UNITED NEWS OF ASIA. रिजवान मेमन, धमतरी | जिन खास शख्सियत की मैं यहाँ बात करने वाली हूँ वो किसी परिचय के मोहताज नहीं , उनका नाम ही उनकी पहचान रहीं, मैं यहाँ बात कर रही हूँ पत्रकारिता के क्षेत्र में अपना एक अलग मुकाम बनाने वाले स्व. ज्याउल हुसैनी जी के बारे में, शायद उनके बारे में बाते करने,लिखने में मेरी एक उम्र भी निकल जाये बोलना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगा। पापा जी ने अपनी जिंदगी के शुरूआती दिनों से ही संघर्षो का सामना किया,पापा ज्याउल हुसैनी जी के पिता यानी हमारे दादा अब्दुल राऊफ हुसैनी जी मूलतः डोगरगांव के खुज्जी नामक जगह पर पेशे से डॉक्टरी किया करते थे और पापा को भी डॉ बनाना चाहते थे, इसलिए दादा जी ने पापा(ज्याउल) जी को डॉक्टरी की पढाई करने भेजा भी जहाँ पर पापा जी के साथ स्व. डॉ चटर्जी जैसे अन्य नामचीन डॉ उसी कॉलेज में उनके साथ पढाई कर रहे थे, पर शायद पापा जी किस्मत में डॉ बनना नहीं लिखा था, दुर्भाग्यवश दो-ढाई वर्ष डॉक्टरी की पढ़ाई करने के बाद पापा जी को पढाई बीच में ही छोड़ वापस आना पड़ा कारण था, दादा जी के स्वास्थ्य का अचानक खराब हो जाना, और पापा जी का अपने माँ, बाप, भाई, बहनों की बड़े भाई होने के नाते जिम्मेदारी उठाने का जज्बा, इसके बाद क्या था, पापा जी ने अपनी डॉक्टरी की पढाई अधूरी छोड़ वापस आ गये, और उसके बाद से धमतरी जो कि पापा जी का ननिहाल रहा यही सापरिवार रहने लगे और परिवार माँ, पिता, भाई, बहनों की जिम्मेदारी निभाने स्व.मंगलमूर्ति के साथ घरों में पेंट कर और बदले में फोटोग्राफी सिखी ऐसे ही पापाजी को फोटोग्राफी का शौक पैदा हुआ, और पापा ने अपनी जिंदगी में घर-परिवार सहित कई नामी शख्सियतों को अपने कैमरे में उतारा उस वक्त मे किसी के पास कैमरा होना बहुत खास बात होती थी, जिसमे पापा जी ने स्व.इंदिरा गाँधी जी, की भी अपने कैमरे में यादें संजोई।
इसी तरह कई छोटे-मोटे कार्य करते हुए पापाजी का रूझान पत्रकारिता की ओर हुआ, फिर बस क्या? पापा(ज्याउल हुसैनी) जी ने अपना पूरा जीवन पत्रकारिता के लिए न्यौछावर कर दिया, अपने अंतिम दिनों तक में भी वे निरंतर, हर विषय पर लेखन, अखबारों के अध्ययन, खास प्रकाशित खबरों पर मनन, विशेष विषयों की कटिंग कर फाईलें तैयार करना, करते रहें। साथ ही पत्रकारिता के अपने शुरुआती दिनों से ही उन्होंने गंभीर विषयों पर रिपोर्टिंग कि,जब बस्तर में याज़ नामक बिमारी को उन्मूलित घोषित कर दिया गया, उस समय हुसैनी जी ने खोजी पत्रकारिता की अहम भूमिका निभाते हुए उस बस्तर के अबूझमाड़ क्षेत्र में जाकर रिपोर्टिंग की जिसको सरकार ने समाप्त घोषित कर दिया था, उस याज़ नामक बिमारी की मौजूदगी को सरकार समेत सभी के सामने लाकर खड़ा कर दिया, ऐसी खोजी पत्रकारिता का स्वरूप आज नगण्य ही नज़र आता है।
