
UNITED NEWS OF ASIA. अमृतेश्वर सिंह, रायपुर | प्रदेश कांग्रेस संचार प्रमुख श्री सुशील आनंद शुक्ला ने राज्य सरकार पर शिक्षकों के साथ छल, दबाव और भय का माहौल रचने का आरोप लगाते हुए कहा कि –
“एक तरफ वेतन रोकने और कार्रवाई की धमकी, दूसरी तरफ दिखावे की समिति – यह सब एक सुनियोजित छल है। पूरी युक्तियुक्तकरण प्रक्रिया ही अव्यवहारिक, त्रुटिपूर्ण और अन्यायपूर्ण है।”
प्रमुख आरोप इस प्रकार हैं:
बिना पूर्व सूचना के काउंसलिंग
▪️ शिक्षकों की अतिशेष सूची व रिक्त पदों का पूर्व प्रकाशन नहीं किया गया।
▪️ न दावा-आपत्ति का मौका, न ही मौके पर आपत्ति सुनने के लिए कोई अधिकारी मौजूद।
वरिष्ठता का निर्धारण गड़बड़
▪️ छत्तीसगढ़ सिविल सेवा अधिनियम 1961 के प्रावधानों का उल्लंघन कर वरिष्ठता गलत ढंग से तय की गई।
▪️ विषयगत आवश्यकता की अनदेखी।
जानबूझकर रिक्तियाँ छिपाई गईं
▪️ कई जिलों में पास के स्कूलों में खाली पद छुपाए गए।
▪️ शिक्षकों को दूरदराज के स्कूलों में जबरन भेजा गया, जबकि आसपास विकल्प मौजूद थे।
भ्रष्टाचार के आरोप
▪️ “चहेतों को उपकृत किया गया, पहुँच और लेन-देन से तय हुई पोस्टिंग।”
▪️ कुछ नामों को पहले अतिशेष बताया गया, फिर बिना कारण प्रक्रिया से हटा दिया गया।
“सुनवाई नहीं, दिखावा है समिति” – शुक्ला
“जिस तरह पहले अभ्यावेदनों पर खानापूर्ति की गई थी, वैसी ही स्थिति अब फिर से है। शिक्षकों से कोरे कागज़ पर हस्ताक्षर करवा कर दिखावे की कार्रवाई की जाती है।”
🔹 “यदि जिले के अंदर ही समायोजन संभव है तो संभाग स्तर पर शिक्षकों को क्यों भेजा गया?”
🔹 “नगर निगम और आत्मानंद स्कूल युक्तियुक्तकरण से बाहर क्यों?”
🔹 “प्रमोशन प्रक्रिया के बाद जो पद खाली होंगे, वे किसके लिए हैं?”
“भ्रष्ट अधिकारियों पर कार्रवाई करे सरकार”
🔸 “रिक्त पद छुपाने, वरिष्ठता में हेरफेर और शिक्षकों को प्रताड़ित करने वाले अधिकारियों पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है।”
🔸 “एकतरफा आदेशों को तुरंत रद्द किया जाए और पारदर्शी प्रक्रिया लागू हो।”
कांग्रेस की माँगें:
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युक्तियुक्तकरण पर तत्काल रोक लगाई जाए।
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पीड़ित शिक्षकों को समुचित राहत और पुनर्विचार प्रक्रिया दी जाए।
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भ्रष्टाचार और मनमानी करने वाले अधिकारियों पर सख्त कार्रवाई हो।
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प्रमोशन के बाद खाली होने वाले पदों पर निष्पक्ष प्रक्रिया से नियुक्ति हो।
कांग्रेस ने युक्तियुक्तकरण को सत्ता-प्रेरित भ्रष्टाचार और शिक्षकों के भविष्य से खिलवाड़ बताया है।
शिक्षकों के प्रति सरकार की यह नीति, कांग्रेस के अनुसार, मनमानी, असंवेदनशीलता और शिक्षा व्यवस्था को कमजोर करने वाला कदम है।