छत्तीसगढ़

कवर्धा: आदित्यवाहिनी द्वारा धर्मसम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज की जयंती पर भव्य आयोजन, श्रद्धा व गौरव से मनाया गया पुण्य दिवस

UNITED NEWS OF ASIA. कवर्धा | धर्म, त्याग और सनातन संस्कृति के प्रतीक धर्मसम्राट  स्वामी करपात्री जी महाराज की जयंती कवर्धा में आदित्यवाहिनी के तत्वावधान में श्रद्धा और भव्यता के साथ मनाई गई। इस अवसर पर आदित्यवाहिनी के पदाधिकारियों एवं कार्यकर्ताओं ने राधाकृष्ण बड़े मंदिर में वैदिक मंत्रोच्चार के साथ पूजन-अर्चन किया और धर्मसम्राट के विचारों को जनमानस तक पहुँचाने का संकल्प लिया।

कार्यक्रम की शुरुआत आदित्यवाहिनी के प्रदेश उपाध्यक्ष अवधेश नंदन श्रीवास्तव, पूर्व जिला अध्यक्ष मारुतिशरण शर्मा, अमित शर्मा, शुभांक शर्माशाश्वत शर्मा द्वारा मंदिर में विधिवत पूजा-अर्चना से हुई। तत्पश्चात जिला उपाध्यक्ष नंदू ठाकुर, सचिव बृजभूषण वर्मा, सह सचिव अंकुश विश्वकर्मा, भोला तिवारी, राजाराम चंद्रवंशी, सुरेंद्र गुप्ता, अखिलेश देवांगन, दुर्गेश ठाकुर, कमलेश ठाकुर समेत अनेक कार्यकर्ताओं ने सामूहिक पूजन, सत्संग एवं प्रसाद वितरण में सहभागिता निभाई।

संगोष्ठी में हुआ विचार-विमर्श:

इस अवसर पर आयोजित संगोष्ठी में वक्ताओं ने धर्मसम्राट  करपात्री जी महाराज के जीवनवृत्त पर प्रकाश डालते हुए बताया कि वे शांकर परंपरा के दण्डी स्वामी थे, जिनका जीवन सनातन धर्म के संरक्षण, प्रचार-प्रसार एवं पुनर्जागरण के लिए समर्पित रहा। उन्हें “अभिनव शंकर” और “धर्मसम्राट” की उपाधियों से सम्मानित किया गया था।

उन्होंने न केवल स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया, बल्कि गौवध प्रतिबंध आंदोलन जैसे राष्ट्र-धर्म हित के आंदोलनों में भी अग्रणी भूमिका निभाई। 7 नवंबर 1966 को दिल्ली में आयोजित विराट प्रदर्शन में 10 लाख गौभक्तों की अगुवाई कर उन्होंने सरकार को चुनौती दी और स्वयं जेल गए।

वैदिक मनीषा के संरक्षक:

स्वामी जी ने “मार्क्सवाद और रामराज्य”, “रामायण मीमांसा”, “विचार पीयूष” जैसे महत्त्वपूर्ण ग्रंथों की रचना कर वैदिक वांग्मय की गौरवशाली परंपरा को आधुनिक संदर्भ में पुनः स्थापित किया। उनका शासन दृष्टिकोण धर्मनिष्ठ, शोषणविहीन और सर्वहितकारी “रामराज्य” की संकल्पना पर आधारित था।

आदित्यवाहिनी के द्वारा आयोजित यह आयोजन केवल एक जयंती समारोह नहीं, अपितु एक वैचारिक पुनर्जागरण का प्रयास था।  स्वामी करपात्री जी महाराज का जीवन सनातन धर्म के अनुकरणीय आदर्शों का प्रतीक है। उनकी स्मृति को नमन करते हुए उपस्थित जनों ने उनके विचारों को जन-जन तक पहुंचाने का संकल्प लिया।

 


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