इसी रिपोर्टिंग के लिए हुसैनी जी को स्टेटस-मैन के सम्मान से नवाजा ़ गया। साथ ही 1981 में राष्ट्रपति पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया, इसी प्रकार गंगरेल बांध जो आज धमतरी शहर के लिए पर्यटन स्थल के रूप में सामने हैं, गंगरेल बांध, जब उस स्थल पर किसी बांध का नामों निशान भी नहीं था, उस वक्त भी जितने गांव डूबे थे, उन आखिरी पहुंच विहीन गांवों तक नाव के माध्यम से जाकर अपने समाचारों में उन गाँवो कि स्थिति प्रस्तिथि से लोगों को अवगत कराया था।
इसके अलावा भी कई उतार-चढ़ाव भरी जिंदगी भी देखी कभी विरोध भी देखा, कभी दबाव देखा कभी त्याग भी किया, लेकिन अपनी कलम की धार को कभी डगमगाने नहीं दिया, पत्रकारिता के लिए अपना पूरा जीवन दिया। यहीं कहानी खत्म नहीं होती पत्रकारिता के साथ साथ उनका रूझान पुरातत्व में भी रहा। अपने स्कूली दिनों से ही वे काफी होनहार रहे, लेखन , भाषण, कविता, साहित्य सभी में कई मंचों में अपना लोहा मनवाया, पुरानी चीजों का संग्रह, डाक टिकट संग्रह, सिक्के संग्रह का भी काफी शौक रखा। पुरातत्व के प्रति रूझान ने उन्हें कई पुरातत्व से सम्बन्धित पहलुओं का ज्ञाता बनाया, पापा जी का जीवन ऐसा रहा कि हर कोई उनसे प्रभावित रहा, लोग मिलते गये कारवां बढ़ता गया, छोटे क्या बड़े क्या हर तबके, हर वर्ग उनके लिए बराबर रहा,इस कारवां में नाम तो बहुत है, केसरीमल लुंकड,मदन गोपाल गुप्ता,दाऊद भाई, सुभाष जैन,धनी राम ,कृष्णा प्रसाद शर्मा,कनक तिवारी, गोपाल शर्मा ऐसे नाम तो बहुत है।
पर कारवां यहीं रूकता नहीं,
ऐसे ही पत्रकारिता के क्षेत्र में कई पापा के सहबंधु रहे जिन्हें पापा हमेशा याद करते रहे, जिनमें नैय्यर जी, रायपुर के मायाराम सुरजन, ललित सुरजन,राजनारायण मिश्र प्रमुख थे जैसे कई और शख्सियत शामिल रहे। अविभाजित मध्यप्रदेश के समय रायपुर जिले के तत्कालीन कलेक्टर नज़ीब जंग ज़्याऊल हुसैनी जी कि रिपोर्टिंग, धमतरी जिले के अनेक गांव जो बरसात में धमतरी से अलग हो जाते थे उन पहुंच विहीन इस क्षेत्र के ग्रामवासी बरसात के पूर्व चार माह का राशन भरने मजबूर रहते हैं के समाचार को संज्ञान में लेकर ग्राम तिर्रा नाव से गये थे,पहली बार उस क्षेत्र में आईएएस कलेक्टर नज़ीब जंग ने वहां के लोगों से बात की और वर्ष 1980 में धमतरी एसडीएम तत्कालीन रंगलाल जयपाल को नदी में पुल बनाने की योजना को शीघ्रता शीघ्र भेजने का निर्देश दिया,आज जो उस क्षेत्र में पुल पुलिया का निर्माण हुआ है वह ज़्याउल हुसैनी की लेखनी का कमाल था।
करते हैं जो मशक्कत उनकी राहों में अंधेरा कम होता है, मंजिल वही पाते हैं जिनके हौसलों में दम होता है, दम होता है।
