मनपाड़ा: गुजरात में भूपेंद्र पटेल कैबिनेट के शपथ ग्रहण से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बड़ा संदेश दिया है। मंच पर 12 बजे, 5 राज्यों के उप-मुख्यमंत्री और बीजेपी संसदीय बोर्ड के सभी सदस्य बैठे थे। ये सभी 16 राज्यों में रहने वाले देश की 65 फीसदी आबादी का दम दिखा रहे हैं जहां बीजेपी सरकार है। गुजरात में सभी मंत्री और नंबर ने हाथ में गीता लेकर शपथ पढ़ी। हाथ में गीता वाले इस शपथ में बहुत से लोग संकेत और संदेश दोनों देख रहे हैं। हाथ में गीता और उनके ऊपर का पद और गोपनीयता का शपथ पत्र… सबकी निगरानी मंत्री के हाथ में मौजूद किताब पर लगातार बनी हुई है।
आपको बता दें कि भारत के संविधान में मंत्री की शपथ विधि में किसी धार्मिक या धार्मिक ग्रंथ को लेकर शपथ लेने की विधि नहीं है लेकिन धार्मिक संस्थाओं के मूल अधिकारों के तहत अपने धर्म के अनुसार धार्मिक या ईश्वरीय ग्रंथों को हाथ में लेकर शपथ भी है । ऐसा कोई नो ही करता है लेकिन गुजरात के पूरे कैबिनेट ने यह किया। शपथ ग्रहण प्रत्येक हाथ में गीता थी।
गीता पर शपथ का मतलब क्या है?
दरअसल, गुजरात पूरे देश में हिन्दुत्व की संबद्धता के नाम से जाना जाता है। नरेंद्र मोदी इसे विकास की लिंक भी कहते हैं। नरेंद्र मोदी ने हिन्दुत्व में विकास को मिला कर सत्ता का जो कर्त्यव्यपथ तैयार किया है। वो मानते हैं कि इस देश के पास गीता से मूल्यांक कुछ भी नहीं है। ये धर्म से परे विश्वमानवता का ग्रंथ है, भारत के विश्वगुरु बनने की धारणा है। नरेंद्र मोदी ने जब दिल्ली में राजपथ से गुलामी के प्रतीक की घोषणा की तो उन्हें भी नाम दिया था कर्तव्य पथ। गीता संपूर्ण मानवता को कर्तव्य का संदेश देती है। नरेन्द्र मोदी भी बार-बार अपनी सरकार और सत्ता को निष्प्रभावी सेवा का प्रतीक व्यक्त करते हैं। गीता को हिन्दुत्व का मूल दर्शन वाले स्वामी विवेकानंद के मिशन से जुड़े लोग मोदी के इस भाव को समझते हैं।
गीता के साथ शपथ हिन्दुत्व की खरी पहचान है?
गुजरात में गीता के साथ शपथ को देखने का नजरिया अलग विचारधारा के साथ अलग हो सकता है लेकिन गुजरात में ये पहली बार नहीं हुआ है। इससे पहले 2001 में मोदी के शपथ ग्रहण में उनके हाथों में गीता थी, 2012 में फिर मोदी के हाथ में शपथ के समय गीता थी। इसके बाद 2014 में आनंदीबेन पटेल की ओथ सेरेमनी में भी हाथों में गीता थी। अब अगर इस गीता की शपथ के राजनीतिक संकेत देखें तो समझ में आता है कि ऐसा करने से बीजेपी भारतीयों की छवि को मजबूत करती है। जातीय वोटबैंक को हिंदू वोट से तोड़ती है, इसके अलावा मुस्लिम ध्रुवीकरण को हिंदू ध्रुवीकरण से कमजोर करती है।
जातियों में बंटकर हिंदू एक करने के राजनीतिक एजेंडे में काफी हद तक सफल भी हुए हैं। गुजरात चुनाव के बाद मिले सिगरेट के वोटर टेस्ट से जो परिणाम सामने आए हैं ये ये बात स्पष्ट हो जाती है कि बीजेपी की हिंदुत्व पहचान से मतदाता जाति तोड़ कर जुड़ रहे हैं।
- बीजेपी को अगड़ी जाति का 62% वोट मिला है
- पाटीदार वोट का 64%
- ओबीसी क्षत्रिय का 46%
- कोली जाति का 59%
- अन्य ओबीसी का 58%
- पित्त का 44%
- मजबूर का 53%
- अन्य जातियों का 63% वोट मिला है
गीता के साथ पद की शपथ का क्या संकेत है?
खास बात ये है कि वोट का बीजेपी के विरोध में चुनाव दर चुनाव बढ़ रहा है। इसकी वजह मोदी खुद जताते हैं कि उनकी सरकार सबका रवैया है। विकास के काम में भेदभाव नहीं करती तुष्टिकरण नहीं करती है। गुजरात में गीता के साथ पद की शपथ में संदेश भी है और संकेत भी। संदेश ये कि बीजेपी हिन्दुत्व की पहचान छिपी नहीं है वो धर्म के झुकाव से आगे हिंदू राष्ट्र की पहचान के साथ पूरी दुनिया के सामने आना चाहता है। संकेत ये कि 2024 के चुनाव में भाजपा की रणनीति में ये भारत और मजबूत एक उभरेगा। जाति के खेमे में बंटी राजनीति में बड़ी खलबली जालेगी।