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महामाया मंदिर कुंड में 23 कछुओं की मौत पर हाईकोर्ट सख्त, नगरपालिका से मांगा जवाब

UNITED NEWS OF ASIA. बिलासपुर। महामाया मंदिर परिसर स्थित कुंड में 23 कछुओं की रहस्यमयी मौत के मामले में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने रतनपुर नगरपालिका की भूमिका पर कड़ा रुख अपनाया है। मामले की सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश आर. रवींद्रन सिन्हा की अध्यक्षता में कोर्ट ने नगरपालिका की उपस्थिति और जिम्मेदारी पर गंभीर सवाल खड़े किए।

“FIR क्यों नहीं कराई?” – कोर्ट का सवाल

सुनवाई के दौरान जब अदालत ने नगरपालिका की वकील से पूछा कि क्या इस घटना पर FIR दर्ज कराई गई है, तो उन्होंने इसका इनकार किया। इस पर चीफ जस्टिस ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा, “अगर FIR ही नहीं कराई तो आप कोर्ट में किस हैसियत से मौजूद हैं?”

जवाब में वकील ने कहा कि तालाब की जिम्मेदारी नगरपालिका द्वारा मंदिर ट्रस्ट को सौंप दी गई है, इसी कारण वे पक्षकार के रूप में उपस्थित हैं। इस पर कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि फैसला ट्रस्ट ने लिया है, तो बाकी जिम्मेदारों की भूमिका की भी जांच की जाएगी।

कोर्ट का सख्त रुख: पूरे तंत्र की होगी जांच

कोर्ट ने संकेत दिए कि यह मामला केवल एक व्यक्ति तक सीमित नहीं रहेगा। सभी जिम्मेदार अधिकारी, संस्था या व्यक्ति जांच के दायरे में लाए जाएंगे। अदालत ने अगली सुनवाई सोमवार को तय की है, जिसमें बिलासपुर डीएफओ से शपथ पत्र के साथ रिपोर्ट तलब की गई है।

क्या है पूरा मामला?

यह मामला 24 मार्च को नवरात्रि से पहले सामने आया, जब महामाया मंदिर परिसर के कुंड में 23 कछुए मृत पाए गए थे। प्रारंभिक जानकारी में कहा गया कि कुंड की सफाई के दौरान मछुआरों ने जाल डाला था, जिसमें कछुए फंस गए थे। हालांकि, यह भी सामने आया कि मछुआरे सफाई के बाद मछलियाँ लेकर चले गए, और दो दिन बाद कछुए मृत मिले।

पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट: दम घुटने से मौत

वन विभाग द्वारा कराए गए पोस्टमॉर्टम में पुष्टि हुई है कि कछुओं की मौत दम घुटने से हुई है। माना जा रहा है कि जाल की जाली पतली होने के कारण कछुए उसमें फंस गए और स्वतः को बाहर निकालने के प्रयास में दम घुट गया।

हाईकोर्ट ने मीडिया रिपोर्ट को माना जनहित याचिका

इस संवेदनशील मामले में हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए एक मीडिया रिपोर्ट को जनहित याचिका के रूप में स्वीकार किया है। अदालत अब पूरे घटनाक्रम की गहन जांच सुनिश्चित कराना चाहती है, ताकि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो और प्राकृतिक जीवों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।

 


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