यही नहीं जब अपने दिन भर के काम से फारिग होने के बाद शाम जब पापा देशबंधु में थे तब पापा की एक रूटीन यह भी रहती थी कि, उस वक्त पुराने बस स्टैंड स्थित विनोद होटल अपने समय की फेमस होटलों में एक होटल थी जहां देश प्रदेश के ख्याति नाम साहित्यकारों, पत्रकारों, गणमान्यजनों की बैठकें हुआ करती थी वहां ऐसे लोगों का जमावड़ा सिर्फ नाश्ता चाय के लिये नहीं होता था बल्कि शहर के विकास और समस्याओं से शहर वासियों को कैसे निजात मिलेगी इस पर गंभीरता से चर्चा होती रही,शाम होते ही यहां, स्वर्गीय नारायण लाल परमार, ञिभुवन पांडेय, मुकीम भारती,अनवार आलम ज़्याऊल हुसैनी तथा सर सुरजीत नवदीप भी अक्सर पहुंचते, चर्चाएं होती और तहसील विकास को लेकर जो बातें होती उसे स्वर्गीय ज़्याऊल हुसैनी देशबंधु में समाचार के रूप में शासन प्रशासन के समक्ष परोसते रहे , इसमें विनोद कक्का की भी महत्वपूर्ण भूमिका रहती थी,आज हमारे बीच ऐसे साहित्यकारों, कवियों,की कमी खलती है और सबसे ज़्यादा दुःख उस दिन हुआ जब शहर की तमाम गतिविधियों को अपने फाईलों में संजोकर रखने वाले शहर के नामी पत्रकार पापा जी भी दिनांक 31-12-2024 को हमसे जुदा हो गये।
इसी प्रकार जबपत्रकारिता के क्षेत्र में अपना शीर्ष स्थान रखने वाले स्वर्गीय हुसैनी को जब छत्तीसगढ़ पत्रकार महासंघ का गठन करने बाबू छोटेलाल श्रीवास्तव लायब्रेरी हाल में आमंत्रित किया गया और उन्हें संघ का अध्यक्ष बनाये जाने की जानकारी दी तो उन्होंने इस प्रस्ताव का सम्मान करते उक्त पद पर किसी अन्य को देने का सुझाव दिया,यह वाक्या वर्ष 1986 का है,आज पत्रकारिता के माध्यम से उन्होंने जो साख बनाई उसके लिये विभिन्न प्रांतों में पुरुस्कृत किया गया और उन्हें शासन और जनता के बीच सेतु की भूमिका निभाई किंतु राज्य स्तरीय अधिमान्यता प्राप्त पत्रकारों में शुमार स्वर्गीय ज़्याऊल हुसैनी को लेखनी के क्षेत्र में छत्तीसगढ़ राज्य सरकार ने उनके स्वर्गवास पश्चात पदुमलाल पन्नालाल बख्शी, हबीब तनवीर जैसे व्यक्तियों के नाम पर दिये जाने वाले पुरस्कार से कभी नहीं नवाज़ा। इसके बाद भी पत्रकारिता में अपना जीवन समर्पित करते हुये सेतू का कार्य जीवन पर्यंत किया।
चाहे मुझ जैसी अदना-सी नाचीज़ जो लिख कर बयां करने की कोशिश कर ले, अपनी टूटी-फूटी कलम से पर पापा (ज्याउल हुसैनी) जी के जीवन के हर पहलू को गहराइयों से बयान नही कर पाउंगी, पर इतना जरूर देखा, कि जमीन से अर्श तक की सोच रखने वाले पापा जी कभी गुमनामी में न खोये, यही दुआ है एक बेटी की पापा जी के लिए और चाहत और कोशिश रहे कि पापा जी को उनके कामों और पत्रकारिता के लिए सर्वस्व अर्पण करने के बाद सदा याद रखा जाये, साथ ही सरकार से अनुरोध है कि, मरोन्परांत उनके कामों को ध्यान रखते हुए संस्कृति पुरातत्व, व पत्रकारिता के क्षेत्र में अपनी भूमिका के लिए राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान से नवाजा जाये।