
सौरभ संतोष नामदेव | स्पेशल इन्वेस्टीगेटिव रिपोर्ट | यूनाइटेड न्यूज़ ऑफ एशिया
छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश की सरहद पर बसा मलाजखंड — जो भारत की सबसे पुरानी खुली तांबे की खदानों में से एक है — बाहर से शांत दिखता है, लेकिन अंदर एक ऐसा कुचक्र पल रहा है, जो ईमान को निगल रहा है।
यह कहानी है PSU के उस डूबते जहाज की, जिसके पतवार बने बैठे हैं तीन स्थायी कर्मचारी। ये तीनों मलाजखंड की खदान में वर्षों से कार्यरत हैं — और आज खदान के ट्रकों से लेकर कांटों तक, मजदूरों से लेकर ठेके तक, हर चीज़ इन्हीं की मर्ज़ी से चलती है।
इनके आदेश के बिना न तो कोई नौकरी लगती है, न ही कोई ट्रक निकलता है।
इनका नाम, यहाँ आदर्श की तरह लिया जाता है… और विश्वास? वो बस एक धंधा बन चुका है।
84 सपने… और एक धोखा
पिछले कुछ दिनों पहले 84 युवाओं को ठेकेदारी के नाम पर फर्जी आश्वासन दिए गए।
लाखों में रकम ली गई… काम के बदले नौकरी का झूठा वादा मिला।
कहने को भर्ती की प्रक्रिया निजी थी…
लेकिन उसका पूरा खेल इन तीनों के इशारों पर खेला गया।
लड़का… जो सपने नहीं, सिस्टम बदलने आया था
एक मामूली सा लड़का — जिसने ठेकेदार बनने का सपना देखा,
बड़े लोगों की बात मानी… रुपए दिए… और फिर 84 में से 1 हो गया।
जब नौकरी नहीं लगी… तब विरोध की आवाज़ उठी…
और वही तीन “साहेब” अब उस पर ही ठीकरा फोड़ते दिखे।
“उसने ही पैसे खाए!”
“उसने ही लोगों को गुमराह किया!”
लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती…
लड़का टूटा नहीं, चुप नहीं बैठा।
उसने दस्तावेज़ निकाले, नामों की लिस्ट सामने रखी…
और हर नाम के आगे लिखा — “इतना पैसा लिया गया था… इतने के बदले झूठा वादा मिला था…”
कहावत है – “गुरु गुड़ थे, लेकिन चेला शक्कर निकला।”
अब न अदालत में केस है, न CBI के छापे… लेकिन एक भूचाल आ चुका है जिसका नाम है यूनाइटेड न्यूज़ ऑफ़ एशिया…
डार्क सीक्रेट्स ऑफ़ मलाजखंड में बड़ा खुलासा जल्द ..
कलकत्ता से आयी टीम ने क्या किया ?
क्या जिम्मेदारों पर होगी कार्यवाही या हो चूका गरीबों के पैसे से सेटलमेंट ?
पढ़ने के लिए बने रहिये …
जाते जाते आखिर में….
“मार तो खा ली… लेकिन पैसे मिल गए…”
“घर की बीवी को भी पता चल गया… अब डर नहीं लगता।”