
मोर मान मोर कबीरधाम में हम बात करेंगे आज ऐसे शक्स की जिसका इतिहास शिरडी के साईं बाबा से भी पुराना है एक ऐसा फकीर जिसने अपना पूरा जीवन काल मांगकर खाने में, लोगों की तकलीफों को दूर करने में लगा दिया, उनके जीवन काल में बहुत सी घटनाएं घटी जिसने लोगों को मजबूर कर दिया कि वे उनके पास जाएं अपनी तकलीफें उस फकीर से बताएं अपनी तकलीफ से राहत पाए। कहते हैं कि आज तक जो भी इनके पास गया वह कभी खाली हाथ नहीं लौटा ऐसे है इनकी शख्सियत।
लगभग सन 1757 के आसपास एक फकीर कवर्धा आया और झोपड़ी बनाकर रहने लगा। वह कहां से आए थे कैसे कवर्धा पहुंचे इसके बारे में किसी को कोई जानकारी नहीं है। चेहरे में अलग सा नूर धीमी बोली पूरे समय ध्यान में मगन लोगों के घरों में जाकर खाना मांग कर अपना जीवन यापन करते थे। धीरे-धीरे इनके चमत्कार लोगों के कानों में सुनाई पड़ने लगे लोग इनके पास अपनी तकलीफ लेकर जाने लगे जो भी इनके दरबार पर जाता कभी खाली हाथ नहीं लौटा। लोगों में दूर होती समस्या को देखकर बहुत सारे लोग इनसे जुड़ने लगे इनको मानने लगे इनको पूजने लगे। ऐसी शख्सियत जिसने कभी किसी धर्म जात-पात ऊंच-नीच भेदभाव को तवज्जो नहीं दी। कवर्धा नगर में किसी को जरा सा भी अंदेशा नहीं था कि यह कौन थे। ये थे हजरत महबूब शाह दातार रहमतुल्लाह अलैह।

आज उनके चाहने वालों उनको पूजने वालों की कमी नहीं है सभी धर्मों के लोग उन्हें दिल से मानते हैं अपनी समस्याओं लेकर आज भी लोग उनके पास जाते हैं उनके दरवाजे पर बैठते हैं और उनकी नेमत उसे अपनी तकलीफों को दूर कर पाते हैं। आज वर्तमान में जो स्वरूप आपने उनकी दरगाह का देखा है जितनी भव्यता देखी है किसी जमाने में एक छोटी सी झोपड़ी हुआ करती थी जहां ये रहते थे । धीरे-धीरे लोग लोग उनके करिश्मा से रूबरू होने लगे और उनकी झोपड़ी के आसपास ही घर बनाकर रहने लगे देखते ही देखते पूरा कस्बा बस गया। इनके चमत्कारों के कई किस्से हैं । UNA आज आपको उन चमत्कारी घटनाओं से रूबरू कराएगा।

किसी जमाने में कवर्धा के रियासत के राजा उजियार सिंह हुआ करते थे हजरात एक दिन उनकी परीक्षा लेने महल पहुंच गए। राजा उजियार सिंह उनकी चेहरे का नूर देखते ही रह गए हजरत साहब ने राजा साहब की सोने की अंगूठी और छड़ी मांगी। राजा साहब ने उदारता दिखाते हुए हजरत साहब को वह छड़ी और अंगूठी दे दी कुछ सालों बाद जब हजरत साहब पर्दापोस हुए तो वह छड़ी और अंगूठी उनके कब्र के साथ उसी झोपड़ी में दफना दी गई। उनके परदापोस होने के बाद भी आज पर्यंत तक उनकी नेमतें सभी धर्मों के लोगों पर बनी हुई है। पर्दा पोस होने के कुछ समय बाद उन्हें मंडला के आसपास देखा गया मंडला के आसपास वे एक चरवाहे से मिले और हजरत ने उस चरवाहे को राजा द्वारा दी गई अंगूठी और छड़ी को कवर्धा रियासत ले जाकर राजा साहब को वापस करने को कहा।
जब वह चरवाहा कवर्धा राजा साहब के पास पहुंचा और चरवाहे ने उन्हें उनकी सोने की अंगूठी और छड़ी वापस की तो राजा उजियार सिंह को विश्वास नहीं हुआ कि वह अंगूठी जो उन्होंने हजरत साहब को दी थी और जिस अंगूठी और छड़ी को हजरत साहब के पर्दापोस होने के समय उनके साथ ही उनकी कब्र में दफना दिया गया था। वह अंगूठी और छड़ी भला इस चरवाहे के हाथ में कैसे आ गई उन्होंने चरवाहे की बात में यकीन ना करते हुए दरबार में और नगर में उपस्थित सभी लोगों की सहमति से अब उनकी कब्र खुदाई कराई गई। खुदाई के बाद जो सब ने देखा मानों सभी के पैरों से जमीन खिसक गई थी वाकई में राजा की वह अंगूठी और छड़ी जिसे उन्होंने खुद हजरत साहब को दिया था और उनके पर्दा पोस होते समय कब्र में दफना दी गई थी वह छड़ी और अंगूठी वहां थी ही नहीं।
इस वाकए के बाद उन्हें लोग और भी मानने लगे और धीरे-धीरे उनके चमत्कार और उनके दयालुता के बारे में आसपास के पुरे इलाके में सभी धर्मों के बीच फैलने लगे आज भी लोग हजरत साहब के पास अपनी तकलीफ है लेकर जाते हैं और अपनी तकलीफों से निजात पाते हैं।

