
UNITED NEWS OF ASIA. अमृतेश्वर सिंह, रायपुर | राजधानी रायपुर के नवीन विश्राम गृह, सिविल लाइंस में देवर्षि नारद जयंती के अवसर पर “राष्ट्रीय सुरक्षा में पत्रकारिता की भूमिका” विषय पर एक विशेष संगोष्ठी का आयोजन किया गया। आयोजन का नेतृत्व देवर्षि नारद जयंती आयोजन समिति, छत्तीसगढ़ प्रांत द्वारा किया गया, जिसमें मीडिया क्षेत्र की प्रमुख हस्तियों ने सहभागिता की।
इस अवसर पर मुख्य वक्ता के रूप में पाञ्चजन्य के संपादक हितेश शंकर (नई दिल्ली) उपस्थित रहे, जबकि दूरदर्शन के कार्यक्रम प्रमुख प्रदीप कुमार श्रीवास्तव ने बतौर मुख्य अतिथि कार्यक्रम को संबोधित किया।
“देवर्षि नारद संवाद और विश्वसनीयता के प्रतीक थे” – हितेश शंकर
शंकर ने कहा कि
“देवर्षि नारद केवल पौराणिक चरित्र नहीं, बल्कि संवाद और सूचना के आदर्श पुरुष हैं। वे देवताओं और असुरों दोनों से संवाद करते थे और सबके बीच में संतुलन बनाकर चलते थे।”
उन्होंने वर्तमान पत्रकारिता पर कटाक्ष करते हुए कहा कि आज संवाद का संतुलन, विश्वसनीयता और वैचारिक ईमानदारी जैसे मूल तत्व लुप्त हो रहे हैं। स्पर्धा, टीआरपी और ‘कुछ भी दिखाने’ की मानसिकता ने पत्रकारिता की गंभीरता को हानि पहुंचाई है।
शंकर ने यह भी कहा कि
“आज पत्रकारिता बाज़ार और राजनीतिक दबावों के बीच अपनी दिशा खो रही है। स्वतंत्रता संग्राम की ताकत रही पत्रकारिता आज ऐसे बयानों का समर्थन करती दिखती है जो राष्ट्र की आत्मा के खिलाफ हैं।”
छत्तीसगढ़ में राष्ट्रवादी पत्रकारिता की आवश्यकता
शंकर ने छत्तीसगढ़ की विशेष चर्चा करते हुए कहा कि
“लंबे समय तक नक्सल हिंसा को मानवाधिकार आंदोलन की आड़ में दिखाया गया, और धर्मांतरण जैसे गंभीर विषयों पर चुप्पी रही। अब समय है जब मीडिया को राष्ट्रहित की दृष्टि से काम करने की आवश्यकता है।”
जमीनी पत्रकारों का सम्मान
कार्यक्रम के दौरान पत्रकारिता में उत्कृष्ट कार्य करने वाले पत्रकारों को विशेष सम्मान से नवाजा गया:
देवर्षि नारद पत्रकार सम्मान: सतीश सिंह ठाकुर (वरिष्ठ पत्रकार, IBC)
बबनप्रसाद मिश्र स्मृति सम्मान: मधुमिता पाल (एंकर, INH)
रमेश नैयर स्मृति सम्मान: दीपक पांडेय (फोटो जर्नलिस्ट, दैनिक नवभारत)
कार्यक्रम संचालन एवं समापन
स्वागत एवं विषय प्रवेश: वरिष्ठ पत्रकार आर. कृष्णा दास
मंच संचालन: प्रियंका कौशल (वरिष्ठ पत्रकार)
सम्मानितों का परिचय: अटल मुरारी
आभार प्रदर्शन: प्रफुल्ल पारे
संगोष्ठी में उपस्थित पत्रकारों, मीडिया कर्मियों और बुद्धिजीवियों ने इस विमर्श को अत्यंत समसामयिक और राष्ट्रहित में आवश्यक बताया। विचारों के इस आदान-प्रदान ने यह स्पष्ट किया कि राष्ट्र निर्माण में पत्रकारिता की भूमिका मात्र सूचनाओं के आदान-प्रदान तक सीमित नहीं, बल्कि यह नैतिक मार्गदर्शक की भूमिका भी निभा सकती है।
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