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छत्तीसगढ़ में प्रवेशोत्सव पर सियासी और ग्रामीण विरोध, स्कूलों में जड़े गए ताले

UNITED NEWS OF ASIA. रायपुर। जहां एक ओर छत्तीसगढ़ में सोमवार से नए शैक्षणिक सत्र की शुरुआत शाला प्रवेशोत्सव के साथ हो रही थी, वहीं दूसरी ओर राज्य के तीन जिलों में स्कूलों पर ताले जड़ दिए गए। यह विरोध प्रदर्शन अलग-अलग कारणों से हुआ, लेकिन एक बात साफ है कि शिक्षा व्यवस्था को लेकर असंतोष गहराता जा रहा है।

महासमुंद: ऐतिहासिक स्कूल के मर्जर के खिलाफ कांग्रेस का विरोध, स्कूल गेट पर लगाया ताला

महासमुंद के ग्राम खट्टी में स्थित 211 साल पुरानी प्राथमिक शाला को युक्तियुक्तकरण योजना के तहत 2005 में निर्मित दूसरे स्कूल में विलय करने के आदेश का कांग्रेस ने जोरदार विरोध किया।
पूर्व विधायक विनोद चंद्राकर के नेतृत्व में कार्यकर्ताओं ने बच्चों और शिक्षकों को स्कूल से बाहर निकालकर गेट पर ताला लगा दिया और “सीएम साय मुर्दाबाद” के नारे लगाए।

चंद्राकर ने कहा कि शासन के आदेशों के अनुसार—

  • जिस स्कूल में नामांकित बच्चों की संख्या अधिक हो, उसे मर्ज नहीं किया जाना चाहिए,

  • ऐतिहासिक स्कूलों को मर्ज से छूट है,

  • मर्जर से पहले शाला प्रबंधन समिति से बैठक और सहमति आवश्यक है।
    इनमें से एक भी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया।

बालोद: शिक्षक की कमी से नाराज़ ग्रामीणों ने किया बहिष्कार, स्कूल में जड़ा ताला

बालोद जिले के दारुटोला गांव में ग्रामीणों ने शिक्षक की कमी के चलते स्कूल के गेट पर ताला लगा दिया।
ग्रामीणों के अनुसार, 72 बच्चों के लिए सिर्फ 2 शिक्षक हैं, जो गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए अपर्याप्त है।

बार-बार शिकायतों और आवेदन के बाद भी कोई समाधान नहीं होने पर उन्होंने शाला प्रवेशोत्सव का बहिष्कार करते हुए ताला जड़ दिया।
DEO डी.के. कोसरे ने बताया कि अधिकारियों को मौके पर भेजा गया है और जल्द व्यवस्था दुरुस्त की जाएगी।

धमतरी: दोबारा पदस्थापित किए गए प्रधानपाठक के खिलाफ गुस्सा, बच्चों और पालकों ने किया धरना

धमतरी के नगरी क्षेत्र के ग्राम बोकराबेड़ा में ग्रामीणों ने पूर्व में शिकायतों के बाद हटाए गए प्रधानपाठक गिरीश जायसवाल की दोबारा तैनाती पर विरोध जताया।
पालकों और बच्चों ने स्कूल के बाहर एक घंटे तक धरना दिया और ताला जड़ दिया।

ग्रामीणों का आरोप है कि जायसवाल बच्चों के साथ अभद्र व्यवहार करता था, और वे दो साल पहले ही उसके स्थानांतरण की मांग कर चुके थे।
मामले की सूचना मिलते ही DEO और BEO मौके पर पहुंचे और ग्रामीणों को एक सप्ताह के भीतर समाधान का आश्वासन दिया, जिसके बाद ताला खोला गया।

शिक्षा विभाग की चुनौतियां और सवाल

इन तीनों मामलों ने शाला प्रवेशोत्सव जैसे सकारात्मक कार्यक्रम की गरिमा पर प्रश्नचिह्न लगा दिए हैं।
शिक्षा के अधिकार और सरकारी नीति के क्रियान्वयन के बीच की खाई इन घटनाओं से उजागर होती है।

राज्य सरकार को अब यह तय करना होगा कि—

  • क्या युक्तियुक्तकरण प्रक्रिया में पारदर्शिता है?

  • क्या ग्रामीण स्कूलों को पर्याप्त संसाधन और शिक्षक मिल पा रहे हैं?

  • और क्या शिकायतों पर समय रहते कार्रवाई की जाती है?

 


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