सच्चाई सामने आएगी?
मुकेश की मौत हमें यह याद दिलाती है कि लोकतंत्र की रक्षा के लिए पत्रकारों की सुरक्षा अनिवार्य है। यदि हम इस घटना से सबक नहीं लेते, तो यह न केवल
पत्रकारिता, बल्कि हमारे पूरे समाज के लिए खतरे की घंटी है।
- लेटेस्ट न्यूज़ पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें
- छत्तीसगढ़ की ख़बरें पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें
- विडियो ख़बरें देखने के लिए यहाँ क्लिक करें
- डार्क सीक्रेट्स की ख़बरें पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें
- UNA विश्लेषण की ख़बरें पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें
ख़बरों को लेकर शिकायत, सुझाव एवं विज्ञापन के लिए यहाँ क्लिक करें





