छत्तीसगढ़रायपुर

छत्तीसगढ़ के स्वाभिमान थे पं. स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी शकुंतला तरार की हल्बी गीत संग्रह ‘शकुंतला चो लेजा गीद’ की संगोष्ठी में समीक्षा

UNITED NEWS OF ASIA, अमृतेश्वर सिंह, रायपुर । छत्तीसगढ़ साहित्य एवं संस्कृति संस्थान, रायपुर प्रेस क्लब और ‘नारी का संबल’ पत्रिका के संयुक्त तत्वावधान में रविवार को प्रेस क्लब भवन में छत्तीसगढ़ की पत्रकारिता और साहित्य जगत के पुरोधा पं. स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस अवसर पर शकुंतला तरार की हल्बी गीत संग्रह ‘शकुंतला चो लेजा गीद’ की समीक्षा भी की गई।

त्रिवेदी जी: साहित्य और पत्रकारिता के सेतु
कार्यक्रम के प्रारंभ में संयोजक डॉ. सुधीर शर्मा ने कहा कि पं. त्रिवेदी साहित्य और पत्रकारिता के बीच सेतु का कार्य करते थे। वे न केवल कलम के धनी थे, बल्कि समाज को दिशा देने वाले लोकजागरण पत्रकार भी थे। पं. त्रिवेदी की परपोती नित्या त्रिवेदी ने उनके जीवन परिचय और साहित्यिक योगदान को उपस्थित श्रोताओं के समक्ष रखा।

बस्तर की भाषा को मिला नया मंच
लेखिका शकुंतला तरार ने अपनी कृति के बारे में विचार व्यक्त करते हुए कहा कि यह संग्रह हल्बी भाषा और बस्तर की सांस्कृतिक विरासत को प्रस्तुत करने का एक विनम्र प्रयास है। मुख्य अतिथि लोकेश कावड़िया (राज्य निशक्तजन वित्त आयोग के अध्यक्ष) ने कहा कि –

“शकुंतला तरार की कविताएं बस्तर को जानने-समझने का माध्यम बन सकती हैं। हल्बी की समृद्धि इस संग्रह से बढ़ेगी।”

त्रिवेदी जी की लेखनी: छत्तीसगढ़ की आत्मा
वरिष्ठ पत्रकार गिरीश पंकज ने कहा कि त्रिवेदी जी ने आजादी से पहले, बाद और राज्य निर्माण के दौर में छत्तीसगढ़ की पहचान गढ़ी। वे जनता के साहित्यकार और निर्भीक पत्रकार थे। विशिष्ट अतिथि डॉ. माणिक विश्वकर्मा ने कहा कि उन्होंने बीज से वटवृक्ष तक की यात्रा तय की और रचनात्मक पत्रकारिता की मिसाल कायम की।

राजनीतिक और सांस्कृतिक सरोकार
पूर्व मंत्री सत्यनारायण शर्मा ने कहा कि पं. त्रिवेदी अपने समय के राजनीतिक नेताओं को सदैव आचरण पर टिके रहने की सलाह देते थे। उन्होंने कहा कि –

“त्रिवेदी जी का कार्य आगे बढ़ाना हम सबकी जिम्मेदारी है।”

हल्बी साहित्य की समृद्ध परंपरा
संस्कृति विशेषज्ञ अशोक तिवारी ने कहा कि हल्बी बस्तर की संपर्क भाषा है और उसमें रचित गीत बस्तर की आत्मा को दर्शाते हैंपुरातत्ववेत्ता जी. एल. रायकवार ने कहा कि ‘लेजा गीत’ युवाओं के संवाद का जीवंत उदाहरण हैं, जिनमें हास्य, इतिहास और संस्कृति का सम्मिलन मिलता है।

प्रेस क्लब अध्यक्ष और भाषाविदों की बातें
प्रेस क्लब अध्यक्ष प्रफुल्ल ठाकुर ने कहा कि त्रिवेदी जी की लेखनी ने पीढ़ियों को दिशा दी और वे आज भी छत्तीसगढ़ के स्वाभिमान हैं। समारोह अध्यक्ष डॉ. चित्तरंजन कर ने कहा कि पत्रकार और साहित्यकार एक-दूसरे के पूरक होते हैं। “त्रिवेदी जी जैसे पुरोधाओं के विचारों से ही हम साहित्य और पत्रकारिता के नए विमर्श तक पहुँच सकते हैं।”

उल्लेखनीय उपस्थिति
इस अवसर पर डॉ. स्नेहलता पाठक, डॉ. सीमा निगम, मीर अली मीर, डॉ. सुशील त्रिवेदी, सुरेन्द्र रावल, जसवंत क्लाउडियस, राजेश जैन, वीरेंद्र पांडे, शिरीष त्रिवेदी, संदीप तरार, उर्मिला उर्मि सहित अनेक साहित्यप्रेमी, पत्रकार और सांस्कृतिक कर्मी उपस्थित रहे।

 


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