UNITED NEWS OF ASIA. कवर्धा। भारत तिलहन का सबसे बड़ा उत्पादक है, लेकिन खाद्य तेलों का घरेलू उत्पादन देश में खाद्य तेलों की बढ़ती मांग के साथ तालमेल नही रखता है। इससे खाद्य तेलों के आयात में पर्याप्त वृद्धि हुई है।
इसलिए भारत में तिलहन के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 2024 से 2027 तक कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय विभाग द्वारा देश के विभिन्न राज्यों में तिलहन को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वाकांक्षी परियोजना मॉडल गांव के तहत (राष्ट्रीय तिलहन मिशन) समूह अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन जो आने वाले तीन वर्षो 2024-25 से 2026-2027 तक लिया जाना हैं।
जिसके अंतर्गत कबीरधाम जिले को लगभग 200 हेक्टेयर में सोयाबीन फसल का प्रदर्शन प्राप्त हुआ। जिसमें सोयाबीन फसल के लिए 145 हेक्टेयर में प्रदर्शन विकासखण्ड सहसपुर लोहारा के ग्राम-सोनपुर, सिंगारपुर एवं कोसमंदा में लिया जा रहा है। जिसमें कृषकों को योजना के दिशा निर्देशानुसार उन्नत किस्म के प्रमाणित बीज जो 10 वर्ष के अंदर के अवधि का बीज सोयाबीन किस्म जे.एस. 20-116 में बीजोपचार के लिए पी.एस.बी., राइजोबियम कल्चर कृषकों को वितरण किया गया। प्रदर्शन पूर्व कृषकों को संगोष्ठी के माध्यम से सोयाबीन की वैज्ञानिक पद्धति की संपूर्ण जानकारी दी गई।
कृषि विज्ञान केन्द्र, कवर्धा के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख, डॉ. बी.पी. त्रिपाठी द्वारा तिलहन उत्पादक किसानों को कृषकों को 2-3 वर्ष के अंतराल में मिट्टी पलटने वाले हल से खेत की गहरी जुताई करने एवं बीज उपचार करने के पश्चात ही बुआई करने की सलाह दी गई एवं किसानों को बुवाई पद्धति में चौड़ी क्यारी पद्धति एवं सीड ड्रील से बुवाई हेतु प्रेरित किया गया।
बुवाई पूर्व बीजोपचार के लिए सोयाबीन में 3 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से फफूंदीनाशक एंव 10 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से थायोमिथाक्सम से उपचारित करने के पश्चात 5-10 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से पीएसबी एवं राइजोबियम कल्चर से बीज उपचार करना चाहिए। सोयाबीन बोने से पूर्व बीज का अंकुरण परीक्षण अवश्यक कर लेवें एवं न्यूनतम 70 प्रतिशत होने पर ही बीज का उपयोग का सुझाव दिया गया।
उपरोक्त योजना की शुरूआत के पूर्व कृषकों के प्रक्षेत्र का चयन तथा मृदा का संग्रहण किया गया। सोयाबीन फसल का प्रदर्शन उपरोक्त तीनों गावों में किया गया है जहां पर कृषि विज्ञान केन्द्र, कवर्धा के वैज्ञानिकों द्वारा समय-समय पर भ्रमण कर उचित मार्गदर्शन जैसे खरपतवार प्रबंधन, समन्वित रोग एवं कीट प्रबंधन, पोषक तत्व प्रबंधन आदि की विस्तृत तकनीकी जानकारी सभी हितग्राहियों को दी जा रही है।