मंडला में उन्हें हजरत मेहताब शाह रहमतुल्ला अलैह के नाम से जाना जाता है उनकी मंडला में कवर्धा के बाद एक और मजार हैं ऐसा कहते हैं कि वे अद्भुत शक्तियों के धनी है। वे ऐसे बादशाह हैं जो पूरी दुनिया को हिलाने की ताकत रखते हैं। मंडला के अलावा कई और जगह अलग-अलग नामों से जाने जाते हैं और अलग-अलग जगह में उनकी दरगाह है। किंतु जानकारों के मुताबिक यहां कवर्धा स्थित जो दरगाह है वही उनका मुख्य दरगाह है।

हजरत साहब की दरगाह के पीछे एक कुआं है जो हजरत साहब के समय का ही है । एक बार की बात है की वहां पर एक महिला अपने घर का चावल धो रही थी चावल धोते-धोते उसका पूरा चावल उस कुंआ में गिर गया और वह परेशान हो गई की आज उसके घर में खाना नहीं बन पाएगा । हजरत साहब की चमत्कार से देखते ही देखते उस कुएं में गर्म पुलाओ ऊपर तक भर गया मानो कुआं ना हो पुलाव का कढ़ावा हो । इस वाकए ने बाबा साहब के लोगों के प्रति दयालुता को और भी प्रसिद्ध कर दिया कुएं में भरे पुलाओं को लोगों ने कई दिन तक खाया और आज भी वो कुंआ और कई वृद्धजन इस बात के जीते जागते गवाह हैं।

ताजदार हजरत महबूब शाह दातार रहमतुल्लाह अलेह के चमत्कारों की बहुत सी सच्ची घटनाएं हैं । जिसे एक किताब लिख कर भी पूरी नहीं की जा सकती । लोगों के दुख दर्द को समझना उन्हें अपने नेमतों नवाजना आज भी अनवरत जारी है। हर साल उनके उर्स के मौके पर नगर में बड़ी धूमधाम के साथ उनका उर्स मनाया जाता है। कवर्धा के एक ऐसे बादशाह जिन्होंने धर्म और जात पात के परवाह किए सभी की तकलीफ को आज भी दूर करते आ रहे हैं आज भी लोग बड़ी शिद्दत के साथ उनके दरवाजे पर माथा टेकने पहुंचते हैं।
अस्वीकरण: इस पूरे खबर पर शिरडी के साईं बाबा का नाम केवल केवल यह बताने के लिए की है के शिरडी साई बाबा लगभग शिरडी में लगभग 1858 के आस पास में पहुंचे थे। जबकि हजरत साहब की जानकारी 1757 के लगभग कवर्धा में मौजूद होने की मिलती है । इसके अतिरिक्त किसी भी विषय पर शिरडी के साईं बाबा के नाम का उपयोग हम इस खबर के लिए स्वीकार नहीं करते हैं। इस खबर में साई बाबा का नाम किसी भी धर्म जाति विशेष को नही दर्शाता है ।
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