अजय देगवन ने अपने करियर की चौधी फिल्म डायरेक्ट की है और इस बार उन्होंने जादू कर दिया है। यह फिल्म न केवल उनकी डायरेक्ट सभी फिल्मों से बेहतर है साथ ही उन्होंने अपनी चुनौती को भरपूर पार किया है। किसी को भी फिर से बनाना एक बड़ी चुनौती होती है। पहले आगंतुक उसे देख रहे हैं। कहानी में सब कुछ पता चलता है। ऐसे में दर्शकों को छायांकन तक बड़ा संकट होता है।
इस बार डायरेक्टशन में जीत गए अजय देवगन
अब अजय देवगन ने इन सभी मुकाबलों को पूरा किया है। पहला, निर्देशन। मामले में अजय देवगन ने निर्देश दिया है कि इस बार इस बार फ्रेम का काम किया गया है। एक्शन सीन से लेकर जेल में बंद होने वाले सीन्स शानदार हैं। जेल से कहानी को जिस तरह उन्होंने कैमरे के एंगल पर काम किया यकीनन वो काबिल-ए-तारीफ है।
ग्रैंड सीन्स
दूसरा, अजय देवगन ने बहुत ही शानदार तरीके से खट्टी का रीमेक बनाया है। अगर आप खट्टी हैं उसके बावजूद आपको ये लुनने में रोचक बातें हैं। हर सीन को आप आंखें गढ़ाए देखते हैं। शुरुआत ही दमदार एक्शन से होती है जिसकी वजह से आप नहीं देखते हैं। छोटे-छोटे बदलाव करके भोला कैथी से खुद को अलग बनाया जाता है। लेकिन हां, कुछ लोगों को अतिश्योक्ति भी लग सकती है कि इसमें तो कोई तर्क ही नहीं है।
भोला का अंत खतरनाक
तीसरा, खट्टी से दमदार अंत भोला में देखने को मिलता है। अंत में जो सरप्राइज देखने को मिलता है उसे यकीन है कि आपने सोचा भी नहीं होगा। भोला 1 में डायरेक्टर साहब ने कई सारे सवाल छोड़ दिए हैं कि आप भोला 2 जरूर देखें।
भोला बनाम खट्टी
चौथा, भोला के लेखन की भी आकांक्षा होगी। आमिल, कूट सिंह, संदीप कीवलानी से लेकर श्रीधर ने मिलकर इसकी कहानी लिखी है। लेकिन कुछ सीन्स को बेहतर बनाया जा सकता था। जैसे करछी वाले सीन्स खट्टी के ज्यादा बेहतर थे जहां ज्यादा पंच देखने को मिले थे।
कैथी को भोला के जरिए ग्रैंड बनाया गया
पांचवा, भोला को 3डी में लाकर अजय देवगन ने सबसे बड़ी चालाकी दिखाई है। उन्होंने कैथी को भोला के रूप में बहुत बड़ा बना दिया है। हर सीन काफी बड़ा और फेयरेस्ट आता है। जंगल, भोले नाथ की प्रतिमा, झरने से लेकर सभी दृश्य भव्य दिखते हैं।
अजय देवगन को भोला 2 में इन बातों का ध्यान रखना होगा
हालांकि भोला के कई खामियां भी हैं। कैथी से तुलना करें तो यकीनन ये ठीक लगता है लेकिन अजय देवगन ने कुछ चीजों के साथ ठीक नहीं किया। जैसे कि कुछ सीन छोटे करके वहां भी अपना कैमरा देखते हैं। ऐसे ही असली क्लाइमैक्स सीन के साथ भी अजय देवगन न्याय नहीं कर पाए। पुलिसवाले के रोल में संजय मिश्रा का रोल कम कर दिया और खुद ही बड़े सी डायनामाइट से भरी बंदूक लेकर आतंकवाद के छक्कों में लग गए। बॉलीवुड अभिनेताओं के साथ ये बहुत बड़ी परेशानी है कि वह हर सीन्स में खुद को देखना चाहते हैं। वहीं, इमोशनल सीन्स में वह गच्चा खा गए। बेटी और पिता वाले सीन्स बेहतर हो सकते थे।