
UNITED NEWS OF ASIA. कोरबा। जिले में मां मड़वारानी का प्राचीन देवी मंदिर है। इसके स्थापना वर्ष को लेकर कोई उल्लेख इतिहास के पन्नों में नहीं मिलता। यहां के मूल निवासियों के लिए कई पीढ़ियों यह मंदिर श्रद्धा व आस्था का प्रतीक है। इस मंदिर में नवरात्र मनाने की अपनी एक अलग ही परंपरा चली आ रही है। पहाड़ी की चोटी पर देवी मां एक हैं लेकिन वहां मंदिर दो हैं।
दोनों की मान्यता एक ही है। कलमी पेड़ स्थित मां मड़वारानी दरबार के बैगा सुरेन्द्र कुमार कंवर तो दूसरे मंदिर के बैगा रूप सिंह कंवर हैं। मंदिर में नवरात्र की शुरुआत को लेकर उनका कहना है कि शारदीय नवरात्र हो या फिर चैत्र यहां पंचमी के दिन ही घट स्थापना कर नवरात्र मनाई जाती है।
यह परंपरा इसलिए चली आ रही है क्योंकि गांव के एक चरवाहे को नवरात्र की पंचमी के दिन मां मड़वारानी ने कलमी पेड़ के नीचे जवारे के रूप में दर्शन दी थीं। चरवाहे ने यह बात पूरे गांव के लोगों को बताई और सबने मौके पर पहुंचकर जवारा का दर्शन पूजन कर उसी दिन से नवरात्र मनाने की शुरुआत कर दी।
यह भी कहा जाता है कि देवी मां विविध रूपों में गांव के लोगों को दर्शन देती रही हैं। उसके बाद से यहां मंदिर का विकास कार्य ग्रामीणों के सहयोग से शुरू हुआ। परंपरा के अनुसार 7 अक्टूबर को शारदीय नवरात्र की धूम यहां शुरू हो जाएगी।
यह भी है मां मड़वारानी की मान्यता
मां मड़वारानी शादी का मंडप छोड़कर पहाड़ पर पहुंची थीं। तब उनके शरीर पर लगी हल्दी मुख्य मार्ग स्थित एक पत्थर पर गिरी थी। इसके कारण नीचे स्थित मां मड़वारानी का मंदिर बना। दूसरी कहानी मां मड़वारानी भगवान शिव से कनकी में मिली एवं मड़वारानी पर्वत पर आईं। मांडवी देवी के नाम से जाना जाता है।
तीन तरफ पहाड़ तो एक ओर नदी की तराई
मां मड़वारानी मंदिर तीन दिशाओं में प्राकृतिक सौंदर्य को समेटे पहाड़ की ऊंची चोटी पर स्थित है। मंदिर से चौथे दिशा में बहने वाले हसदेव नदी की तराई का मनोराम नजारा देखने लायक रहता है। हसदेव नदी तट से मंदिर की ऊंचाई का अलग की रोमांचक अनुभव वहां पहुंचने वाले भक्तों को होता है।



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