
भगवान दादा | अलबेला गाने | अतिथि देवो भवः, अतिथि भगवान के जैसा होता है…, हमारे आपके घर में यह मुहावरा बड़ा प्रसिद्ध है। लेकिन कई बार घरों के साथ घरों में बड़े पैमाने पर विकट स्थिति भी पैदा हो जाती है। बिना बताए घर आने वालों के सेवा-सकार करना हमारी संस्कृति रही है। उसी समय अतिथि के रूप में घर आने वाले सदस्य बने रहने पर चुटकुले भी बन रहे हैं। लेकिन क्या आपने कभी सुना है कि मेहमान को घर बुलाने से जबरिया गाना लिखवाए जाएं? साल 1951 में बनी बनी फिल्म ‘अलबेला’ का मशहूर गाना ‘धीरे से आज री अंखियां में’ के निर्माण की कहानी कुछ ऐसी ही है। जी हां, राजेंद्र कृष्ण का यह गीत हिंदी सिनेमा की सबसे बेहतरीन लोरियों में से एक माना जाता है। इसके संगीतकार थे सी. रामचंद्र। उन्हीं को हम गायक चितलकर के तौर पर भी जानते हैं।
…तो ‘अलबेला’ फिल्म के इस गाने के बनने की कहानी कुछ यूं है। दरअसल, मशहूर हास्य अभिनेता लॉर्ड ग्रैंडफादर की इस फिल्म के लिए गाने बनाने की जिम्मेवारी सी. चंद्र को सौंपा गया था। गाने क्रिएट का कामेंद्र कृष्ण का था। इन दोनों की जोड़ी से पहले कई हिट फिल्में और सुपरहिट गाने दे चुकी थी। चक्कर इस फिल्म के सीन के होश से गाना बन गया था। मगर राजेंद्र कृष्ण चाहने वाले भी गाना लिखने का मूड नहीं बना पा रहे थे। फिल्म निर्माता पूरा सेट बनाकर तैयार कर रहे थे, मगर गाना नहीं बन रहा था। सी। रामचंद्र से लेकर यूनिट के सभी सदस्य परेशान थे। आखिरकार रामचंद्र को एक नायाब कॉस सूझ गया।
वो कम हो जाता है।
‘धीरे से आजा री अंखियां में’ गाने की रचना के लिए संगीतकार सी. रामचंद्र ने जो अनुमान लगाया था, उसे देखकर आपकी हंसी छूट जाएगी। रामचंद्र चाहते थे कि राजेंद्र कृष्ण कृष्ण जल्दी से जल्दी गाना लिखते हैं, मगर गीत लिखने के लिए राजेंद्र कुछ देर से शांति से ग्रहण करने में सक्षम, यह हो ही नहीं पा रहा था। इसलिए एक दिन सी. रामचंद्र ने राजेंद्र कृष्ण को अपने घर बुलाया। उद्र ने अपनी पत्नी से कहा कि जैसे राजेंद्र कृष्ण भिन्न हैं, तुम बाहर से लॉक होने जा रहे हैं और जब तक मैं फोन नहीं करता, आना मत। ऐसा ही हुआ, तय समय पर राजेंद्र कृष्ण संगीतकार सी. चंद्र के घर आ गया। वे ही आते रामचंद्र की पत्नी घर में लॉक्स अपनी बहन के यहां चली गईं। अब राजेंद्र कृष्ण फंस गए। वे बैठ गए और तब जाकर इस मशहूर गाने का निर्माण हो सका।
स्काई के तारे को देखकर धुन बनाई गई थी
संगीत विशेषज्ञ पंकज राग समुदाय से आईएएस रहे हैं। कला, संस्कृति और संगीत के प्रति विशेष रूप से राग रखते हैं। इन पंकज रागों ने हिन्दी फिल्म संगीत 75 साल की यात्रा और गीतों की रचना में एक बड़ी उल्लेखनीय किताब ‘धुनों की यात्रा’ लिखी गई है। फिल्म ‘अलबेला’ की मशहूर लोरी के निर्माण का रोचक किस्सा बताते हुए राग लिखते हैं, ‘संगीतकार सी. रामचंद्र ने ‘धीरे से आजा री अंखियों में’ गाने की धुन रात के समय बनाई थी। निस्तब्ध रात में आकाश के तारे को देखते हुए रामचंद्र ने ऐसी मिठाइयाँ बनाईं कि इस फिल्म के मुख्य कलाकार हैं दादा इसे सुनकर भी विभोर हो जाते हैं।
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प्रथम प्रकाशित : 27 दिसंबर, 2022, 12:36 IST



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