अपने शुरुआती दिनों में बिनय तमांग जीजेएम में बिमल गुरंग के करीबी विश्वासपात्र थे। बाद में तमांग कांग्रेस कांग्रेस में शामिल हुए। वहीं गुरंग का कभी-कभी एकछत्र राज था। वर्तमान में पहाड़ी राजनीति में विवरण दिए गए हैं।
दिसंबर की कडकड़ाती ठंड में पहाड़ की राजनीतिक थोड़ी गर्म नजर आ रही है। 27 दिसंबर को एक ही मंच पर बिमल गुरुंग, बिनय तमांग और अजय एडवर्ड्स आए। जिसे देखकर पूरे प्रदेश में सवाल उठता है कि असली पहाड़ी राजनीति में क्या कोई नया नंबर बनने वाला है? गोरखामुक्ति मोर्चा सुप्रीमो बिमल और रोज़ी-रोटी का काम 27 दिसंबर को हमरो पार्टी के अध्यक्ष अजय एडवर्ड्स के पहाड़ी इलाकों में ‘लोकतंत्र बचाओ’ आंदोलन में शामिल हुए। मंच पर पहुंचने के बाद तीनों ने एक साथ दावा किया कि पहाड़ में लोकतंत्र है। अजय ने दार्जिलिंग के कैपिटल हॉल में ‘गोरखा स्वाभिमान स्लैश’ मंच की स्थापना करके इसे बिमल और विनय के साथ साझा किया। आंदोलन है, जनता के लिए हस्ताक्षर जा रहे हैं।
अपने शुरुआती दिनों में बिनय तमांग जीजेएम में बिमल गुरंग के करीबी विश्वासपात्र थे। बाद में तमांग कांग्रेस कांग्रेस में शामिल हुए। वहीं गुरंग का कभी-कभी एकछत्र राज था। वर्तमान में पहाड़ी राजनीति में विवरण दिए गए हैं। दूसरी ओर अजय एडवर्डस और उनकी हमरो पार्टी इस साल फरवरी में हुए चुनावों में दार्जिलिंग म्युनिसिपल पर कब्जा कर सभी को चौंका दिया है। अजय यह साबित करने के लिए बेताब हैं कि भारतीय गोरखा प्रजातांत्रिक मोर्चा अविश्वास प्रस्ताव से पहले बिमल और विनय को बुलाकर निगम नगर निगम में दा बोर्ड पर कब्जा करने की कोशिश कर रहा है। उन्होंने दावा किया, “पहाड़ों में अब कोई अनुशासन नहीं है। हमारी आंखों के सामने लोकतंत्र की हत्या कर दी गई है। पैसे का लालच देने वाले सदस्यों की खरीद-फरोख्त की जा रही है। इस राजनीति के खिलाफ हम सब एक हैं। इसलिए ही नहीं, बल्कि भविष्य में हम सब मिलकर अलग-अलग राज्यों के लिए आंदोलन की रूपरेखा तैयार करेंगे। अजय ने धमकी भी दी। उन्होंने साफ तौर पर कहा, ‘अगर धारा 144 लागू भी हो जाती है, तो भी हमारा काम आंदोलन जारी है और जारी होगा।’ अगर किसी बीच-बचाव करने आया तो मुझे गिरफ्तार करना पड़ेगा।
हालांकि भारतीय गोरखा प्रजातांत्रिक मोर्चा नया बोर्ड बनाने की तैयारी कर चुका है। पार्टी प्रवक्ता केशवराज पोखरियाल ने दावा किया, ”वे हर बात से सहमत हैं। ये सब अपने स्वार्थ के लिए गलत आंदोलन हैं। इसलिए ही नहीं, बल्कि काम को अस्त-व्यस्त करने की कोशिश की जा रही है। हमारे देश में नेता दल बरकरार हैं। मुझे इसमें कुछ गलत नहीं दिखता। और पूरी पहाड़ी उनके आंदोलन को महत्व नहीं दे रही है।
बता दें कि दार्जिलिंग में TIMC कभी भी बहुत ज्यादा ताकतवर नहीं हो रही है। बंगाल की सियासत खबरों से पता चलता है कि जुलाई से लेकर जुलाई तक पहले टीएमसी हिल्स क्षेत्र में मजबूती नहीं थी, ममता बनर्जी ने दो बार दार्जिलिंग क्षेत्र का दौरा किया। ममता ने दार्जिलिंग में परफॉर्मेंस और स्पॉटिंग की भी बात की थी। यहां आकर ममता ने मोमोज भी बनाए थे।