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अंतरराष्ट्रीय फेरन दिवस पर रंगबिरंगे फेरन पहन कर श्रीनगर के लाल चौक पर एकत्रित लोग

अंतर्राष्ट्रीय फेरन दिवस

प्रभासाक्षी

आपको बता दें कि चिल्लई-कलां 40 दिनों का एक दौर होता है जब कश्मीर घाटी शीतलहर की चपेट में आती है और तापमान काफी घट जाता है। इस अवधि में हिमपात की संभावना अधिक रहती है, विशेष रूप से विभिन्न क्षेत्रों में भारी प्रविष्टि होती है।

श्रीनगर। अंतर्राष्ट्रीय फेरन दिवस के अवसर पर जम्मू-कश्मीर के ऐतिहासिक लाल चौक पर बड़ी संख्या में स्थानीय लोग और पर्यटक एकत्रित हुए। इस दौरान स्थानीय लोग एक तरह के फेरन पहने हुए और कांगड़ी को लेकर हुए थे जिससे एक अलग ही छटा उभर कर आ रही थी। पारंपरिक रंग का फेरन पहने हुए, पुरुषों, महिलाओं और बच्चों की डेक और वीडियो मेकिंग में पर्यटक मसगूल नजर आए। हम आपको बताते हैं कि फेरन, कश्मीर में कड़ाके की ठंड से निपटने के लिए एक लंबा कटोरा होता है। देखा जाए तो फेरन कश्मीरी संस्कृति का ऐतिहासिक हिस्सा है और स्थानीय लोगों ने डिजाइन के निहितार्थ- बहुत बदलाव के अलावा इस कविता में अब तक कोई बहुत बड़ा बदलाव नहीं किया है। फेरन की खास बात यह है कि यह सभी धर्मों के लोग हैं।

आपको बता दें कि चिल्लई-कलां 40 दिनों का एक दौर होता है जब कश्मीर घाटी शीतलहर की चपेट में आती है और तापमान काफी घट जाता है। इस अवधि में हिमपात की संभावना अधिक रहती है, विशेष रूप से विभिन्न क्षेत्रों में भारी प्रविष्टि होती है। इस साल की बात करें तो सबसे पहलेगाम समेत कई जगहों पर परा हिमांक बिंदु के नीचे जाने के साथ ही कश्मीर घाटी में बुधवार को सबसे भीषण सर्दी यानी ‘चिल्लई कलां’ का दौर शुरू हो गया है। ऐसे में लोगों को भयंकर सर्दी से आग लग जाती है और कांगड़ी ही लग जाती है।

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Saurabh Namdev

| PR Creative & Writer | Ex. Technical Consultant Govt of CG | Influencer | Web developer
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