छत्तीसगढ़सुकमा

कृषि चौपाल के आठवें एपिसोड में समेकित नाशीजीव प्रबंधन पर विशेषज्ञों ने दी किसानों को वैज्ञानिक सलाह

UNITED NEWS OF ASIA. कृष्णा नायक, सुकमा | कृषि विज्ञान केंद्र, सुकमा में शनिवार को आयोजित “कृषि चौपाल” के आठवें एपिसोड में किसानों को समेकित नाशीजीव प्रबंधन (Integrated Pest Management – IPM) की वैज्ञानिक विधियों की जानकारी दी गई। यह आयोजन भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) एवं कृषि मंत्रालय, भारत सरकार के सहयोग से किया गया, जिसका सीधा प्रसारण डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर किया गया, जिससे हजारों किसान लाभान्वित हुए।

 IPM: रसायनों की निर्भरता कम, पर्यावरण संरक्षण अधिक

वरिष्ठ वैज्ञानिकों ने IPM की अवधारणा को सरल शब्दों में समझाते हुए कहा कि—

“IPM एक बहुस्तरीय फसल सुरक्षा तकनीक है, जिसमें यांत्रिक, सांस्कृतिक, जैविक और रासायनिक नियंत्रण के उपायों को एकीकृत रूप से अपनाया जाता है। इससे न केवल कीट नियंत्रण अधिक प्रभावी होता है, बल्कि मिट्टी, जल और पर्यावरण पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।”

रासायनिक कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग से होने वाले दुष्प्रभावों को कम करने के लिए फेरोमोन ट्रैप, पीले चिपचिपे कार्ड, लाइट ट्रैप, नीम आधारित कीटनाशी, ट्राइकोगामा परजीवी, और फसल चक्र जैसे उपायों को अपनाने पर जोर दिया गया।

“राष्ट्रीय कीट निगरानी प्रणाली (NPSS) ऐप” की जानकारी भी साझा की गई

कार्यक्रम के दौरान किसानों को भारत सरकार द्वारा विकसित “NPSS ऐप” के उपयोग की जानकारी दी गई। विशेषज्ञों ने बताया कि यह ऐप किसानों को फसल कीटों की पहचान, रोग प्रसार की निगरानी, फसल क्षति की रोकथाम और समय पर उपचार के लिए मदद करता है।

 प्रमुख फसलों पर कीट नियंत्रण उपाय

इस एपिसोड में धान, मक्का, अरहर, कपास, गन्ना और सब्जियों में पाए जाने वाले प्रमुख कीटों जैसे सफेद मक्खी, तना छेदक, पत्तियाँ मोड़क, थ्रिप्स, माहू, मिली बग आदि पर विस्तृत चर्चा की गई और उनका समेकित जैविक प्रबंधन बताया गया।

 सहभागिता और मार्गदर्शन

कार्यक्रम में कृषि विज्ञान केंद्र सुकमा के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख  एच.एस. तोमर, पौध रोग विशेषज्ञ श्री राजेन्द्र प्रसाद कश्यप, कीट वैज्ञानिक डॉ. योगेश कुमार सिदार, मत्स्य वैज्ञानिक डॉ. संजय सिंह राठौर, गुलशन टेक्निकल असिस्टेंट सहित 22 चयनित किसान उपस्थित रहे।

यह एपिसोड वैज्ञानिक खेती को बढ़ावा देने और रासायनिक खेती से पर्यावरण-संवेदनशील खेती की ओर बढ़ने का संदेश लेकर आया। IPM तकनीक से जुड़े यह प्रयास न केवल किसानों की लागत को कम करेंगे, बल्कि फसल की गुणवत्ता और उत्पादन में वृद्धि कर आय बढ़ाने में भी सहायक होंगे

 


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