योग गुरु स्वामी रामदेव ने कहा कि सनातन धर्म को 200 से ज्यादा देशों में फैलाने का लक्ष्य है। कहा कि भागीदारी भागीदारी पर आयोजित संन्यास दीक्षा महोत्सव सनातन धर्म की क्रांति है। संन्यासी बाबा रामदेव के साथ क्या वाक्य है? वो घटना आज 28 साल बाद बाबा रामदेव को फिर याद आ गई।
कहा कि संन्यास दीक्षा महोत्सव सनातन धर्म की क्रांति है। यहां बने संन्यासी न पलायनवादी और न जातिवादी हैं। ये संन्यासी राष्ट्रवादी और अध्यात्मवादी संन्यासी हैं। संन्यास दीक्षा महोत्सव में सनातन संन्यासी सेना और नारायणी सेना बन रही है। इन सभी संतों ने निश्चय किया है कि कोई भी अशुभ अपने अंदर नहीं आने देगा। यह संत नर से नारायण बने हैं। ये बातें स्वामी रामदेव ने संत दीक्षा महोत्सव के समापन पर कहीं।
सक्रियता घाट पर आयोजित कार्यक्रम में योग गुरु ने 40 विदुषियों और 60 विद्वानों को संन्यास की दीक्षा दी। योग गुरु ने अपने 29 वें संत दिवस पर एक नया इतिहास रचते हुए अष्टाध्यायी, महाभाष्य व्याकरण, वेद, वेदांग, उपनिषद में दीक्षित शताधिक विद्वान एवं विदुषी संन्यासियों को राष्ट्र को समर्पित किया। आचार्य बालकृष्ण ने 500 लोगों को ब्रह्मचर्य की दीक्षा दी।
यह भी पढ़ें: योग गुरु बाबा रामदेव ने आयुर्वेद पर दिए गए बयानों को सभी को चौंकाया, कुछ ये बातें
इस दौरान स्वामी रामदेव ने कहा कि जीवन में संत होने से कोई बड़ा तप और त्याग नहीं है। संता बनने के लिए अपने आप, अपनी जवानी को और अपनी सभी इच्छाओं को आहट कर देना बहुत बड़ा त्याग है। संन्यासी होने का अर्थ है पूर्ण विवेकी होना, पूर्ण श्रद्धा से आपलावित होना।
श्रद्धा की, भक्ति की, समर्पण की शुक्र की दिव्यता की परकाष्ठा ही संत है। यह संत भारतीय संस्कृति, परंपराओं की पताका लेकर पूरी दुनिया में निकलेंगे। यह सन्तानी वैश्विक स्तर पर सनातन धर्म की घोषणाता है। उसी के साथ भारत पुन: विश्व गुरु देखें। यही महर्षि दयानंद स्वप्न थे।
अंश बालकृष्ण ने कहा कि धन्य है वह माता-पिता जिन्होंने बच्चों को लेकर कठोर निर्णय लेकर संत को बनाया। जिस मार्ग पर हमने संकल्प लिया है। जिसका अनुश्रवण स्वामी रामदेव के सपने को पूरा करने का प्रयास है। शामिल हुए हम सफल हो, ऐसा आशीर्वाद सभी उपस्थित लोग हमें दें। महोत्सव के दौरान एनपी सिंह, साध्वी देवप्रिया, प्रो. बृजभूषण ओझा, आदि उपस्थित रहे।
अपने संन्यास के समय को याद किया
संत दीक्षा महोत्सव के समापन के दौरान योग गुरु बाबा रामदेव ने अपने संन्यास के समय को याद किया। योगगुरु ने बताया कि उन्होंने चार अप्रैल 1995 में संन्यास की दीक्षा ली थी। बताया कि संत दीक्षा के दौरान उनकी माता बेहोश होकर गिर गई थी। उन्होंने कहा कि संत दीक्षा के समय बहुत से संतों की आंखों की आंखें नम देखकर मुझे अपना समय याद आ गया।
स्वामी रामदेव से लेकर प्रेरणा लेकर 100 लोगों ने ली संन्यास की दीक्षा
साझेदारी घाट पर संन्यास दीक्षांत समारोह में सौ लोगों ने संन्यास की दीक्षा ली। संन्यास धारण करने वालों ने कहा कि हम समाज, राष्ट्र और सनातन धर्म की रक्षा के लिए कार्य करेंगे। सभी ने कहा कि स्वामी रामदेव की प्रेरणा से उन्होंने यह फैसला लिया है। संन्यास धारण करने वालों के परिजनों ने नम आंखों से उनके राष्ट्र हित में फैसले का स्वागत किया। परिजनों ने कहा कि सनानत धर्म की रक्षा के लिए सन्यासिंक्यो की यह सेवा देखकर मन अंदर से प्रफुल्लित हो रहा है।
संतों ने किया गंगाजल से अभिषेक
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने संत दीक्षा उत्सव के दौरान संतों का गंगा जल से अभिषेक किया। इस दौरान 60 विद्वान संतों के आरएसएस प्रमुख ने योगगुरु रामदेव और रहस्य बालकृष्ण के साथ जनाभिषेक स्वामी किए।
सभी संतों और खोजे गए प्रणाम
दूसरा। सन्यास दीक्षा उत्सव के दौरान आरएसएस प्रमुख ने योग गुरु स्वामी रामदेव और गुप्त बालकृष्ण के साथ उत्सव में सभी साधक और सन्यासियों को झुकाने का प्रमाण दिया। इस दौरान स्वामी रामदेव ने कहा कि नारायणी सेना बन कर तैयार है।
संता दीक्षा महोत्सव में मौजूद मौजूदा त्याग सर्वश्रेष्ठ: भगवत
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा है कि संन्यास दीक्षा महोत्सव में मौजूदा त्याग, सर्वकालिक त्याग है। उसके बाद सन्यासियों का बलिदान है। आप सभी यहां मौजूद को मैं प्रणाम करता हूं। आप कमजोर ने लाड़ प्यार से, पाल-पोसकर अपने बच्चों को बड़ा किया। आज अपने कुल का लाल, अपने कुल का आपने देश, धर्म, संस्कृति और मानवता के लिए दे दिया है। यह सबसे बड़ा त्याग है।