
UNITED NEWS OF ASIA. अमृतेश्वर सिंह, रायपुर | देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा जानवरों को “जीवधन” कहे जाने और ‘पशु’ जैसे शब्दों की जगह अधिक संवेदनशील, करुणामयी और मानवीय भाषा के उपयोग की अपील को लेकर उत्तर विधायक श्री पुरंदर मिश्रा ने गहरी सहमति जताते हुए इसे भारतीय संस्कृति की आत्मा को स्पर्श करने वाली पहल बताया।
विधायक मिश्रा ने कहा,
“हमारे पूर्वजों ने पेड़ों, नदियों, पर्वतों और जीवों को केवल संसाधन नहीं, बल्कि श्रद्धा और आस्था का सजीव रूप माना। यही सनातन संस्कृति की आत्मा है — करुणा, सम्भाव और सह-अस्तित्व का गीत।”
‘गौमाता’ को बताया सांस्कृतिक करुणा की देवी
विधायक मिश्रा ने गौमाता के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि गाय हमारे देश की आध्यात्मिक चेतना, मातृत्व भाव और सांस्कृतिक करुणा की प्रतीक हैं।
“गाय का दूध केवल आहार नहीं, आशीर्वाद है। गोबर और गौमूत्र सिर्फ जैविक संसाधन नहीं, बल्कि धरती की उर्वरता और स्वास्थ्य का आधार हैं। गाँव की सुबह उनकी रंभाहट से सजती है, खेतों की हरियाली उनकी उपस्थिति से मुस्कराती है।”
उन्होंने गौ-संरक्षण को केवल धार्मिक कर्तव्य नहीं, बल्कि ग्रामीण आत्मनिर्भरता, कृषि परंपरा और सांस्कृतिक अस्मिता की रक्षा का आधार बताया।
हर जीव में देवत्व का दर्शन – भारत की पहचान
मिश्रा जी ने कहा कि भारत वह देश है जहाँ हाथी को गणेश, नाग को देवता और गाय को माता माना जाता है। यह केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि संवेदना और समर्पण की पराकाष्ठा है।
“यह विचारधारा केवल भाषण नहीं, बल्कि मनुष्य और प्रकृति के बीच आत्मीय संवाद की पुकार है।”
उन्होंने यह भी कहा कि यदि हम जीवों से प्रेम करें, प्रकृति से संवाद करें और संस्कृति से सरोकार रखें, तो न केवल पशुधन का संरक्षण, बल्कि कृषकों को संबल, गाँवों को संजीवनी और धरती को हरियाली का वरदान मिल सकता है।
“यही भारत है, यही छत्तीसगढ़ की आत्मा” – मिश्रा
विधायक ने कहा कि राष्ट्रपति मुर्मू जी की भावनाएं केवल संवैधानिक प्रमुख की नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक चेतना की मुखर अभिव्यक्ति हैं, जिन्हें हर नागरिक को आत्मसात करना चाहिए।
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