दिल्ली छात्राओं और काम के दौरान महिलाओं की छुट्टी की बात सोशल मीडिया पर लेकर तमाम दूसरे मंचों पर बहस हो रही है। इस बारे में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका भी दायर की गई थी, हालांकि शुक्रवार को देश की ऊपरी अदालत ने इस पर विचार करने से इनकार कर दिया। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि वह सरकार के दायरे में नीतिगत दायरे में आता है, ऐसे में निर्णय लेने के लिए संबंधित मंत्रालय में रिप्रेजेंटेशन फाइल की जा सकती है।
याचिका में की गई थी ये अपील
सर्वोच्च न्यायालय में दायर इस याचिका में सभी राज्यों को यह अनुरोध करने का निर्देश दिया गया था कि वे माहवारी दर्द से पीड़ित छात्राओं और नौकरीपेशा महिलाओं को उन दिनों छुट्टी के प्रावधान वाले नियम बनाएं। इस पर शीर्ष न्यायालय ने कहा कि यह परिवार सरकार की नीतिगत परिधि में आता है। चीफ जस्टिस डी. वाई। चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि निर्णय लेने के लिए केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को एक अभ्यावेदन यानी प्रतिनिधि भेजा जा सकता है।
दिल्ली के शख्स ने याचिका दायर की थी
रिपोर्ट्स के मुताबिक, दिल्ली के रहने वाले शैलेंद्र मणि त्रिपाठी द्वारा सर्वोच्च न्यायालय दायर याचिका में अल्पसंख्यक लाभ अधिनियम, 1961 की धारा 14 की संगति के लिए केंद्र और सभी राज्यों को निर्देश देने का अनुरोध किया गया था। इस अधिनियम की धारा 14 पर्यवेक्षकों की नियुक्ति से संबंधित है और इसमें कहा गया है कि उपयुक्त सरकार ऐसे अधिकारियों की नियुक्ति कर सकती है। याचिका में यह भी कहा गया है कि क्षेत्राधिकार की स्थानीय सीमाओं को परिभाषित किया जा सकता है जिसके अंतर्गत वे इस कानून के तहत अपने कार्यों के रूप में कार्य करेंगे।