फिल्म समीक्षा भीड: निर्देशक अनुभव सिन्हा की फिल्म ‘भीड़’ सिनेमा में रिलीज हो चुकी है। 2018 के बाद से ही अनुभव सिन्हा ने अपने निर्देशन के तेवर में जिस तरह का बदलाव किया है, वह अपनी हर फिल्म में लगातार नजर आ रहे हैं। पहले ‘मुल्क’, फिर ‘थप्पड़’, ‘आर्टिकल 15’, ‘अनेक’ और अब उनकी फिल्म आई है ‘भीड़’। मार्च 2020 में भारत में लॉकडाउन लगा, जिस तरह से लाखों शहरी अतिक्रमण करने पर मजबूर कर दिया। कोरोना काल की इस त्रासदी में लॉकडाउन से घबराहट और लोगों के घर जाने की इस कहानी के पर्दे पर राजकुमार राव, आशुतोष राणा, भूमी पेडणेकर, कृतिका कामरा, दिया मिर्जा जैसे सितारों ने पेश किया है।
कहानी की बात करें तो यह फिल्म 24 मार्च को देश में घोषित लॉकडाउन के एक दिन की है। लॉकडाउन ऐसी घटना थी, जैसे इससे पहले देश में कभी नहीं देखा था। दौड़ते शहर में अचानक बंद हो गए और लोग अपने घरों में ही रहने की सलाह दे गए। लेकिन ऐसे में अचानक लाखों तादाद में तैरते हुए उतरे प्रवासी मजदूर जो शहरों में रोटी कमाने लगे थे। शहर बंद तो रोजगार बंद और रोजगार बंद तो रोटी बंद। इस बंद से घबराए लोगों को अपना घर जाना था लेकिन लॉकडाउन ने देश में ही ‘बॉर्डर’ सील कर दिया। न बसें चल रही थीं, न ट्रेन और न कुछ और। ऐसे में लोगों ने पैदल ही मीलों तक का सफर शुरू कर दिया। शहर से निकले ये लोग अक्षर हैं तेजपुर बॉर्डर पर जहां पुलों ने चेकपोस्ट लगा दिया है। वाट्सएप और फेसबुक इन लोगों को बता रहे हैं कि बड़े अधिकार रखने वालों के लिए खास बैठकें हो रही हैं। जबकि अधिकारियों का कहना है कि कोई बैठक नहीं हो रही है। इन लोगों के पास न खाना है, न छत, न पानी और न तसल्ली। इसी चेकपोस्ट के इंचार्ज हैं सूर्य कुमार सिंह टीकस (राजकुमार राव)। ये फिल्म वही चेकपोस्ट घटी एक दिन की घटना की कहानी है।
शाइनिंग इंडिया के नारे के साथ धूल भरी रोड के किनारे एक मॉल का पहाड़ है और उसके सामने कच्ची सड़क है, जिस पर सैकड़ों लोग आगे बढ़ने की उमीद में खड़े हैं। कहानी में समाज के इस विरोधाभास को बिना कुछ ज्यादा बस माहौल के माध्यम से दिखाया गया है। ‘भीड़’ जब शुरू होता है जो अपने पहले ही सीन से हिलाकर रख देता है। पितरों के लोग अपने घर जाने के लिए अकेले मजदूर परिवार को लेकर पटरी पर ये सोच कर सो जाते हैं कि अब ट्रेन नहीं चल रही है। लेकिन फिर इन साते हुए अनुक्रम को तनाव ही दबाता है। ये सीन बिना कुछ दिखाए ही रोंगटे खड़ा कर देता है। लेकिन इसके बाद कहानी चलती है और कहानी की तरह लगती है। दरअसल फिल्म के किरदारों से ज्यादा जब बीच-बीच में इन प्रवास के चेहरे दीखाए जाते हैं, ये दिमाग पर ज्यादा गहरा प्रभाव डालते हैं।
फिल्म ‘भीड़’ 24 मार्च को सिनेमा में रिलीज हो सकती है।
अनुभव सिन्हा इससे पहले ‘मुल्क’ और ‘थप्पड़’ जैसी कहानियां कह चुके हैं, हर डायलॉग आपको आर्क से बांध के रखता है। लेकिन भीड़ उस पैमाने पर खरी नहीं उतरी। इस कहानी में आपको बार-बार महसूस होगा कि नेपथ्य में लॉकडाउन और कोरोना वायरस को बनाए रखें ‘कास्ट कॉनफ्लिक्ट’ को दिखया गया है। इसमें कोई परेशानी नहीं है, लेकिन जब फिल्म को लॉकडाउन जैसी ट्रैजडी से जोड़ कर प्रमोट किया गया, तब कहानी का ये बेसिवाद शर्बत आपके मुंह का स्वाद खराब कर देता है।
पंकज कपूर ने फिल्म में बेहतरीन काम किया है।
कहानी के कियरदार सामान्य बातचीत की जगह नॉलेज देते हैं। हालांकि फॉर्च्यूनर बनी दिया मिर्जा ने जैसी खूबसूरती से ‘इन लोगों की इम्यूनिटी हम सिटी वालों से ज्यादा अछि होती है’ जैसे डायलॉग बोले हैं, वो काबिले आकांक्षा हैं। आशुतोष राणा और दीया मिर्जा के किरदार जिस सटल तरीके से अपनी बात रखते हैं, उन्हें देखकर कही भी आपको ‘एक्टिंग हो रही है’ वाली फिलिंग नहीं आती। एक्टिंग की बात करें तो प्रिंस राव और पंकज कपूर की अदला-बदली ये बार-बार साबित कर देंगे कि वह बेहतरीन एक्टिंग क्यों दीखाते हैं। फिल्म के शुरुआती सीन में फोन पर अपने लोगों के लिए बस की व्यवसथा करने से लेकर लेकर फाइनल में अपने परिवार के लिए कारण तय करते हैं, पंकज कपूर के किरदार में ढाढ़स टूटना और ट्वीट होने के भावों का जो बदलाव आप देखते हैं, ये पूरा स्केल आप में एक एक्टिंग की क्लास है।
दिया मिर्जा इस फिल्म में एक ऐसी महिला का किरदार निभा रही हैं जो अपनी बेटी को घर से वापस ला रही है।
अनुभव सिन्हा ने शानदार एक्टरों के साथ मिल्कर इस बार एक बंधी हुई फिल्म बनाई है, जो उनके ही पुराने काम से तुलना करने पर कमतर साबित है। मेरी तरफ से इस फिल्म को 2.5 स्टार।
विस्तृत रेटिंग
कहानी | : | |
स्क्रिनप्ल | : | |
डायरेक्शन | : | |
संगीत | : |
ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें News18 हिंदी| आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज न्यूज, सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज वेबसाइट News18 हिंदी|
टैग: अनुभव सिन्हा, भूमी पेडनेकर, फिल्म समीक्षा, राजकुमार राव
पहले प्रकाशित : 24 मार्च, 2023, 17:12 IST