
UNITED NEWS OF ASIA. कवर्धा समेत समूचे छत्तीसगढ़ मे कांग्रेस इस समय गंभीर आंतरिक कलह और गुटबाजी से जूझ रही है। राज्य में सत्ता परिवर्तन के बाद पार्टी के भीतर असंतोष बढ़ा है, जिससे संगठन कमजोर हो रहा है।
विधानसभा के बाद हुए लोकसभा चुनाव के परिणामों ने कांग्रेस के नेताओं को जनता के बीच नाकाम साबित कर दिया वहीँ दूसरी तरफ फ़रवरी मे हुए नगरीय निकाय चुनावों एवं पंचायत चुनावों के परिणाम कांग्रेस के लिये काफ़ी चिंताजनक रहे है |
कवर्धा मे पूर्व मंत्री मोहम्मद अकबर की हार के बाद उनका वापस कवर्धा न आना कार्यकर्ताओं के लिये उत्साह मे कमी लाने वाला कदम है|
वहीँ दूसरे तरफ देखे तो छत्तीसगढ़ कांग्रेस आपसी कलह के चलते बेकफुट पर जा रही है,
कांग्रेस में बढ़ती अंदरूनी कलह
1. भूपेश बघेल और टी.एस. सिंहदेव गुट की लड़ाई – जब कांग्रेस सत्ता में थी, तब भी मुख्यमंत्री पद को लेकर दोनों नेताओं के बीच खींचतान चल रही थी। सत्ता जाने के बाद यह टकराव और बढ़ गया है।
2. पूर्व मंत्रियों की नाराजगी – कई पूर्व मंत्री और विधायक नेतृत्व से नाखुश हैं, क्योंकि उन्हें संगठन में उचित स्थान नहीं मिल रहा है, निकाय एवं पंचायत चुनाव के परिणामों को लेकर लगातार बड़े नेताओं ने संगठन पर हार का ठीकरा फोडा था जिसके बाद पार्टी नेतृत्व पर सवाल खडे हो गए है।
3. नए नेतृत्व को लेकर असमंजस – सत्ता गंवाने के बाद पार्टी को फिर से खड़ा करने के लिए एक नए चेहरे की जरूरत है, लेकिन प्रदेश नेतृत्व इसे लेकर स्पष्ट नहीं है।प्रदेश मे कई बड़े मामलों मे कांग्रेस पार्टी जनता के बीच नहीं जा सकी है जिसे लेकर जनता भी पार्टी से असंतुष्ट नजर आ रही है ।
कवर्धा कांग्रेस के राजनितिक भविष्य पर प्रश्नचिन्ह-
कवर्धा कांग्रेस मे सर्वमान्य नेता के रूप मे मोहम्मद अकबर को जाना जाता है।
जिले के सभी संगठन मामलों मे अकबर की रजामंदी पर ही फैसले होते आये है।
वर्तमान मे निकाय एवं पंचायत चुनावों मे भी टिकिट वितरण मोहम्मद अकबर के सहमति से ही हुए है पर जिस तरह मोहम्मद अकबर ने विधानसभा चुनाव मे हार के बाद से कवर्धा से दुरी बनाई है उससे कार्यकर्ताओं का मनोबल टूट सा गया है।
मोहम्मद अकबर के वापसी को लेकर असमंजस मे बैठी कांग्रेस पार्टी नेतृत्वविहीन नजर आ रही है।
पंचायत एवं निकाय चुनाव मे जहाँ बीजेपी के बड़े नेताओं ने जिम्मेदारी सम्हाली हुई थी वहीँ दूसरी तरफ कांग्रेस मे भूपेश बघेल के एक घंटे के सभा के अलावा कवर्धा मे कोई बड़ा मूवमेंट नहीं दिखा जिसके चलते कार्यकर्ता उत्साहविहीन हो गए और परिणाम पार्टी के विपरीत आये।
संजीवनी देने के लिए क्या किया जाए?
इन परिस्थितियों में, कांग्रेस के लिए एक मजबूत और प्रभावी नेता की आवश्यकता है जो स्थानीय मुद्दों को समझते हुए पार्टी को संगठित और सक्रिय कर सके। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज ने हाल ही में कवर्धा में प्रदर्शनों का नेतृत्व किया है, जिससे उनकी सक्रियता स्पष्ट होती है। स्थानीय स्तर पर, संतोष यादव भक्कू,जगनी कामू बैगा जैसे नेताओं का चुनाव लड़ना महत्वपूर्ण रहा है।
जमीनी स्तर पर समुदाय के साथ सीधा संवाद स्थापित कर सके ऐसे नेतृत्व की कांग्रेस मे कमी है।
कुल मिलाकर, कांग्रेस को कवर्धा में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए स्थानीय और प्रदेश स्तर पर समन्वित प्रयास करने होंगे, जिससे पार्टी को एक नया संकटमोचक मिल सके जो इन चुनौतियों का सामना कर सके
सत्ता पक्ष मे कांग्रेस के फ्रंटलाइन नेता माने जाने. वाले नेता अब या तो घर मे आराम कर रहे नहीं तो बीजेपी का दामन थाम चुके है, ऐसी परिस्थिति मे कांग्रेस को अपने लिये एक संकटमोचक ढूढ़ना बेहद जरूरी है
1. मजबूत और एकजुट नेतृत्व – कांग्रेस को किसी एक नेता के पीछे पूरी मजबूती से खड़े होने की जरूरत है, ताकि गुटबाजी खत्म हो।
2. जमीनी कार्यकर्ताओं को सक्रिय करना – सत्ता में रहने के दौरान पार्टी का संगठन कमजोर हो गया था। अब कार्यकर्ताओं को फिर से जोड़ने की जरूरत है।
3. युवाओं को आगे लाना – पार्टी को नए और युवा नेताओं को आगे बढ़ाना होगा, ताकि जनता में भरोसा बना रहे।
4. मजबूत विपक्ष की भूमिका निभाना – कांग्रेस को भाजपा सरकार की नीतियों पर मजबूती से सवाल उठाने होंगे और सड़क से विधानसभा तक प्रभावी विपक्ष बनना होगा।
अगर कांग्रेस अपनी आंतरिक कलह को खत्म नहीं करती और संगठन को मजबूत नहीं बनाती, तो 2028 के विधानसभा चुनाव में भी उसे भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है। पार्टी को तुरंत ठोस रणनीति अपनाकर जनता के बीच अपनी खोई साख वापस पाने की जरूरत है।



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