
UNITED NEWS OF ASIA.लखनऊ/गोरखपुर | 21 जून को मनाए जाने वाले अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की तैयारियाँ पूरे देश और दुनिया में ज़ोरों पर हैं। इस अवसर पर भारत एक बार फिर उस सांस्कृतिक धरोहर को वैश्विक मंच पर गर्व से प्रस्तुत करेगा, जिसकी जड़ें वेदों से होती हुईं आज वैश्विक कल्याण की छाया बन चुकी हैं। भारत में योग न केवल साधना का विषय रहा है, बल्कि गुरु गोरखनाथ जैसे महायोगियों ने इसे लोककल्याण से जोड़कर जनसामान्य के लिए भी सुलभ बनाया।
गुफाओं से गांव तक पहुँचा योग का सफर
प्राचीन काल में योग की अवधारणा आम जनजीवन से दूर, गुफाओं और अरण्यों में तपस्या तक सीमित थी। लेकिन जब महर्षि पतंजलि ने योग को व्यवस्थित रूप दिया और फिर गुरु गोरखनाथ ने इसे जनमानस के बीच व्यवहारिक रूप में प्रस्तुत किया, तब जाकर योग लोकजीवन में उतर सका।
गोरखनाथ जी का मानना था कि योग केवल मोक्ष की साधना नहीं, बल्कि तन-मन-आत्मा के संतुलन से मानवता की सेवा का मार्ग भी है। उन्होंने योग को एक सात्विक, सदाचारी और सर्वजनीन प्रक्रिया के रूप में स्थापित किया।
नाथपंथ से वैश्विक पहचान तक
नाथ संप्रदाय की उत्पत्ति आदि योगी भगवान शिव से मानी जाती है, और गुरु गोरखनाथ इस परंपरा के अग्रणी स्तंभ हैं। उनका प्रभाव सिर्फ भारत तक सीमित नहीं था, बल्कि तिब्बत, मंगोलिया, श्रीलंका, अफगानिस्तान तक फैला था। उनकी शिक्षाओं में संपूर्ण मानवता के लिए कल्याण का संदेश था।
जॉर्ज गियर्सन लिखते हैं कि गुरु गोरखनाथ ने योग को निष्पक्ष, आध्यात्मिक क्रांति के बीज के रूप में स्थापित किया और त्रयताप (शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक पीड़ा) से मुक्ति का मार्ग दिखाया।
‘योग सबके लिए है’ – गुरु गोरखनाथ की विचारधारा
गोरखनाथ जी की विशेषता थी कि उन्होंने योग को किसी जाति, लिंग, वर्ग या मत से नहीं जोड़ा। एलपी टेशीटरी जैसे विद्वानों के अनुसार, गुरु गोरखनाथ के योग के द्वार हर मानव के लिए खुले हैं। उन्होंने योग को वामाचार की सीमा से निकालकर सात्विक जीवनचर्या का अभिन्न हिस्सा बनाया।
महंत अवेद्यनाथ कहते थे कि योग कोई धर्म नहीं, बल्कि मानवता के लिए वह दिव्य औषधि है, जो प्रत्येक काल व परिस्थिति में उपयोगी है।
योग साहित्य में अमूल्य योगदान
गुरु गोरखनाथ ने न केवल योग को व्यावहारिक बनाया, बल्कि इसे शास्त्रीय और लोक भाषा दोनों में सहेजा। उनकी रचनाएँ जैसे गोरख संहिता, गोरक्ष शतक, योग मार्तंड, हठ योग संहिता आज भी योग साधकों के लिए अमूल्य निधि हैं।
निष्कर्ष: योग भारत की नहीं, पूरी मानवता की थाती है
आज जब संयुक्त राष्ट्र समेत दुनिया के 175 से अधिक देश योग दिवस मना रहे हैं, तब यह स्पष्ट हो गया है कि गुरु गोरखनाथ की लोकमंगलवादी योग दृष्टि ही वह सेतु है, जो योग को भौगोलिक, धार्मिक और भाषाई सीमाओं से परे ले गया।
21 जून को जब एक साथ लाखों लोग योग करेंगे, तो उसमें भारत की योग परंपरा, गुरु गोरखनाथ का लोककल्याण भाव और विश्व मानवता की एकता की ऊर्जा स्पंदित होगी।
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