
UNITED NEWS OF ASIA. ओडिशा। ओडिशा हर वर्ष आषाढ़ शुक्ल एकादशी को पुरी धाम में आयोजित होने वाला ‘सुना बेशा’ अनुष्ठान न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि भक्तों के लिए एक अद्भुत आध्यात्मिक अनुभव भी होता है। इस वर्ष, 7 जुलाई 2025 को भगवान जगन्नाथ, उनके भ्राता बलभद्र और बहन सुभद्रा ने अपने रथों पर विराजमान होकर स्वर्ण आभूषणों से सजे दिव्य स्वरूप में भक्तों को दर्शन दिए। इस दृश्य के लिए देशभर से लाखों श्रद्धालु पुरी पहुंचे।
क्या है ‘सुना बेशा’?
‘सुना बेशा’ का अर्थ होता है ‘सोने का वेश’। यह वह दिन होता है जब भगवान जगन्नाथ और उनके भाई-बहन को भारी मात्रा में स्वर्ण आभूषणों से सजाया जाता है। यह श्रृंगार श्रीमंदिर के सिंहद्वार के सामने रथों पर ही किया जाता है। परंपरा के अनुसार, इन आभूषणों को मंदिर के ‘रत्न भंडार’ से विशेष पूजा और सुरक्षा व्यवस्था के बीच बाहर लाया जाता है।
कौन करते हैं श्रृंगार?
सुना बेशा के दिन श्रृंगार की जिम्मेदारी भंडारा मेकअप सेवकों, पुष्पलकों और दैतापति पुजारियों की होती है। ये सभी सेवक पारंपरिक विधियों के अनुसार देवताओं को सजाते हैं।
Suna Besha 2025 में उपयोग किए गए प्रमुख आभूषण
सुना हस्त – भगवान के हाथों को ढकने वाले स्वर्ण कवर
सुना पयार – चरणों के लिए स्वर्ण कवर
सुना मुकुट – भगवान के शीश पर सुशोभित विशाल स्वर्ण मुकुट
सुना मयूर चंद्रिका – भगवान जगन्नाथ द्वारा धारण किया गया मोर पंख के आकार का स्वर्णाभूषण
सुना चूलपति – माथे पर चमकने वाला पारंपरिक स्वर्ण आभूषण
सुना कुंडल – गोलाकार लटकती हुई स्वर्ण बालियाँ
सुना राहुरेखा – देवताओं के चारों ओर अर्ध-चौकोर आकार की स्वर्ण आभा
सुना माला – विभिन्न प्रकार की मालाएँ जो विशेष फूलों की आकृति में बनाई जाती हैं:
पद्म माला – कमल की आकृति
सेवती माला – गुलदाउदी के फूल की आकृति
अगस्त्य माला – अर्धचंद्राकार फूल की आकृति
कदंब माला – कदंब के फूल के रूप में
काँटे माला – बड़े सोने के गोल मोतियों से बनी
मयूर माला – मोर पंख जैसी
चंपा माला – चंपा फूल की आकृति में
सुना चक्र – भगवान विष्णु के धर्म चक्र का स्वर्ण प्रतिरूप
सुना गदा – बल का प्रतीक स्वर्ण गदा
सुना पद्म – सोने से निर्मित कमल का प्रतीक
रूपा शंख – चांदी से बना पवित्र शंख
भक्तों के लिए दुर्लभ अवसर
‘सुना बेशा’ केवल एक धार्मिक कार्यक्रम नहीं, बल्कि संस्कृति, परंपरा और भक्ति का जीवंत चित्रण है। आमतौर पर भगवान जगन्नाथ के ये दर्शन वर्ष में केवल एक बार ही होते हैं, जिससे यह अवसर और भी विशेष हो जाता है। श्रद्धालु इस दिन को सौभाग्य और पुण्य का प्रतीक मानते हैं।
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