
UNITED NEWS OF ASIA. असीम पाल, दंतेवाड़ा । आज़ादी के 77 साल बाद भी बस्तर संभाग के कई क्षेत्र सड़क जैसी बुनियादी सुविधा से वंचित हैं। कमारगुड़ा निवासी बंडी मुरियामी, एक वृद्ध महिला की मौत इसी सरकारी उपेक्षा और बदहाल मूलभूत ढांचे की गवाही बन गई है।
बंडी मुरियामी बीते 6 दिनों से बीमार थीं, लेकिन गांव तक सड़क न होने के कारण उनके परिजनों को उन्हें 20 किलोमीटर तक पैदल चलाकर नहाड़ी पटेलपारा लाना पड़ा। वहाँ से संजीवनी 108 को सूचना दी गई। उबड़-खाबड़, दुर्गम रास्तों को पार करते हुए एम्बुलेंस टीम ने अपनी जिम्मेदारी निभाई और महिला को जिला अस्पताल पहुँचाया गया, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। डॉक्टरों की कोशिशों के बावजूद महिला को बचाया नहीं जा सका।
सवालों के घेरे में शासन-प्रशासन
यह घटना सिर्फ एक मौत नहीं, बल्कि बस्तर की दशकों से उपेक्षित हकीकत की गवाही है।
❓ आज़ादी के आठ दशक बाद भी पहुंचविहीन क्यों हैं बस्तर के गांव?
❓ जब हम चाँद तक पहुंच चुके हैं, तो बस्तर के भीतर एक सड़क क्यों नहीं बना पाए?
❓ एनएमडीसी जैसी “नवरत्न” कंपनी, जिसकी सालाना कमाई 10,000 करोड़ रुपये से अधिक है, वह दंतेवाड़ा में सक्रिय होने के बावजूद क्षेत्र की यह दुर्दशा क्यों?
जनता की पीड़ा, प्रशासन की चुप्पी
सरकारी दावों के विपरीत हकीकत यही है कि बस्तर के सैकड़ों गांवों तक न तो पक्की सड़कें हैं, न स्वास्थ्य सेवाएं, और न ही तत्काल मदद की कोई व्यवस्था। हर साल इस उपेक्षा की कीमत गरीब आदिवासी जनता अपनों की लाशें ढोकर चुकाती है।
अब सवाल यह है – जिम्मेदार कौन?
क्या हम सब इस खामोशी के भागीदार हैं?
क्या यह शासन-प्रशासन की असफलता नहीं है?
क्या इस मौत का कोई जवाबदेह होगा?
अब देखना यह है कि –
क्या यह घटना भी केवल फाइलों में बंद होकर भुला दी जाएगी,
या फिर प्रशासन जवाबदेही तय कर,
पहुंचविहीन गांवों को सड़क सुविधा से जोड़ने की ठोस कार्ययोजना बनाएगा?
यह सिर्फ एक बस्ती या एक महिला की बात नहीं, यह सवाल पूरे बस्तर की नियति से जुड़ा है।
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